वाराणसी: ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की सुनवाई अब 18 अगस्त को होगी. ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी प्रकरण में मुस्लिम अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी की तरफ से जिला जज न्यायालय में गुरुवार को आवेदन दिया गया. मुस्लिम पक्ष के मुख्य वकील अभय नाथ यादव के असामयिक निधन और मुकदमे से जुड़े सभी दस्तावेज उनके पास सुरक्षित रखे होने की वजह से न्यायालय से 15 दिन का वक्त मांगा गया.. इसके पहले हुई सुनवाई में वादी पक्ष के तरफ से अपनी बातें रख दी गई हैं और आज मुस्लिम पक्ष को काउंटर दाखिल करते हुए आपत्ति देने का मौका दिया जाएगा. सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंदू पक्ष की तरफ से बहस पूरी होने के बाद पिछली तिथि को कोर्ट ने 4 अगस्त की तिथि मुस्लिम पक्ष के मुख्य अधिवक्ता अभय नाथ यादव की अपील पर दी थी लेकिन कुछ दिन पहले ही अभय नाथ यादव का हआर्ट अटैक से निधन हो जाने की वजह से मुस्लिम पक्ष अपने नए मुख्य वकील के साथ कोर्ट में उतरेगा. नए सिरे से पूरा मामला कोर्ट के सामने नए वकील के द्वारा रखा जाएगा.
2016 से अभय नाथ यादव मुस्लिम पक्ष की तरफ से ज्ञानवापी प्रकरण का केस देख रहे थे, लेकिन असामयिक निधन की वजह से मुस्लिम पक्ष के सामने भी बड़ा संकट है और हिंदू पक्ष की तरफ से रखी गई तमाम दलीलों पर ठोस और मजबूती के साथ मुस्लिम पक्ष को अपनी बातें रखना बेहद जरूरी है. क्योंकि मुस्लिम पक्ष की तरफ से ही मामले को सुनवाई योग्य ना मानते हुए 7 रूल 11 के तहत सुनवाई के अपील की गई थी. जिस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जिला न्यायालय में सुनवाई चल रही है.
दरअसल ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद मई के महीने से इस मामले की सुनवाई सीनियर सिविल डिविजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत से ट्रांसफर कर जिला जज न्यायालय में करवाई जा रही है. अभी मामले की पोषणीय था यानी मामला सुनवाई योग्य है या नहीं इसे लेकर कोर्ट में कार्यवाही चल रही है. इस मामले में मुस्लिम पक्ष की तरफ से अपनी बातें रखते हुए हिंदू पक्ष यानी वादी की तरफ से दाखिल 51 बिंदुओं पर बहस पूरी की जा चुकी थी जिसके बाद पहले वादी संख्या 2 से 5 मंजू व्यास रेखा पाठक सीता साहू और लक्ष्मी देवी के वकीलों ने अपनी बातें कोर्ट के सामने रखी थी. जिसमें हरिशंकर जैन और विष्णु जैन ने ज्ञानवापी परिसर को देवता की संपत्ति बताते हुए श्री काशी विश्वनाथ एक्ट एक्ट पर तमाम दलीलें पेश की थी और मामले को सुनवाई योग्य बताते हुए ज्ञानवापी परिसर पर हिंदुओं का मालिकाना होने की बात कही गई थी.
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