उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / city

सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम में संशोधन से मिलेगी राहत : सुरेश खन्ना

उत्तर प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1860 में समय की मांग के अनुसार आवश्यक समझे गये कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किये गये हैं.

Etv Bharat
Etv Bharat

By

Published : Aug 10, 2022, 8:48 PM IST

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1860 में समय की मांग के अनुसार आवश्यक समझे गये कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किये गये हैं. उन्होंने बताया कि सोसाइटी की कठिनाईयों के निवारण के लिए समय-समय पर इस अधिनियम में राज्य संशोधन किये जाते रहे हैं. अधिनियम में वर्तमान प्राविधानों से व्यावहारिक कठिनाईयों का अनुभव किया जा रहा था, जिनके सामाधान के लिये सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2021 द्वारा अधिनियम के कुछ प्राविधानों में आवश्यक संशोधन किये गये हैं. उन्होंने कहा कि सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम में संशोधन से राहत मिलेगी.


वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने बुधवार को विधानसभा में कहा कि सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2021 के अधीन संस्थाओं के पंजीकरण, नवीनीकरण, सोसायटी के सदस्यों के चयन व निर्वाचन के सम्बन्ध में यह व्यवस्था की गयी है. उन्होंने कहा कि पूर्व में उप रजिस्ट्रार व सहायक रजिस्ट्रार तथा अधिनियम की धारा 25 (1) के अधीन विहित प्राधिकारी (उप जिलाधिकारी) द्वारा पारित निर्णयों के विरूद्ध अपील का प्राविधान न होने के कारण जनसामान्य को अत्यधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है. साथ ही जनमानस को इसके लिए प्रायः उच्च न्यायालय का सहारा लेना पड़ता था. वित्त मंत्री ने बताया कि सोसाइटी के सदस्यों की चयन की प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाये जाने के उद्देश्य से अधिनियम में यह प्राविधान किया गया है कि शासी निकाय के अनुमोदन के पश्चात ही साधारण सभा की सूची में कोई भी परिवर्तन किया जाना विधिमान्य होगा.

संशोधन के पूर्व अधिनियम में साधारण सभा की सूची में नये सदस्यों के आगमन, हटाये जाने, सदस्यों की मृत्यु तथा त्याग पत्र देने के पश्चात परिवर्तन के लिये एक माह में संशोधित सूची बिना शासी निकाय के अनुमोदन के रजिस्ट्रार को दाखिल करने की व्यवस्था थी. वित्त मंत्री ने बताया कि अधिनियम में वर्ष 1979 में धारा-5 (ए) जोड़ी गयी थी. जिसमें यह प्राविधान रखा गया था कि बिना सक्षम न्यायालय की पूर्व अनुमति के सोसाइटी की अचल सम्पत्ति के अंतरण को अविधिमान्य घोषित कर दिया जाये. यह धारा वर्ष 2009 में समाप्त कर दी गयी थी, फलस्वरूप सोसाइटी की अचल संपत्तियों का अंतरण तेजी से होने लगा. उन्होंने बताया कि इस प्रवृत्ति पर रोक लगाये जाने तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि अचल सम्पत्तियों का अंतरण अनियमित रीति से न किया जा सके. अधिनियम में 1979 में जोड़ी गयी धारा 5(ए) को पुनः स्थापित किया गया है, जिसके अनुसार यदि सोसाइटी की अचल सम्पत्ति का अंतरण, दान, रेहन, विक्रय आदि सक्षम न्यायालय के पूर्व अनुमति के बिना किया जाता है तो वह विधिसम्मत नहीं होगा.

यह भी पढ़ें : लखनऊ के समिट बिल्डिंग में पहला एमएसएमई मार्ट बनकर तैयार, ये होगा खास
वित्त मंत्री ने बताया कि सोसाइटी के उन्नयन एवं उसमें स्वच्छ छवि के व्यक्तियों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के दृष्टि से अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति, जो किसी अपराधिक मामले में सक्षम न्यायालय द्वारा दोषी पाये जाने तथा दो वर्ष या उससे अधिक समय के लिये दंडादेश हो तो ऐसा व्यक्ति किसी सोसाइटी में पद धारण के लिए अयोग्य होगा. पूर्व में अधिनियम में सक्षम न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये गये किसी व्यक्ति को समिति में सदस्य या अन्य पद पर चयन के लिये अयोग्य ठहराये जाने का कोई प्राविधान नहीं होने के कारण समितियों में अयोग्य व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व बढ़ता जा रहा था.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

ABOUT THE AUTHOR

...view details