लखनऊ: छोटे से आशियाने की आशा रखने वाले प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों की गोपनीय जानकारी साइबर ठगों के पास पहुंच रही है. इसी जानकारी के आधार पर साइबर क्रिमनल्स गरीबों की जमा पूंजी उड़ा ले रहे हैं. साइबर एक्सपर्ट और पुलिस परेशान इस बात को लेकर चिंतित है कि आखिरकार विभागीय डेटा क्रिमनल्स तक कैसे पहुंच रहा है.
गोपनीय जानकारी से ठगी
राजधानी के सुशांत गोल्फ सिटी थानांतर्गत रहने वाली मेघना नाथ ने साल 2017 में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवेदन किया था. आवेदन की स्वीकृति होने के बाद आवास के लिये 2018 को पहली क़िस्त के रूप में मेघना के खाते में 60 हजार रुपये जमा हो गये थे. इसके बाद मेघना को बाकी के 1 लाख 91 हजार रुपये के आने का इंतजार था. 21 अगस्त 2022 को मेघना को एक कॉल आयी. कॉल करने वाला खुद को प्रधानमंत्री आवास योजना का इन्वेस्टिगेटिव अधिकारी बता रहा था. उसने मेघना से उसके सभी पर्सनल डिटेल ले लिये.
जीएसटी के नाम पर रकम कराई जमा
पीड़िता मेघना ने बताया कि, करीब 3 घंटे की कॉल के दौरान उस व्यक्ति ने कई तरह के सवाल पूछे थे. इस दौरान उसने मेघना को बताया कि, उनकी बची हुई रकम जीएसटी के चलते रुकी हुई है. यदि वह रकम अभी अदा करती है तो उनकी बची हुई क़िस्त 1 लाख 91 हजार मेघना के खाते में पहुंच जाएगी. उसने कहा अगर जीएसटी के 32 हजार रुपये अभी नही जमा किये तो आवास निरस्त हो जाएगा. मेघना ने परिवार के किसी सदस्य की सहायता से ऑनलाइन पेमेंट कर दिया गया. पेमेंट करने के बाद जब उसने कॉल किया तो उसे कोई जवाब नहीं मिला.पीड़िता को समझ आ चुका था कि, उसके साथ साइबर ठगी हुई है.
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ऐसा ही एक दूसरा वाक्या साल 2021 में हरचंदपुर, रायबरेली के रहने वाले रवि कुमार के साथ हुआ था. रवि ने प्रधानमंत्री आवास के लिये आवेदन किया था. रवि से साइबर ठग ने प्रधानमंत्री आवास से सबंधित व्यक्तिगत जानकारी ली. रवि को बताया गया कि, उनका आवास स्वीकृति हो चुका है और पहली किस्त के लिए उन्हें 15 हजार रुपये देने होंगे. रवि के पेमेंट करने के बाद साइबर ठग ने फोन उठाना बंद कर दिया.
साइबर एक्सपर्ट डेटा लीक को मानते है गंभीर अपराध
साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे के मुताबिक, जितने भी साइबर क्राइम होते है उनका सबसे बड़ा और मजबूत हथियार 'डेटा' होता है.एक बार उनके हाथ व्यक्तिगत जानकारी लगने पर वह डेटा के सहारे ठगी करते है. चाहे वह डेटा बैंक का हो या फिर इंसोरेंस, रेस्टोरेंट का हो, या फिर होटल का. छोटी से छोटी इन्फॉर्मेशन साइबर क्रिमनल्स तक पहुंच जाती है. यहां तक सरकारी विभागों की जो डेटा इन्फॉर्मेशन होती है वह भी लीक होकर क्रिमनल्स के हाथों तक पहुंच रही है. इसका इस्तेमाल कर साइबर ठग व्यक्ति का भरोसा जीतते है और फिर उन्हें लूटते है.
कैसे हो रहे है सरकारी डेटा लीक?
अमित दुबे के मुताबिक, डेटा प्राइवेसी एक्ट अभी लागू नही है. इस कारण डेटा लीक होने पर कोई प्रभावी कार्रवाई नही हो पाती. गूगल पर सर्च कर कोई भी जानकारी लेना आसान है. लेकिन, सरकारी अधिकारी या लाभार्थी की जानकारी यदि लीक हो तो मामला गंभीर हो जाता है. साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे के मुताबिक, साइबर क्रिमनल्स सरकारी कार्यालयों से कई तरीकों की जानकारी और डेटा प्राप्त कर रहे हैं. ठग सरकारी विभागों में स्नूफिंग कॉल कर खुद को एनजीओ या फिर किसी अन्य विभाग का बता कर डेटा इकठ्ठा कर रहे हैं. मौजूदा समय में डेटा सेक्यूरिटी की जरूरत है. इसके लिए सरकार कोई मजबूत गाइडलाइन जारी करें. ताकि, डेटा लीक होने से बचा जा सकें. डेटा लीक के खतरनाक परिणाम हो सकते है.
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