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देश की पहली लेडी डाॅन जिसे कहते थे किडनैपिंग क्वीन, जानिये अनसुनी कहानी

लेडी डॉन एक ऐसा शब्द जिसे सुनकर जहन में खौफ व मासूमियत दोनों आती है. आज हम आपको कहानी सुनाते हैं एक ऐसी लड़की की जो कम समय में तमाम ख्वाहिशें पूरी करने का सपना लेकर मुम्बई आई थी. वो लड़की अर्चना बालमुकुंद शर्मा से लेडी डॉन बन गयी.

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Published : Aug 24, 2022, 8:35 PM IST

Updated : Aug 24, 2022, 11:03 PM IST

लखनऊ : लेडी डॉन एक ऐसा शब्द जिसे सुनकर जहन में खौफ व मासूमियत दोनों आती है. आज हम आपको कहानी सुनाते हैं एक ऐसी लड़की की जो कम समय में तमाम ख्वाहिशें पूरी करने का सपना लेकर मुम्बई आई थी. इसी महत्वाकांक्षा ने उसे अपराध की दुनिया के सबसे बड़े चेहरे ओम प्रकाश उर्फ बबलू श्रीवास्तव तक पहुंचाया. वो लड़की अर्चना बालमुकुंद शर्मा से लेडी डॉन बन गयी.

ये शताब्दी का आखिरी दौर का था. लखनऊ में जरायम की दुनिया में एक नया अध्याय बहुत मजबूत हो रहा था. कहने को तो गैंग बबलू श्रीवास्तव का था, लेकिन चर्चा हो रही थी अर्चना बालमुकुंद शर्मा के नाम की. अर्चना की कहानी में रहस्य ही रहस्य है. देखते ही देखते बचपन में रामलीला में सीता का रोल निभाने वाली सीधी सादी लड़की हिंदुस्तान की पहली लेडी डॉन बन गई. कहते हैं कि अर्चना शर्मा ने अपने कई नाम रख रखे थे, जिसमें पप्पी शर्मा, महक शर्मा, मनीषा, मीनाक्षी व सलमा मशहूर थे. अर्चना की असल कहानी महाकाल के धाम उज्जैन से शुरू होती है. उज्जैन के पाइप फैक्ट्री माधव नगर में रहने वाले एमपी पुलिस के हेड कांस्टेबल बालमुकुंद शर्मा की चार बेटियों में तीसरे नम्बर बेटी थी अर्चना शर्मा. बालमुकुंद अपनी बेटी अर्चना को पढ़ा लिखाकर वकील बनाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने अपने एक रिश्तेदार से कहकर लखनऊ यूनिवर्सिटी में अर्चना का दाखिला करा दिया था. पिता भले ही बेटी को वकील बनाना चाहते थे, लेकिन अर्चना के मन में कुछ और ही चल रहा था.



अर्चना को फिल्मों में अपनी किस्मत अजमानी थी. पढ़ाई का आखिरी साल छोड़कर वो बॉलीवुड में हीरोइन बनने का सपना लेकर पहुंच गई, लेकिन एक फ़िल्म में छोटा सा रोल मिलने के बाद उसे काम मिलना बंद हो गया. ऐसे में उसके सपने औंधे मुंह गिर गए. कहा तो ये भी जाता है कि अर्चना को मुम्बई में हीरोइन बनने का सपना दिखाने वाला उसके साथ पढ़ने वाले गाजीपुर जिले के ओम प्रकाश उर्फ बबलू श्रीवास्तव था. उस दौर में क्राइम रिपोर्टिंग करने वाले मनीष मिश्रा बताते हैं कि अर्चना व बबलू बस एक दूसरे को उतना ही जानते थे, जितना कॉलेज की किसी क्लास में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं एक दूसरे को जानते हैं. मनीष कहते हैं कि बबलू ने अर्चना को अपना सपना पूरा करने की हिम्मत दी थी, जिस कारण वो मुंबई चली गयी. हालांकि उसके बाद बबलू श्रीवास्तव की एंट्री जरायम की दुनिया में हो गई, जिससे शायद अर्चना उसके दिमाग से ओझल हो गयी. वहीं दूसरी तरफ अर्चना मुम्बई में संघर्ष कर रही थी.

