लखनऊ : आजादी के अमृत महोत्सव को मनाते हुए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय का सभागार हास्य, वीर और श्रृंगार रस की रचनाओं से गूंज उठा. मौका था विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित कवि सम्मेलन 'ऐ वतन का'. इस दौरान कभी तालियों की गड़गड़हट तो कभी पिन ड्रॉप साइलेंस की स्थिति रही. मंच संभालते ही जाने माने शायर नवाब देवबंदी ने मोहब्बत में पिरोयी अपनी चंद लाइन....मेरे पास एक पिंजरा है, उसमें परिंदा है उसे भी प्यार है मुझसे मुझे भी प्यार है उससे...वाहवाही लूटी. इसके बाद उन्होंने जूते सीधे कर दिये थे एक दिन उस्ताद के, उसके बदले में मेरी तकदीर सीधी हो गयी... सुनाई. गरीबी पर अमीरी की ज्यादती पर अपनी चंद पंक्तियां बहुत मजाक उड़ाते हो तुम गरीबों का, मदद करते हो तुम तस्वीर खींच लेते हो...पढ़ीं तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़हट से गूंज उठा. इसी तरह उन्होंने विश्वासघात पर चोट करती अपनी चंद लाइनें सुनाईं कहा, राज पहुंचे मेरे दुश्मनों तक, मशविरा कर लिया था अपनो से... अंत में उन्होंने देश प्रेम से ओत-प्रोत अपनी मशहूर रचना...हिंदू-मुस्लिम चाहे जो लिखा हो माथे पर आपके सीने पर हिन्दुस्तान होना चाहिए का पाठ किया तो श्रोता झूम उठे.
इसी तरह मशहूर शायर कलीम कैसर ने देश प्रेम से लबरेज अपनी रचना 'युगों युगों गूंजे ये नारा, केवल इक दो सदी नहीं, भारत जैसा देश नहीं, गंगा जैसी नदी नहीं' सुनाकर श्रोताओं को बांध लिया. इसी तरह सुनाया कि चांद कहता है गगन हंसी है, एक दीवाना गाता फिरता है अपना वतन हंसी है. इसके बाद हास्य कवि सर्वेश अस्थाना ने अपनी व्यंग्य करती रचनाओं से व्यवस्था और भ्रष्टाचार पर चोट की. सुनाया कि हम अपने मित्र दरोगा जी के घर गये, देखा दरोगा जी मर गये, मैंने भाभी जी से पूछा ये कैसे हुआ क्या फांसी लगाया, जहर फांका तो उन्होंने बताया न फांसी लगाया न जहर फांका दरोगा जी ने अपने गिरेबां में झांका...सुनाकर खूब वाहवाही लूटी. इसी तरह हास्य कवि प्रमोद पंकज ने अपनी हास्य रचनाओं से श्रोताओं को खूब गुदगुदाया. कोरोना आना नहीं मेरे देश में, कोरोना मेरे दोस्त वादा निभाना बाइपास होकर पाकिस्तान में घुस जाना सुनाया तो हॉल ठहाकों से गूंज उठा.