लखनऊ : उत्तर प्रदेश में रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (Real Estate Regulatory Authority) पर 45000 शिकायतों का बोझ है, जिनमें से 33000 अकेले एनसीआर क्षेत्र में और बाकी पूरे उत्तर प्रदेश की हैं. बिल्डर आम लोगों के करीब 20 हजार करोड़ रुपये पर शिकंजा कसे बैठा है. रेरा में समस्याओं के निस्तारण की दर तो तेज है, लेकिन उसके बाद में निर्णय का पालन नहीं किया जा रहा है. विभिन्न जिलों में प्रशासनिक स्तर पर समस्याएं सामने आ रही हैं. जिसकी वजह से निवेशक बहुत अधिक परेशान हो रहे हैं.
रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (Real Estate Regulatory Authority) का गठन 2017 में पूरे देश में किया गया था, जिसके बाद में किसी भी आवासीय योजना को लांच करने के लिए रेरा में रजिस्ट्रेशन जरूरी हो गया. आवासीय समस्याओं से जुड़े मामलों की सुनवाई की जाने लगी. लखनऊ और नोएडा में दो अलग-अलग कार्यालय बनाए गए, जहां रेरा के अधिकारी लोगों की समस्याओं को सुनने लगे. अब तक एनसीआर क्षेत्र के उपभोक्ताओं की 33825 शिकायतें तथा प्रोमोटर्स की 103 शिकायतों सहित कुल 33928 शिकायतें धारा-31 के अंतर्गत पंजीकृत हुई हैं. एनसीआर के बाहर के जनपदों के आवंटियों की 10741 शिकायतें पंजीकृत हुई हैं. इस प्रकार एनसीआर तथा नॉन एनसीआर में पंजीकृत शिकायतों का अनुपात 75:25 का है. धारा-31 के अंतर्गत शिकायतों की सुनवाई के साथ-साथ प्राधिकरण के आदेशों का कार्यान्वयन भी उतना ही महत्वपूर्ण है. रेरा का दावा है कि करीब 90 फ़ीसदी समस्याओं का निस्तारण किया जा चुका है, मगर वास्तविकता यह है कि यह केवल निस्तारण है समाधान नहीं है. लोगों को न्याय नहीं मिला है, केवल मामले समाप्त हुए हैं.
लखनऊ जन कल्याण महासमिति के अध्यक्ष उमाशंकर दुबे ने कहा है कि निश्चित तौर पर रेरा का काम उतना अच्छा नहीं हो सका है, जितने की उम्मीद थी. केवल आदेश कर देने भर से ही लोगों की समस्या का समाधान नहीं हो जाता है. उसका कार्यान्वयन भी बहुत जरूरी है.