जानकारी देते पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पांडेय

मुम्बई में अर्चना संघर्ष कर रही थी, उसके बावजूद उसे काम नहीं मिल रहा था. अब वो परेशान रहने लगी थी. उसे लगा कि अब उसका जीवन रुक चुका है. ऐसे में उसके सामने उम्मीद की रोशनी जली और एक नामचीन ओर्केस्टा बावला म्यूजिक कम्पनी में उसे सिंगर व स्टेज आर्टिस्ट का काम मिला. आईजी के पद से रिटायर हुए तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी राजेश पांडेय बताते हैं कि दिसम्बर 1993 में अर्चना बावला म्यूजिक पार्टी के साथ दुबई गयी. जहां उसकी मुलाकात बड़े व्यापारी पीतांबरा मिगलानी से हुई. दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा और मिगलानी अर्चना को लेकर मुंबई वापस आ गया. 10 फरवरी 1994 में दोनों ने सगाई कर ली और मई 1995 को शादी. अब दोनों ही लोग दुबई में रहने लगे. इसी दौरान अर्चना को पीताम्बरा की दूसरी पत्नी के बारे में पता चला तो पीताम्बरा के बोरीवली स्थित आलिशान मकान की पावर ऑफ अटॉर्नी अपने नाम कराकर मुम्बई आ गई.

पीताम्बरा भी उसके पीछे-पीछे मुम्बई आया और अर्चना का पासपोर्ट छीनकर उसे जला दिया. अब अर्चना का पासपोर्ट जल चुका था. पति पीताम्बरा भी उससे अलग हो चुका था. ऐसे में उसने दुबई वापस जाने के लिए अपने करीबी सुरजीत सिंह बाला से संपर्क किया और रेफरेन्स वीजा बनवाकर साल 1995 में दुबई पहुंच गई. अर्चना ने दुबई के एक क्लब में नौकरी की, जहां उसकी मुलाकात दाऊद इब्राहिम के गुर्गे इरफान गोगा से हुई. इरफान का दुबई में सिक्का चलता था. इरफान ने अर्चना के लुक्स, उसके बोलने के तरीकों को देखकर अपने गैंग में शामिल होने के लिए कहा. अर्चना ने पहले तो मना किया, लेकिन दूसरी मुलाकात में हां कर दी. अर्चना दुबई के फालूदा होटल में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी करने लगी थी. इसी दौरान इरफान ने इंदौर के बड़े व्यापारी जगदीश मोतीरमवानी की किडनैपिंग का काम अर्चना को दिया. उसने ये काम बखूबी किया, अब लोग अर्चना को किडनैपिंग क्वीन कहने लगे थे.

अर्चना बालमुकुंद शर्मा




वैसे तो कहा जाता है कि अर्चना की बबलू श्रीवास्तव से मुलाकात लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही हुई थी. तब से ही वो बबलू के साथ रहती थी. इस बात की तस्दीक क्राइम फील्ड की रिपोर्टिंग करने वाले मनीष मिश्रा भी करते हैं. वह बताते हैं कि बबलू श्रीवास्तव अर्चना को अपने साथ सिर्फ इसलिए रखता था क्योंकि जब भी वो हवाला का पैसा या फिर किडनैपिंग की रैनसम मनी गाड़ी से ले जाता था तो अर्चना के साथ होने पर पुलिस उन्हें अनदेखा कर देती थी, लेकिन पुलिस अधिकारी इस बात को नहीं मानते हैं. उनका मानना है कि अर्चना की बबलू से पहचान साल 1997 में हुई थी.

