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अखिलेश का साथ छोड़ रहे हैं सहयोगी दल, लोकसभा उपचुनाव में लग सकता है तगड़ा झटका

लोकसभा की दो सीटों पर उपचुनाव होने हैं. विधान परिषद चुनाव में सहयोगी दलों को प्रतिनिधित्व न मिलने से सभी दल अखिलेश यादव से नाराज हैं. माना जा रहा है कि उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

लोकसभा उपचुनाव
लोकसभा उपचुनाव

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Published : Jun 8, 2022, 11:11 PM IST

लखनऊ : 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव के साथ गठबंधन के साथी के रूप में जुड़े कई छोटे दल अब दूर हो रहे हैं. विधान परिषद चुनाव में सहयोगी दलों को प्रतिनिधित्व न मिलने से सभी दल नाराज हैं. महान दल के अध्यक्ष केशव खुलकर मैदान में आ गए हैं. वहीं सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर भी नाराज हैं. जनवादी पार्टी के अध्यक्ष संजय चौहान भी खफा हैं. ऐसे में इन दलों की नाराजगी से अब लोकसभा की दो सीटों पर हो रहे उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

विधानसभा चुनाव 2022 में समाजवादी पार्टी ने छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर गठबंधन किया था. सपा की कोशिश थी कि इन छोटे दलों के सहयोग से सत्ता की सियासी कुर्सी पर काबिज हुआ जा सके, लेकिन जनता ने भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाने का फैसला किया. उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल के रूप में समाजवादी पार्टी ने विधान परिषद के 13 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में दो मुस्लिम चेहरे व 2 पिछड़े चेहरे चुनाव मैदान में उतारे हैं.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

ऐसे में अखिलेश यादव ने सिर्फ समाजवादी पार्टी से जुड़े नेताओं को ही प्रत्याशी बनाया है किसी भी सहयोगी दल के नेता को विधान परिषद भेजने का फैसला नहीं किया है. जिसके बाद महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने समाजवादी पार्टी के साथ हुए गठबंधन को तोड़ने का ऐलान कर दिया है. उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव चाटुकारों से घिरे हुए हैं. वह पिछड़ों का सम्मान नहीं कर रहे हैं. इसके अलावा दूसरे सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की नाराजगी सामने आ रही है. सुभासपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता की तरफ से भी नाराजगी भरा ट्वीट सामने आया है.

आजमगढ़ सीट पर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का राजभर समाज व अन्य पिछड़ी जातियों का काफी वोट बैंक है. राजभर की नाराजगी के चलते यह सीट समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है. देखना यह होगा कि अखिलेश यादव ओमप्रकाश राजभर को मना पाते हैं या नहीं. रामपुर सीट पर भी लड़ाई काफी दिलचस्प बताई जा रही है. कुल मिलाकर अखिलेश यादव अपने गठबंधन वाले साथियों को साथ लेकर आगे नहीं पढ़ पा रहे हैं जिससे उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है.


सूत्र बताते हैं कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर अपने बेटे के लिए विधान परिषद का टिकट चाहते थे, लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनको तवज्जो नहीं दिया. इसके बाद से वह नाराज हैं. राजभर से जुड़े नेताओं का कहना है कि अगर सपा ने अपने एक सहयोगी को राज्यसभा भेजा तो सुभासपा को विधान परिषद भेजना चाहिए था, लेकिन उन्‍होंने ऐसा नहीं किया. यह ठीक बात नहीं है. विधानसभा चुनाव में सुभासपा ने बहुत मदद की.

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता पीयूष मिश्रा ने कहा कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का आज का फैसला निश्चित ही हमारी पार्टी के कार्यकर्ताओं को निराश करने वाला है. एक सहयोगी 38 सीट लड़कर 8 सीट जीतता है तो उन्हें राज्यसभा भेजा जा रहा है और जब हम 16 सीट लड़कर 6 जीतते हैं तो हमारी उपेक्षा, ऐसा क्यों?

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक : राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि विधान सभा में इस बार द्विदलीय व्यवस्था कायम हुई है. लगा था कि सपा मजबूत भूमिका का निर्वाह करेगी, लेकिन बजट सत्र में ही य़ह धारणा निर्मूल साबित हुई. चुनाव के बाद से ही इस पार्टी को आंतरिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है. इस बात का नकारात्मक और मनोवैज्ञानिक असर भी दिखने लगा है. यूज एंड थ्रो का संदेश भी जा रहा है.

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वह कहते हैं कि चुनाव में जिनका सहयोग लिया, जिनके साथ सम्मानजनक व्यवहार का वादा किया गया उनकी अवहेलना शुरू हो गई है. शिवपाल यादव ने पहले ही नाराजगी व्यक्त कर दी थी. अब ओमप्रकाश राजभर भी नसीहत दे रहे हैं. वह अपने पुत्र को विधान परिषद में भेजना चाहते थे. अखिलेश ने उन्हें निराश किया है. पार्टी को अपने पुराने समीकरण पर ही विश्वास है. बिडम्बना य़ह है कि कपिल सिब्बल और जयन्त चौधरी जैसे नेताओं पर विश्वास किया गया, लेकिन ये लोग कब तक विश्वास पर कायम रहेंगे, इसकी कोई गारन्टी नहीं है. लग रहा है कि पार्टी ने आजम खान, शिवपाल यादव, ओम प्रकाश राज्यभर सहित अनेक नेताओं से दूरी बनाने का निर्णय ले लिया है. जिससे समाजवादी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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