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Published : Jan 26, 2022, 7:00 PM IST

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कैंसर के इलाज के लिए रुपयों की किल्लत, पुलिस इंस्पेक्टर अनूप स्वामी ने वीआरएस के लिए किया आवेदन

कैंसर पीड़ित इंस्पेक्टर अनूप स्वामी को इलाज के लिए रुपये न होने के कारण अपनी सरकारी नौकरी छोड़नी पड़ रही है. मिर्जापुर के रहने वाले यूपी पुलिस के इंस्पेक्टर अनूप स्वामी ने 14 साल की नौकरी बाकी होने के बावजूद स्‍वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (VRS) के लिए आवेदन किया है.

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पुलिस इंस्पेक्टर अनूप स्वामी ने वीआरएस

लखनऊ:मिर्जापुर के रहने वाले यूपी पुलिस के इंस्पेक्टर अनूप स्वामी पिछले चार साल से फेफड़े के कैंसर से जूझ रहे हैं. अब उनके पास इलाज के लिए रुपये नहीं बचे हैं, इसीलिए उन्होंने स्‍वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (VRS) के लिए आवेदन किया है.


मिर्जापुर के अनूप स्वामी 2001 बैच के इंस्पेक्टर हैं. वो इस समय यूपी डायल 112 मुख्यालय लखनऊ में तैनात हैं. वो लखनऊ में कुर्सी रोड पर अपने बूढ़े माता-पिता, पत्नी और दो बच्चों के साथ रह रहे हैं. इन्हें एडेनोइड सिस्टिक कार्सिनोमा नामक दुर्लभ प्रकार का कैंसर है. साल 2017 से अनूप इस कैंसर से लड़ रहे हैं. उनका इलाज दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर संस्थान में हो रहा है.

अनूप स्वामी के मुताबिक पिछले 4 साल में उन्होंने अपने इलाज में करीब 30 लाख रुपये खर्च कर दिए. जीवन रक्षा योजना के तहत उन्हें पुलिस विभाग से भी इलाज के लिए 10 लाख रुपये मिले थे. उनकी पूरी जमा पूंजी इलाज में खर्च हो चुकी है. आगे के इलाज के लिए उन्होंने वीआरएस के लिए आवेदन किया है.


अनूप स्वामी को एडेनोइड सिस्टिक कार्सिनोमा कैंसर है, जो एक हजार मरीजों में किसी एक को ही होता है. इसका इलाज भारत में दो जगह ही सम्भव है, जिनमें से एक दिल्ली का राजीव गांधी कैंसर संस्थान है. राजीव गांधी कैंसर संस्थान में बेड का चार्ज 2,900 रुपये प्रतिदिन है, लेकिन विभाग पीजीआई लखनऊ के मानक के अनुसार सिर्फ 1,200 रुपये ही देता है. इसी तरह हर बिल की आधी रकम ही अनूप स्वामी को विभाग से मिल पाती है.


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पिछले 20 साल की नौकरी में अनूप स्वामी ने अनगिनत लोगों की मदद की, लेकिन आज उन्हें खुद मदद की जरूरत है. अनूप ने कहा कि MSc करने के बाद उन्होंने घरवालों के विरोध करने के बावजूद यूपी पुलिस सेवा में शामिल हुए थे. लेकिन आज सांसों को बचाने के लिए उनको वर्दी छोड़नी पड़ रही है. वो कभी नहीं चाहते थे कि उन्हें इलाज के लिए नौकरी छोड़नी पड़े. इसीलिए उन्होंने कई पुलिस वेलफेयर संस्थाओं और एनजीओ से संपर्क भी किया, लेकिन कोई सफलता नहीं हुई. इसीलिए उन्होंने वीआरएस लेने का फैसला किया.

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