लखनऊ : उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के दिन बहुरते दिखाई नहीं दे रहे हैं. विधानसभा चुनावों को पांच माह बीत चुके हैं और पार्टी को एक अदद प्रदेश अध्यक्ष ढूढ़े नहीं मिल रहा है. चुनाव के वक्त पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे अजय कुमार लल्लू खुद अपनी ही सीट नहीं बचा सके और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था. यही कारण है कि लल्लू ने प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ने का एलान किया था.
गौरतलब है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा था. पार्टी महज दो सीटों पर जीतने में कामयाब हुई थी. इनमें से एक थी कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद तिवारी की पुत्री आराधना मिश्रा 'मोना' की परंपरागत रामपुर खास विधान सभा सीट, तो दूसरी सीट थी महराजगंज की फरेंदा, जहां से वीरेंद्र चौधरी जीतने में कामयाब हुए थे. माना जा रहा है कि इन दोनों नेताओं का इन सीटों पर अपना निजी प्रभाव है. यदि वह निर्दलीय चुनाव भी लड़ें, तो जनता इन्हें पसंद करेगी. इससे पहले 2017 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को सात सीटें मिलीं थी. कांग्रेस ने 2022 के विधान सभा चुनाव प्रियंका गांधी के नेतृत्व में लड़ा था. स्वाभाविक है कि इस चुनाव में प्रियंका का जादू भी नहीं चला.
इस सबसे बुरी हार के बाद पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अब तक सदमे से उबर नहीं सका है. वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी में नेतृत्व का फैसला होना बाकी है. बड़े नेताओं में मतभेद और असंतोष सर्वविदित है. आज भी पार्टी के बड़े नेता रहे गुलामनबी आजाद ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. यही नहीं नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया और राहुल से जांच एजेंसियों की पूछताछ ने पार्टी की सारी गतिविधियों रोक सी दी हैं, क्योंकि पार्टी का संचालन गांधी परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमता है. प्रदेश में पार्टी के नेतृत्व के लिए वैसे भी कोई ढंग का चेहरा ढूढ़े नहीं मिल रहा है. दो-तीन नेताओं के पासपास ही चर्चा का दौर सिमट कर रह जाता है. कहा यह भी जा रहा है कि पार्टी का कोई भी बड़ा नेता प्रदेश का नेतृत्व करना नहीं चाह रहा है, क्योंकि निकट भविष्य में कांग्रेस की स्थिति ठीक होती दिखाई नहीं दे रही है. ऐसे में कौन नेता होगा, जो अपने सिर पर नाकामी का ठीकरा रखना चाहेगा?