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ऑनलाइन पढ़ाई के चलते कम उम्र में हो रही बच्चों की आंखें कमजोर

हजरतगंज स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रेम कुमार दुबे बताते हैं कि "वर्तमान समय में अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 5 से 10 बच्चे आते हैं. मोबाइल फोन की स्क्रीन बच्चों की आंखों पर काफी बुरा प्रभाव छोड़ती है.

ऑनलाइन पढ़ाई
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Published : May 27, 2022, 9:53 PM IST

लखनऊ :आज के दौर में बच्चे स्मार्ट हो गए हैं. इनमें कम उम्र में ही तकनीक को सीखने समझने की क्षमता अधिक होती है लेकिन कोरोना काल में जिस तरह से पूरे दो साल तक बच्चों ने ऑनलाइन स्टडी की है. इसके चलते बहुत सारे बच्चे कम उम्र में चश्मा पहनने पर मजबूर हैं. हजरतगंज स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रेम कुमार दुबे बताते हैं कि "वर्तमान समय में अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 5 से 10 बच्चे आते हैं. मोबाइल फोन की स्क्रीन बच्चों की आंखों पर काफी बुरा प्रभाव छोड़ती है.

जानकारी देतीं संवाददाता अपर्णा शुक्ला

उन्होंने बताया कि पूरे दो साल तक बच्चों ने ऑनलाइन पढ़ाई की है. इसके अलावा आजकल बच्चे बाहर खेलने की बजाय वीडियो गेम और मोबाइल पर गेम खेलते हैं. जब आप लंबे समय तक स्क्रीन को लगातार देखते हैं और इस तरह आप रोजाना लंबे समय के लिए मोबाइल फोन पर फोकस करके काम करते हैं तो मोबाइल की रेडियंस आंखों की रेटिना पर पड़ती है जो धीरे-धीरे करके आंखों की रोशनी को कम करती है.

डॉक्टर दुबे ने बताया कि निकट दृष्टि दोष में कार्निया और लेंस, रेटिना पर ठीक तरह से फोकस नहीं कर पाते हैं. ऐसे बच्चों की पास की दृष्टि स्पष्ट होती है, लेकिन उन्हें दूर की चीजें धुंधली दिखाई देती है. यह समस्या उस समय होती है जब आंखों की पुतली थोड़ी लंबी हो जाती है या लेंस बहुत मोटा हो जाता है जिससे इमेज रेटीना पर बनने के बजाय उसके सामने बनने लगती है. इस समस्या को माइनस नंबर का चश्मा पहन कर ठीक किया जा सकता है. वहीं, दूर दृष्टि से पीड़ित बच्चों को दूर का साफ दिखाई देता है लेकिन पास की चीजें स्पष्ट फोकस नहीं हो पाती हैं. यह तब होता है जब आंखों की पुतली बहुत छोटी हो जाती है या लेंस पतला हो जाता है. इससे इमेज रेटीना के पीछे बनने लगती है. इसमें प्लस नंबर का चश्मा पहनना पड़ता है.

ऑनलाइन पढ़ाई से बढ़ी आंखों की पावर :डॉक्टर प्रेम बताते हैं कि कोरोना काल से पहले हमारे यहां बहुत अधिक बच्चे नहीं आते थे और जो बच्चे आते थे वह 14-15 साल से अधिक के होते थे लेकिन इस समय जो बच्चे आ रहे हैं उनकी उम्र काफी कम है. कम उम्र के बच्चों कि अगर आंखें कमजोर हो रही हैं तो इसके पीछे की सबसे प्रमुख वजह मोबाइल फोन, टीवी व लैपटॉप हैं. इनके जरिए जो बच्चों की आंखों में रेडियंस पहुंचती है वह काफी ज्यादा खतरनाक होती है. एक मिनट में 10 बार पलकें झपकते हैं लेकिन बच्चे जब ऑनलाइन गेम खेल रहे होते हैं या कार्टून देख रहे होते हैं या फिर पढ़ाई कर रहे होते हैं. उस समय बच्चों का फोकस स्क्रीन पर होता है. वह नॉर्मली पलक नहीं झपकाते हैं. जिसकी वजह से आंखों का पानी सूख जाता है. इसके बाद उन्हें धुंधला दिखाई देने जैसी समस्या होने लगती है.

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बचाव :
- बच्चों को गैजेट्स का अधिक इस्तेमाल न करने दें. बच्चों की आंखें नाजुक होती हैं, स्क्रीन को अधिक समय तक घूरने से उनकी आंखों को स्थाई रूप से नुकसान पहुंचता है.
- बच्चों को संतुलित और पोषक भोजन खाने की आदत डालें ताकि उनकी आंखों का विकास उचित रूप से हो सके.
- बच्चों को प्रतिदिन 6 से 8 गिलास पानी पीने के लिए प्रेरित करें पानी आंखों में नमी और ताजगी बनाए रखता है.
- अब क्लासेस फिर से चलने लगी हैं इसलिए बच्चों को ऑनलाइन क्लास या पीडीएफ के जरिए न पढ़ने दें इससे आंखों पर खतरनाक रेडियंस पड़ता है.
- बच्चों को देर रात तक न जगने दें. सोने और उठने का समय जरूर निर्धारित करें.
- ज्यादातर बच्चे कुर्सी में बैठकर टेबल पर लेटकर पढ़ाई करते हैं, ज्यादा नजदीक से किताबों को नहीं देखना चाहिए या ज्यादा नजदीक से मोबाइल फोन या स्क्रीन पर भी नहीं देखना चाहिए. इससे उन्हें बचाएं.
- बच्चे स्कूल के अलावा अगर घर में ही रहते हैं तो उन्हें बाहर टहलाएं, घुमाएं उन्हें प्राकृतिक प्रकाश में समय बिताने दें.
- खाने में हरी सब्जियां जरूर रखें और मौसमीय फल जरूर खिलाएं.
- जंक फूड से बच्चों की दूरी बढ़ाएं घर पर स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन बनाकर खिलाएं.
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