लखनऊ: डॉ. वाईएस सचान की आत्महत्या के मामले में पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यह बात साफ तौर पर कही गई थी कि मृतक को आठ चोटें धारदार हथियार से पहुंचाई गई थीं और गले पर लिगेचर मार्क था. बावजूद इसके सीबीआई ने मामले को आत्महत्या करार देते हुए, एक नहीं बल्कि दो-दो बार क्लोजर रिपोर्ट लगा दी. हालांकि अब कोर्ट ने सीबीआई के क्लोजर रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए तत्कालीन जेल अफसरों के साथ ही पुलिस महकमे के भी तत्कालीन आला अफसरों को तलब कर लिया है. यह आदेश विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट समृद्धि मिश्रा ने डॉ. सचान की पत्नी मालती सचान के प्रोटेस्ट प्रार्थना पत्र पर दिया.
इन्हें किया गया है तलब
कोर्ट ने इस मामले में आईपीसी की धरा 302 और 120-बी के तहत अपना पक्ष रखने के लिए तत्कालीन डीजीपी करमवीर सिंह, एडिशनल डीजीपी वीके गुप्ता और आईजी जोन लखनऊ सुबेह कुमार सिंह समेत लखनऊ जेल के तत्कालीन जेलर बीएस मुकुंद, डिप्टी जेलर सुनील कुमार सिंह, प्रधान बंदीरक्षक बाबू राम दूबे और बंदीरक्षक पहींद्र सिंह को हाजिर होने का आदेश दिया है.
सीबीआई की आत्महत्या वाली थ्योरी की डॉक्टरों ने उड़ाई धज्जियां
डॉ. सचान के शरीर का पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टरों डॉ. मौसमी सिंह, डॉ. सुनील कुमार सिंह और डॉ. शैलेश कुमार श्रीवास्तव ने कोर्ट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 202 के तहत दिए बयान में बताया कि मृतक के धरीर पर आठ चोटें थीं, जो धारदार हथियार से पहुंचाई गई थीं. साथ ही गले पर एक लिगेचर मार्क भी था. यह लिगेचर मार्क मरने के बाद का था.
डॉक्टरों ने कोर्ट के समक्ष स्पष्ट रूप से कहा है कि यह आत्महत्या का मामला नहीं लगता. कहा गया है कि कोई भी आत्महत्या करने वाला व्यक्ति सामान्यतः इतनी चोटें नहीं कारित कर सकता. यह भी बयान दिया है कि शरीर पर आई चोटें दाढी बनाने वाले ब्लेड से आना सम्भव नहीं है, बल्कि इन चोटों को पहुंचाने के लिए अत्यधिक बल का भी प्रयोग किया गया है. डॉक्टरों ने भी यह भी बयान दिया है कि मृतक के दाहिने और बाएं दोनों हाथों की कलाईयों की नसों को काटा गया है. आत्महत्या करने वाला बारी-बारी अपने दोनों हाथों की नसों को नहीं काट सकता.
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