लखनऊ : प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के 100 दिन पूरे हो गए हैं. इसे लेकर मुख्यमंत्री ने अपने वरिष्ठ सहयोगियों के साथ पत्रकारों से बात की और उपलब्धियां गिनाईं. निश्चित रूप से सरकार ने कुछ क्षेत्रों में अच्छे काम किए हैं. यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा उपचुनाव में भी जीत का स्वाद चखने को मिला. अपराधों को लेकर योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति का असर दिखाई दिया है. हालांकि बिजली, शिक्षा और सड़क के मामले में सरकार को अभी बहुत कुछ करना बाकी है.
इस समय प्रदेश भारी बिजली संकट से गुजर रहा है. यह बात दीगर है कि राजधानी और महानगरों को भले ही पर्याप्त बिजली मिल रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति बहुत बुरी है. छोटे कस्बों और गांवों में बमुश्किल 5 से 10 घंटे की बिजली सप्लाई हो पा रही है. कटौती कितनी है, बिजली कब आएगी और कब जाएगी कोई ठिकाना नहीं. सरकार के स्तर पर नई विद्युत इकाइयों के निर्माण अथवा उत्पादन बढ़ाने को लेकर अब तक कोई ऐसा ठोस उपाय नहीं हुआ है, जिससे यह लगता हो कि निकट भविष्य में समस्या दूर हो जाएगी. वैसे भी योगी आदित्यनाथ की यह पहली सरकार नहीं है. इन 100 दिनों से पहले भी वह पांच साल सत्ता में रहकर आए हैं. यदि पिछले 5 वर्षों में बिजली सुधार की दिशा में कोई ठोस कदम उठाया गया होता, तो आज यह स्थिति नहीं होती. पिछली सरकार में बिजली के मीटर की भागती रफ्तार को लेकर शिकायतें उठीं, तो वहीं विद्युत दरों को लेकर भी लोग परेशान रहे. ऐसे में सरकार को बिजली प्रबंधन की दिशा में ठोस उपाय करने की जरूरत है.
बेसिक शिक्षा में सुधार को लेकर सरकार अनेक दावे करती रही है, हालांकि स्थिति इससे कहीं अलग है. पिछले पांच वर्षों में बेसिक शिक्षा मंत्री के विवाद और शिक्षामित्रों की मांगों का विषय छाया रहा. स्कूलों के रखरखाव की स्थिति में थोड़ा सुधार जरूर आया है, लेकिन शिक्षा के स्तर में रंच मात्र का भी काम दिखाई नहीं दिया. प्रदेश में कई ऐसे मामले देखने को मिले जहां सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए लोग अपने बच्चों का दाखिला प्राइमरी स्कूल में कराते हैं, तो वहीं पढ़ाई के लिए निजी स्कूलों में अलग से कराते हैं. इस मामले को देखते हुए सरकार ने बच्चों के दाखिले को आधार से लिंक करने की व्यवस्था की, जो अभी तक पूरी तरह लागू नहीं हो सकी है. शिक्षकों को जवाबदेह बनाने के विषय में भी सरकार कोई काम नहीं कर पाई है. यदि पांचवीं और आठवीं का बच्चा अपना नाम लिखना तक न जाने, तो ऐसे में संबंधित शिक्षकों को दंडित क्यों नहीं किया जाता?
प्राथमिक शिक्षा की स्थिति तभी सुधर सकती है, जब शिक्षकों की जवाबदेही तय की जाए. राज्य सरकार के सामने केंद्रीय विद्यालय एक उदाहरण है. वह भी सरकारी विद्यालय है, लेकिन वहां दाखिला लेने वालों की लाइनें नहीं लगी रहती हैं. क्या सरकार केंद्रीय विद्यालयों को मॉडल बनाकर सबक नहीं ले सकती? प्राथमिक शिक्षा के नाम पर सरकार का फोकस खैरात बांटकर वोट की राजनीति करने तक ही रहता है. इस दिशा में जब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता तब तक प्राथमिक शिक्षा के नाम पर खर्च किए जाने वाला धन बर्बाद ही होता रहेगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगी. उच्च शिक्षा की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं है. उत्तर प्रदेश जितना बड़ा राज्य है उस हिसाब से बड़े शिक्षण संस्थानों में गुणवत्ता की बहुत कमी है. राष्ट्रीय स्तर पर हमारे संस्थानों की कोई खास पहचान नहीं है. इस क्षेत्र में भी सरकार को कदम उठाने की जरूरत है.
अब बात सड़क की. प्रदेश में छोटे कस्बों और गांव में संपर्क मार्गों की स्थिति बहुत खराब हो गई है. सरकार इस विषय में बहुत गंभीर दिखाई नहीं दे रही है. जनसंपर्क मार्गों का रख-रखाव होना चाहिए. नई सड़कों की स्थिति भी बुरी है. सरकार हाईवे और शहरी सड़कों को सुधार कर मीडिया में सुर्खियां तो जरूर बटोर लेती है, जबकि गांव और छोटे कस्बों की बदहाल स्थिति की सुनवाई करने वाला कोई दिखाई नहीं देता. इसलिए जरूरत है कि सड़कों का तय समय पर पुनरुद्धार हो.