रिटायर्ड पुलिस अधिकारी के मुताबिक, साल 1997 में पहली बार अर्चना ने बबलू श्रीवास्तव की सिर्फ आवाज सुनी थी. हुआ ये था कि 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के बाद अंडरवर्ल्ड दो समुदायों में बंट गया था. बबलू श्रीवास्तव ने ब्लास्ट की घटना का विरोध करते हुए दाऊद इब्राहिम से नाता तोड़ लिया व दुबई से नेपाल आ गया. इरफान गोगा ने दाऊद की जगह बबलू को चुना और वो भी उसी के साथ हो चला. इसी दौरान 1997 को बबलू को सिंगापुर में गिरफ्तार कर लिया गया और भारत ले आया गया. अब इरफान अर्चना के साथ मिलकर गैंग को आगे बढ़ा रहा था. अर्चना इरफान गोगा के इशारों पर एक के बाद एक भारत के अलग अलग हिस्सों में किडनैपिंग कर रही थी. इसी दौरान उसने अर्चना शर्मा को एक बड़े बिल्डर एल डी व्यास की किडनैपिंग का जिम्मा दिया.

अर्चना शर्मा का घर जहां उसकी मां व बहन रहती है

27 सितम्बर 1997 की तारीख को अर्चना ने एल डी व्यास की किडनैपिंग के लिए चुना. उसने व्यास को पहले अपने प्यार में फंसाया, फिर उसे एक फ्लैट ले आई. जिसके बाद गोगा ने अर्चना को फोन किया और कहा कि हम सबके सबसे बड़े भाई आज तुम्हे फोन करेंगे और तुम उनकी बात एलडी व्यास से करा देना. ये वो समय था जब अर्चना शर्मा पहली बार बबलू श्रीवास्तव से बात कर रही थी. अब अर्चना जान चुकी थी कि इरफान तो सिर्फ गुर्गा है डॉन तो बबलू श्रीवास्तव है. धीरे-धीरे दोनों में बातें शुरू हुईं तो अब बबलू सीधे अर्चना से बात करता था. अर्चना ने बबलू के इशारों में उस वक्त के बड़े उद्योगपति जैसे गौतम अडानी, सतीश शेट्टी, सागर लखतक व रमाकांत दुबे की किडनैपिंग की थी.



यूपी में लखनऊ के करीबी जिलें में रहने बबलू श्रीवास्तव के मुंह बोले बड़े भाई बताते हैं कि बबलू उनसे हर बात साझा करता था. उसे किसने धोखा दिया, कौन है जो उसका फायदा उठा रहा है. हर बात वो उन्हें बताया करता था. हालांकि वो अर्चना के बारे में उनसे इसलिए बात नहीं करता था क्योंकि वो बबलू से बड़े थे. वे बताते हैं कि उन्होंने अर्चना शर्मा के बारे में सुना था, इसलिए एक दिन उन्होंने बबलू से पूछ लिया कि अर्चना कौन है. जिस पर बबलू ने कहा कि उसने अपने जीवन में कभी भी ऐसी लड़की नहीं देखी है जो खूबसूरत होने के साथ साथ इतनी शातिर हो सकती है. बबलू ने उन्हें बताया कि अर्चना किसी बड़े व्यापारी, पुलिस अधिकारी व नेता को अपने जाल में फंसा सकती है, इसलिए वो उसकी जरूरत है. वो ये भी बताते हैं कि बबलू ने कभी भी यह स्वीकार नहीं किया कि वो अर्चना से मोहब्बत करता है, हां ये जरूर कहा कि वो उसकी दोस्त है और उसके गैंग की सबसे मजबूत किरदार. वो कहते हैं कि इसी दौरान उन्होंने सुना था कि अर्चना ने ही बबलू और छोटा राजन के लिए नेपाल में मिर्जा दिलशाद बेग की हत्या करने का फुलप्रूफ प्लान बनाया था.


बबलू जेल में बंद था और इरफान गोगा मारा जा चुका था, ऐसे में अर्चना शर्मा अब गुमनामी की जिंदगी जी रही थी. इसी दौरान साल 1998 में मई के महीने में अर्चना को एक बड़े काम को अंजाम देने की जिम्मेदारी मिलने वाली थी. दरअसल, नेपाल के सांसद, पूर्व मंत्री, आर्म्स डीलर व डॉन मिर्जा दिलशाद बेग भारतीय एजेंसियों के लिए सिरदर्द बनता जा रहा था. दिलशाद पाकिस्तानियों की नेपाल से भारत में घुसपैठ करा रहा था. भारत में हथियार सप्लाई करने के साथ साथ यहां से चोरी की गई गाड़ियों की बड़ी मंडी भी चला रहा था. ऐसे में भारतीय सुरक्षा एजेंसियां उसे कैसे भी अपने रास्ते से हटाना चाहती थीं.

पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय बताते हैं कि 90 के दशक में आने वाली लग्जरी कारों को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मुंबई, दिल्ली और कोलकाता से कारें चुराकर नेपाल में दिलशाद बेग के गैराज पर पहुंचा दी जाती थीं. मिर्जा दिलशाद बेग चोरी की इन कारों को खुलेआम बेचता, न भारत और न ही नेपाल सरकार उसका कुछ बिगाड़ पाती. उन्होंने बताया कि एक बार तो लखनऊ के एक एडीएम ने बेटी के दहेज में देने के लिए फियेट कार खरीदी थी. खरीदने के दस दिन बाद ही वो चोरी हो गई. जब पता किया गया तो पता चला कि वो नेपाल में मिर्जा के गैराज में खड़ी है. तमाम दबाव के बाद मिर्जा ने 25 हजार रुपये लेने के बाद ही एडीएम की कार वापस की थी. एक बार मिर्जा के ठिकाने में मौजूद घोषी नाम के अपराधी को पकड़ने के लिए रेड डालने गई यूपी पुलिस की टीम को मिर्जा के आदमियों ने पकड़ लिया, उन्हें पीटा गया और कपड़े उतरवाकर वापस भेज दिया गया.

यूपी पुलिस के लिए मिर्जा सिरदर्द बनता जा रहा था. पुलिस के बड़े अधिकारी ने एक सेल्स टैक्स अधिकारी को जिसके बबलू से ठीक संबंध थे उन्हें जेल भेजा और मिर्जा को मारने के लिए मनाया. इस काम के लिए बबलू ने अर्चना शर्मा को चुना. बबलू ने अर्चना को नेपाल भेजा. एक जून 1998 के आसपास अर्चना नेपाल पहुंच गई. बबलू ने मिर्जा से ही कहकर अर्चना को रहने की जगह दिलवाई, लेकिन अर्चना ने जगह छोटी होने का बहाना बनाकर रहने की दूसरी जगह मांगी. मिर्जा ने अर्चना के लिए एक फ्लैट का इंतजाम किया और अर्चना वहीं पर रहने लगी. बबलू ने अपने तीन शूटर फरीद तनाशा, मंजीत सिंह मांगे व सत्ते को भी नेपाल भेज दिया.




राजेश पांडेय बताते हैं कि अर्चना बेहद शातिर थी. अर्चना ने बेग से करीबी बढ़ाने की कोशिश की, अर्चना उसे अपने फ्लैट पर बुलाना चाहती थी जिससे कि वहां उसे ठिकाने लगाया जा सके. एक दिन मिर्जा अर्चना के फ्लैट में सिर्फ अपने ड्राइवर के साथ पहुंच गया. तारीख थी 29 जून 1998. जैसे ही मिर्जा अर्चना से मिलकर घर से बाहर निकला, मंजीत मांगे व फरीद तनाशा बाइक से मिर्जा की गाड़ी के पास पहुंचा. मांगे ने ये पूछते ही कैसे हो मिर्जा भाई ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी और करीब सात से आठ गोलियां मिर्जा के जिस्म में उतार डालीं. राजेश पांडेय साल 1998 में यूपी एसटीएफ में तैनात थे. वो बताते हैं कि मंजीत मांगे और अर्चना शर्मा भाई बहन बनकर गुजरात में रह रहे थे.

