लखनऊ : उत्तर प्रदेश विधान परिषद (Uttar Pradesh Legislative Council) की कई सीटें काफी समय से रिक्त चल रही हैं. इन सीटों के लिए कोई चुनाव नहीं होना है, बल्कि यह सीधे सरकार की अनुशंसा पर राज्यपाल द्वारा नामित की जाने वाली है. कई माह से अनिर्णय से जूझ रही भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकार की इस मसले पर अब किरकिरी होने लगी है. सवाल उठ रहे हैं कि आखिर मनोनयन में क्या दिक्कत आ रही है. क्या सरकार और संगठन में तालमेल का अभाव है या फिर यह दोनों चयनित किए जाने वाले नामों पर अंतिम फैसला नहीं कर पा रहे हैं.
गौरतलब है कि राज्य विधान परिषद की आठ सीटें अभी रिक्त हैं. इनमें छब्बीस मई को राजपाल कश्यप, अरविंद कुमार और डॉ संजय लाठर का कार्यकाल समाप्त होने पर, अट्ठाइस अप्रैल को बलवंत सिंह रामूवालिया, वसीम बरेलवी और मधुकर जेटली का कार्यकाल समाप्त होने और इससे पहले दो सीटें अहमद हसन के निधन और ठाकुर जयबीर सिंह के सदस्यता छोड़ दिए जाने से रिक्त हुई थीं. काफी दिनों से इस सीटों के लेकर चर्चा का बाजार गर्म रहा है. भारतीय जनता पार्टी में अपनी दावेदारी कर रहे नेता भी जोरआजमाइश में लगे हैं कि कैसे उनका काम आसान हो, लेकिन इस ओर अब तक अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है.
विधान परिषद की रिक्त सीटों पर निर्णय न कर पाने से हो रही योगी सरकार और संगठन की किरकिरी
उत्तर प्रदेश विधान परिषद (Uttar Pradesh Legislative Council) की कई सीटें काफी समय से रिक्त चल रही हैं. इन सीटों के लिए कोई चुनाव नहीं होना है, बल्कि यह सीधे सरकार की अनुशंसा पर राज्यपाल द्वारा नामित की जाने वाली है. कई माह से अनिर्णय से जूझ रही भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकार की इस मसले पर अब किरकिरी होने लगी है. पढ़ें ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का राजनीतिक विश्लेषण...
इन विषय में पहले कहा जाता रहा कि तत्कालीन संगठन मंत्री सुनील बंसल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) में अनबन है और नए संगठन मंत्री के आने के बाद ही कोई निर्णय किया जाएगा. इसके बाद प्रदेश भाजपा को धर्मपाल सिंह के रूप में नया संगठन मंत्री और चौधरी भूपेंद्र सिंह के रूप में नया प्रदेश अध्यक्ष भी मिल गया है. इन दोनों को पद भार ग्रहण किए हुए भी लगभग दो माह होने को हैं, लकिन सरकार और संगठन विधान परिषद के रिक्त पदों के लिए नाम घोषित नहीं कर पा रहे हैं. कहा यह भी जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व और सरकार में नामों को लेकर दुविधा की स्थिति है. इसीलिए यह देरी हो रही है. दूसरी ओर निकाय चुनाव सिर पर हैं. ऐसे में पार्टी और सरकार पूरी ताकत से निकाय चुनाव पर ध्यान केंद्रित करेगी. स्वाभाविक है कि ऐसी स्थिति में विधान परिषद की रिक्त सीटों का मसला और खिंच सकता है. जो भी हो. पूर्ण बहुमत की सरकार और सबसे बड़े संगठन वाली पार्टी में किसी भी निर्णय को लेकर देर हो रही है तो सवाल उठने लाजिमी ही है.