लखनऊ : उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से तबादलों को लेकर तमाम तरह का विवाद खड़ा हो रहा है. योगी सरकार की फजीहत हो रही है. दरअसल, प्रदेश में तबादलों को लेकर जो सवाल उठे और सरकार की किरकिरी हुई उसके पीछे का सबसे बड़ा कारण चीफ सेक्रेटरी दुर्गा शंकर मिश्रा द्वारा जारी शासनादेश था. 14 जून 2022 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में कैबिनेट ने तबादला नीति-2022 को मंजूरी प्रदान की थी. इस तबादला नीति में मेरिट बेस्ड ऑनलाइन ट्रांसफर किए जाने की बात कही गई थी. लेकिन 15 जून 2022 को मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र की तरफ से ट्रांसफर नीति के क्रम में शासनादेश जारी किया गया तो उसमें मेरिट बेस्ड ऑनलाइन ट्रांसफर किये जाने का जिक्र तक नहीं किया गया. चीफ सेक्रेटरी की तरफ से यही गड़बड़ी हो गई और इसी से ट्रांसफर प्रक्रिया में गड़बड़झाला हो गया.
सभी विभागों के मंत्रियों, अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव व विभागाध्यक्ष के स्तर पर तबादला नीति पर जारी शासनादेश के आधार पर ही ट्रांसफर प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुये 30 जून तक कर्मचारियों के ट्रांसफर किए गए. सिर्फ लघु सिंचाई विभाग में मेरिट बेस्ड ऑनलाइन ट्रांसफर हुए. जिसके बाद स्वास्थ्य विभाग, लोक निर्माण विभाग, माध्यमिक शिक्षा विभाग, जल शक्ति विभाग में ट्रांसफर को लेकर तमाम तरह की गड़बड़ी सामने आई. मुख्य रूप से यह गड़बड़ी सामने आई कि समूह ख और ग के कर्मचारियों के ट्रांसफर में नियमों का पालन नहीं किया गया और नीति के अनुरूप ट्रांसफर नहीं हुए. शासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में जिस कैबिनेट नीति को मंजूरी दी गई थी और उसमें यह कहा गया था कि मेरिट बेस्ड ऑनलाइन ट्रांसफर सिस्टम के माध्यम से स्थानांतरण किए जाएं, लेकिन उस नीति का अनुपालन नहीं किया गया. अधिकारी कहते हैं कि अगर ऑनलाइन माध्यम से ट्रांसफर प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती तो एक ही कर्मचारी के दो दो जगह ट्रांसफर और मृतक कर्मचारियों के भी ट्रांसफर जैसी गड़बड़ियां बिल्कुल भी नहीं होती.
नियुक्ति विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि पिछले 3 महीने से नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग के स्तर पर ऑनलाइन ट्रांसफर प्रक्रिया पूरी किए जाने को लेकर तैयारी चल रही थी. इसको लेकर मेरिट बेस्ड ऑनलाइन ट्रांसफर सिस्टम तैयार किया जा रहा था और उच्च स्तर पर कई बार प्रस्तुतीकरण भी किया गया. लेकिन जब शासनादेश में चीफ सेक्रेटरी की तरफ से ऑनलाइन ट्रांसफर किए जाने का जिक्र नहीं हुआ तो विभागों ने अपनी सुविधानुसार ट्रांसफर प्रक्रिया को आगे बढ़ाया. इसका परिणाम यह रहा कि तमाम तरह की गड़बड़ी और विवाद सामने आए.