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कैसे हो पाए वाहनों की धरपकड़ जब आधे से ज्यादा जिलों में अधिकारियों की कुर्सी हो खाली

उत्तर प्रदेश में प्रवर्तन अधिकारियों की कुर्सी खाली होने से एआरटीओ प्रशासन ही प्रवर्तन की जिम्मेदारी निभा रहा है. इसका फायदा डग्गामार वाहन संचालक उठा रहे हैं.

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प्रवर्तन अधिकारियों की कुर्सी

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Published : Apr 30, 2022, 5:54 PM IST

लखनऊ: सड़क पर चल रहे अवैध वाहनों से लेकर स्कूल वाहनों की जांच, नेताओं के प्रोटोकॉल, परिवहन विभाग के राजस्व लक्ष्य को पूरा करने व विभाग से संबंधित अन्य काम परिवहन विभाग के प्रवर्तन अधिकारियों को दिए जाते है. लेकिन इन दिनों उत्तर प्रदेश में प्रवर्तन अधिकारियों की कुर्सी खाली होने से एआरटीओ प्रशासन ही प्रवर्तन की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. इसका फायदा डग्गामार वाहन संचालक उठाते दिखाई दे रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में तमाम ऐसे संभागीय परिवहन कार्यालय है जहां एआरटीओ तैनात नहीं हैं. कहीं जगहों पर एआरटीओ प्रशासन ही प्रवर्तन की जिम्मेदारी निभा रहे हैं तो कहीं यह कुर्सी खाली है. संबंधित जिलों में जहां एआरटीओ की तैनाती नहीं है, वहां डग्गामार वाहन व स्कूल वाहनों की जांच नहीं हो पा रही है. उत्तर प्रदेश में सहायक संभागीय अधिकारी प्रवर्तन की बात करें तो कुल 116 पद प्रदेश के 75 जिलों के एआरटीओ कार्यालयों के लिए सृजित हैं. पर इन पदों के सापेक्ष आधे से भी कम संख्या में एआरटीओ तैनात हैं. कार्य के लिए लगभग 116 अधिकारियों की आवश्यकता होती है लेकिन सिर्फ 64 सहायक संभागीय अधिकारी (प्रवर्तन) से ही हर तरह के काम की उम्मीद की जा रही है.

इसी तरह प्रवर्तन कार्य का दायित्व यात्री कर अधिकारी (पीटीओ) भी निभा रहे हैं. उत्तर प्रदेश में यात्रीकर अधिकारियों के 120 पद सृजित हैं लेकिन वर्तमान में तैनाती सिर्फ 82 यात्री कर अधिकारियों की ही है. 38 पीटीओ ही तैनात नहीं हैं. सिपाहियों की बात की जाए तो यहां आरटीओ कार्यालय भारी कमी से जूझ रहे हैं. उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग के कार्यालयों के लिए कुल 737 सिपाहियों के पद सृजित हैं लेकिन इनमें से 429 पद खाली पड़े हुए हैं.

विभाग के पास 308 सिपाही नहीं हैं. ऐसे में विभाग की तरफ से प्रवर्तन की कार्रवाई को लेकर आदेश तो दिया गया लेकिन जिले में प्रवर्तन कार्य के लिए अधिकारी न होने से चेकिंग नही हो पा रही है. बावजूद इसके, सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है. सीनियर अधिकारियों को भी अभियान की कार्रवाई करने में दिक्कत हो रही है. इसका फायदा अवैध डग्गामार वाहनों को हो रहा है.

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पीएम के संसदीय क्षेत्र में भी एआरटीओ नहीं :प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के संभागीय परिवहन कार्यालय में भी एआरटीओ प्रवर्तन तैनात नहीं है. ऐसे में अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि परिवहन विभाग अवैध वाहनों के खिलाफ कार्रवाई कराने में कितना गंभीर है. पीएम के संसदीय क्षेत्र बनारस के अलावा ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर दयाशंकर सिंह के गृहक्षेत्र बलिया में भी एआरटीओ प्रवर्तन की तैनाती नहीं है. झांसी, ललितपुर में एक भी एआरटीओ प्रवर्तन नहीं है. मुरादाबाद में भी एआरटीओ नहीं है. इसके अलावा तमाम अन्य ऐसे क्षेत्र हैं जहां एक भी एआरटीओ प्रवर्तन नहीं है. मतलब प्रशासन और प्रवर्तन दोनों का काम एआरटीओ प्रशासन के ही पास है.

बार-बार पत्राचार, पर पद भरने पर नहीं हुआ विचार :परिवहन विभाग के सीनियर अधिकारी कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि अधिकारियों की कमी से शासन या सरकार वाकिफ नहीं है. जितने पद सृजित हैं, उनके सापेक्ष वर्तमान में कितने अधिकारी कार्यरत हैं, इसका पूरा ब्यौरा शासन के पास उपलब्ध है. मुख्यालय की तरफ से कई बार पत्राचार कर पदों की भरपाई के लिए अनुरोध भी किया जाता है लेकिन काफी समय से यह पद रिक्त ही चल रहे हैं. इसकी वजह से अभियान में काफी समस्याएं आतीं हैं.

क्या कहते हैं एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर :एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर (प्रवर्तन) वीके सोनकिया का कहना है कि सहायक संभागीय अधिकारी (प्रवर्तन) यात्री कर अधिकारी और सिपाहियों की काफी कमी है. इसे पूरा करने के लिए शासन से अनुरोध किया गया है. उम्मीद है कि जल्द ही अधिकारियों की कमी को पूरा किया जाएगा.

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