इसी दौरान 9 सितम्बर 1998 को उन्होंने गांधी नगर के एक व्यापारी की किडनैपिंग का प्रयास किया था. मुकदमा दर्ज हुआ और एक नम्बर का पता चला, मंजीत मांगे जो लखनऊ में रहता था उसके नाम था. गुजरात पुलिस को ये काम श्री प्रकाश शुक्ला का लगा तो उन्होंने यूपी एटीएस से मदद मांगी. यूपी एटीएस ने जब नम्बर ट्रेस किये तो वो कोलकाता में एक्टिव मिले. टीम कोलकाता पहुंच गई. यहां अर्चना अपने साथियों के साथ एक होटल व्यवसायी राजू पुनवाई की हत्या की साजिश रच रही थी, लेकिन 12 दिसम्बर 1998 को उन्होंने मंजीत मांगे समेत बबलू श्रीवास्तव के 4 गुर्गों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया. वो बताते हैं कि वहां अर्चना शर्मा भी मौजूद थी, लेकिन मौका देखकर वो फरार हो गई. इसके बाद से अब तक उसका एक भी सुराग नहीं मिल सका.

अर्चना शर्मा वर्तमान में कहां हैं इसको लेकर अलग-अलग भ्रांतियां हैं. वरिष्ठ पत्रकार व 90 के दशक में क्राइम रिपोर्टिंग करने वाले मनीष मिश्रा का कहना है कि उन्हें खुफिया एजेंसी में काम करने वाले एक रिटायर्ड अधिकारी ने बताया कि मिर्जा दिलशाद बेग को मारने के बाद अर्चना नेपाल के एक क्लब में काम करने लगी थी. इस दौरान उसी क्लब में एक अमेरिकन ग्रुप आया था. जिसमें एक भारतीय मूल का भी लड़का था. अर्चना और उस व्यक्ति की दोस्ती हुई और दोनों ने शादी करने का इरादा कर लिया. वो कहते हैं कि अर्चना के पास नेपाल समेत कई देशों के पासपोर्ट थे, ऐसे में वो आसानी से उसी अमेरिकन व्यक्ति के साथ यूएसए चली गयी और अपनी जिंदगी जी रही है. हालांकि इससे जुड़ी एक दूसरी भी कहानी चलती है.

नाम न बताने की शर्त पर एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी बताते हैं कि जब अर्चना की यूएसए में होने की बात उन्हें पता चली थी, तब उन्होंने बरेली सेंट्रल जेल में बंद बबलू श्रीवास्तव से मुलाकात की थी. इस दौरान उन्होंने बबलू से ये पूछा कि क्या अर्चना यूएसए में है. तो उसने हल्की से मुस्कान दी और बताया कि वो अब मर चुकी है. अधिकारी ने जब मौत का कारण पूछा तो बबलू ने बताया कि अर्चना की सबसे बड़ी गलती थी वो मिर्जा दिलशाद की हत्या के बाद वो नेपाल में रुकी रही. जहां मिर्जा बेग के लोगों ने अर्चना को न सिर्फ मारा बल्कि उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे.

राजेश पांडेय बताते हैं कि अर्चना शर्मा के खिलाफ भारत समेत 10 देशों में रेड कॉर्नर नॉटिस जारी था. 1998 को मुठभेड़ के दौरान फरार होने के बाद यूपी पुलिस समेत देश के कई राज्यों ने उसे फरार घोषित कर दिया था. वो कहते हैं कि आज भी अर्चना यूपी पुलिस की फाइलों में मोस्टवांटेड अपराधी है.


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पिछले 24 साल से अर्चना बालमुकुंद शर्मा का पता नहीं है. सरकारी फाइलों में वह फरार है. उसके गैंग के लोग उसे मरा मान चुके हैं तो कुछ मानते हैं कि भारत में किडनैपिंग क्वीन बन चुकी अर्चना यूएसए में अपनी नई जिंदगी की शुरुआत कर चुकी है, लेकिन उज्जैन में उसके घर में अब सब कुछ बदल चुका है. 28 जून 2022 को अर्चना शर्मा के पिता की मौत हो गयी. उसकी दो बड़ी बहनों की मौत काफी वक्त पहले ही हो चुकी है. अब उसके घर में बूढ़ी मां है, जिसका ख्याल अर्चना की सबसे छोटी बहन रख रही है.

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Last Updated : Aug 24, 2022, 11:03 PM IST

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