लखनऊ : स्कूल में बच्चों की सुरक्षा व वाहनों से सफर करने वाले बच्चे सुरक्षित घर पहुंचें, इसके लिए समितियां तो कई बनीं लेकिन किसी भी समिति की कोई बैठक एक बार भी नहीं हुई. लिहाजा, बच्चों की सुरक्षा के साथ यह सभी समितियां खिलवाड़ करती नजर आईं. जब कोई घटना होती है तो एक-दूसरे पर ही ठीकरा फोड़ा जाता है.
स्कूली बच्चों के आवागमन से जुड़ीं हर जिले में तीन समितियां होती हैं. लखनऊ में भी जिला सड़क सुरक्षा समिति बनी है. इसके अध्यक्ष जिलाधिकारी हैं जबकि पुलिस कमिश्नर, एसएसपी, एसपी, सीएमओ, डीआइओएस, बीएसए, आरटीओ प्रवर्तन, लोक निर्माण विभाग, एनएचएआइ व बीमा कंपनियों के प्रतिनिधि इस समिति के सदस्य होते हैं. नियम है कि साल में चार बार बैठकें होनी चाहिए. लेकिन चार बैठकें तो दूर साल में एक भी बैठक नहीं हुई. जिला सड़क सुरक्षा समिति के अलावा जिला विद्यालय यान परिवहन सुरक्षा समिति होती है.
इसमें सड़क सुरक्षा समिति के सदस्यों के अलावा स्कूल प्रबंधन, प्राचार्य होते हैं. कम से कम इस समिति की भी साल में दो बार बैठक होनी चाहिए. लेकिन कोई बैठक नहीं हुई. इसी तरह हर स्कूल पर एक विद्यालय परिवहन समिति का गठन होता है. इसके अध्यक्ष संबंधित संस्थान के प्राचार्य होते हैं. नजदीकी थाने का एसएचओ, बीएसए, डीआइओएस, नायब तहसीलदार भी सदस्य होते हैं. इनमें से एक नोडल प्रतिनिधि होता है. इनकी भी कभी कोई बैठक नहीं हुई. अब सवाल ये है कि ये समितियां आखिर बनीं तो किस बात के लिए बनीं जब बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई भी जिम्मेदार फिक्रमंद ही नहीं है.
परिवहन विभाग पर ही फूटता है ठीकरा: गाजियाबाद के दयावती मोदी पब्लिक स्कूल में पिछले दिनों एक बड़ी दर्दनाक दुर्घटना हुई थी. इसमें बस के बाहर बच्चे ने सिर निकाला और खंभे से टकराने से उसकी मौत हो गई. फिर से स्कूलों के साथ ही इन सभी विभागों के जिम्मेदारों पर सवालिया निशान लगे. आनन-फानन पूरे मामले पर पर्दा डालने का प्रयास शुरू हो गया. विभाग के जिम्मेदार एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ने लगे. क्योंकि यह बस थी, लिहाजा सभी ने मिलकर परिवहन विभाग को ही जिम्मेदार ठहरा दिया. पूरी घटना के लिए ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के ही एआरटीओ और आरआई को सस्पेंड कर दिया गया जबकि इन सभी विभागों के अफसर भी बराबर के जिम्मेदार थे.