कानपुर: पाकिस्तान के मशहूर शायर फैज अहमद फैज ने 1979 में नज्म 'हम देखेंगे' को कागज पर उकेरा था. यह नज्म पाकिस्तान के तानाशाह जनरल जिया-उल-हक के खिलाफ लिखी गई थी. इन दिनों इस नज्म को लेकर यूपी सहित देश भर में बवाल मचा है. वैसे तो फैज साहब की इस नज्म को अक्सर ही विरोध प्रदर्शनों में गाया जाता रहा है, लेकिन नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे आईआईटी कानपुर के छात्रों ने जब इस नज्म को गुनगुनाया तो इस पर हिन्दू विरोधी होने की तोहमत लग गई.
सब तख्त गिराए जाएंगे...
जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से सब बुत उठवाए जाएंगे हम देखेंगे.
हम अहल-ए-सफा मरदूद-ए-हरम,
मसनद पर बिठाए जाएंगे. सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे..
बस नाम रहेगा अल्लाह का. हम देखेंगे, लाजिम है हम भी देखेंगे....
जब से नागरिकता संशोधन बिल ने दोनों सदनों से हरी झंडी पाकर (पास होकर) कानून का रूप लिया है, तब से देश भर में इसके विरोध में सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं. 15 दिसंबर को दिल्ली के जामिया इलाके में इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ था, जिसमें जामिया यूनिवर्सिटी के कुछ छात्र भी शामिल थे. इस दौरान पुलिस ने यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी और हॉस्टल में जाकर महिला छात्रों समेत कई लोगों की पिटाई की.
पुलिस की इस कार्रवाई से नाराज देश के कई शिक्षण संस्थानों ने जामिया के छात्रों के समर्थन में मोर्चा खोल दिया. आईआईटी कानपुर में छात्रों ने 17 दिसंबर को प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन में कुछ छात्रों ने फैज की नज्म 'हम देखेंगे' गायी.