लखनऊ : मौजूदा खरीफ के सीजन में औसत से कम बारिश की वजह से किसानों को होने वाली क्षति की भरपाई कैसे हो, इसके विचार में प्रदेश सरकार जुट गई है. इस बाबत सरकार दो तरह की रणनीति बना रही है. समस्या का स्थायी समाधान और हुई क्षति की भरपाई. कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही के अनुसार स्थाई समाधान के लिए हम किसानों को अधिक से अधिक संख्या में सोलर पंप देंगे. साथ ही पहले से जारी खेत-तालाब योजना के तहत कम बारिश वाले क्षेत्रों, क्रिटिकल एवं सेमी क्रिटिकल ब्लॉक में अधिक से खेत तालाब खुदवाएंगे.
कृषि मंत्री के मुताबिक, हमने इस साल 30864 सोलर पंप लगाने का नया लक्ष्य रखा है. 19 हजार किसानों के आवेदन मिल चुके हैं. इनमें से सात हजार किसान अपने हिस्से का अंशदान भी जमा कर चुके हैं. सरकार भी अपने हिस्से का 37 करोड़ रुपये का राज्यांश जारी कर चुकी है. कृषि मंत्री के अनुसार पिछले दिनों वह केंद्रीय मंत्री से भी मिले थे. उन्होंने अनुरोध किया था कि केंद्र भी यथाशीध्र अपने हिस्से का अंश जारी करें ताकि यथाशीध्र किसानों के यहां सोलर पंप लगवाए जा सकें. मालूम हो कि सरकार पिछले पांच साल में करीब 26 हजार सोलर पंप लगवा चुकी है. इस साल का लक्ष्य इन पांच वर्ष की तुलना से भी अधिक है.
इसी तरह सरकार अब तक 24583 खेत-तालाब खुदवा चुकी है. इसमें से करीब 20 हजार (80 फीसद) बुंदेलखंड, विंध्य, क्रिटिकल एवं सेमी क्रिटिकल ब्लाकों में हैं. इस साल का लक्ष्य 10 हजार है. मालूम हो कि इन तालाबों के कई लाभ हैं. वर्षा जल के संचयन से संबंधित क्षेत्रों के भूगर्भ जल स्तर में सुधार होता है. सूखे के दौरान ये तालाब सिंचाई एवं मवेशियों के पानी पीने के काम आते हैं. कम बारिश से होने वाली क्षति की न्यूनतम करने के लिए खाली खेतों में कृषि जलवायु क्षेत्र और स्थानीय बाजार के अनुसार किसान सब्जी की खेती करें, इस बाबत भी उनको जागरूक किया जाएगा. यही नहीं सरकार का प्रयास होगा कि वह अपने सेंटर ऑफ एक्ससीलेन्स एवं मिनी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस और कृषि विज्ञान केंद्रों के जरिए किसानों को बेहतर प्रजाति के निरोग पौध भी उपलब्ध कराएं. पिछले दिनों कम बारिश से उत्पन्न हालात की समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस बाबत निर्देश दे चुके हैं.
इसी क्रम में गन्ने की बसंत कालीन खेती के दौरान सहफसली खेती के लिए किसानों को जागरूक किया जाएगा. मालूम हो कि गन्ने की कुल खेती के रकबे में करीब 15 फीसद हिस्सा शरद कालीन गन्ने का है. इसके साथ कृषि जलवायु क्षेत्र और स्थानीय बाजार या अपनी जरूरत के अनुसार गन्ने की दो लाइनों के बीच में मटर, आलू, धनिया, गेंहू और अन्य सीजनल सब्ज़ियों की खेती कर अतिरिक्त लाभ ले सकते हैं. कम बारिश का किसानों पर दोहरा असर हुआ है. हालांकि इससे रकबे में तो मामूली कमीं आई है पर बोई गई फसल खासकर धान की बारिश के दौर के लंबे गैप के कारण प्रभावित हुई है. मसलन 2022-23 के खरीफ के फसली सीजन में प्रदेश में कुल 96.03 लाख हेक्टेयर फसल आच्छादन का लक्ष्य था. इसकी तुलना में अब तक 93.22 लाख हेक्टेयर (97.7 फीसद) की बोआई हो सकी है. गत वर्ष यह रकबा 98.9 लाख हेक्टेयर था. सरकार भी मानती है कि बोआई लक्ष्य के अनुरूप है, लेकिन कम वर्षा के कारण प्रदेश में फसलों को नुकसान होने की संभावना बनी हुई है.
अगर बारिश की बात करें तो प्रदेश में 33 जिले ऐसे हैं, जहां सामान्य से 40-60 फीसद तक ही वर्षा हुई है. 19 जिले ऐसे हैं, जिनमें 40 फीसदी से भी कम बरसात हुई है. अगर हम हाल के वर्षों से इसकी तुलना करें, तो इस वर्ष 20 अगस्त तक प्रदेश में कुल 284 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई है, जो कि वर्ष 2021 में हुई 504.10 मिमी और वर्ष 2020 में हुई 520.3 मिमी वर्षा के सापेक्ष कम है. इस बीच एकमात्र चित्रकूट ऐसा जिला रहा, जहां सामान्य से अधिक बारिश हुई है. विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर हालत यही रहे तो जो किसान नमीं के सहारे की जाने वाली रबी की कुछ फसलों की बोआई भी प्रभावित हो सकती है. सरकार इसी लिहाज से युद्ध स्तर पर तैयारियों में भी जुटी है.