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गोरखपुर में शिक्षक की जेब से चल रहा मिड डे मील अभियान, दुकानदार देते राशन

गोरखपुर में शिक्षक अपनी जेब से मिड डे मील अभियान (mid day meal campaign in Gorakhpur) चलाने को मजबूर हैं. इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए बजट ही नहीं है. इसमें दुकानदार भी अपनी दुकानों से राशन देकर मदद करते हैं.

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Published : Sep 19, 2022, 2:46 PM IST

गोरखपुर: जनपद के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा के साथ, मिड डे मील योजना (mid day meal campaign in Gorakhpur) को आगे बढ़ाने के लिए सरकार बड़े मजबूत दावे करती हैं लेकिन इन दोनों व्यवस्थाओं में काफी गिरावट दिखाई दे रही है. मिड डे मील योजना के लिए सरकार की तरफ से निर्धारित प्रति छात्र भोजन के लिए जितने रुपए का बजट मिलता है मौजूदा समय में बाजार में इतने पैसे में एक समोसा भी नहीं मिलेगा.

महंगाई पिछले 2 वर्षों में हर स्तर पर कई गुना बढ़ी है लेकिन, प्रति छात्र मिलने वाला बजट (mid day meal campaign in Gorakhpur) जिसे कन्वर्जन कॉस्ट कहते हैं, उसमें कोई इजाफा नहीं हुआ है. कन्वर्जन कॉस्ट अभी भी केवल 4.97 पैसे प्रति छात्र के हिसाब से सरकार द्वारा दिया जा रहा है. इतने कम पैसे में ईंधन से लेकर मेन्यू के हिसाब से बनाए जाने वाला मिड डे मील, गुणवत्ता पूर्ण तरीके से मौजूदा समय में विद्यालयों में तैयार नहीं हो पा रहा है. प्राचार्य और शिक्षकों ने बताया कि इससे भी बड़ी समस्या यह है कि अप्रैल 2022 शैक्षिक सत्र शुरू हुआ है. तभी से स्कूलों को कन्वर्जन कॉस्ट के मद में मिलने वाला बजट सितंबर 2022 माह तक भी नहीं मिल पाया है. इससे इस योजना को ईमानदारी और गुणवत्ता के साथ आगे बढ़ाने में शिक्षकों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो रही है.

जानकारी देते सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी पंकज मौर्या

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मिड डे मील (mid day meal campaign in Gorakhpur) जो प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को दोपहर के भोजन के रूप में दिया जाता है, इसमें पौष्टिकता युक्त भोजन देने की व्यवस्था मेंन्यू बनाया गया है लेकिन जब स्कूलों को इस मद में प्रत्येक माह के हिसाब से बजट ही आवंटित नहीं होगा, तो जिस शिक्षक के ऊपर इसकी जिम्मेदारी है. वह इसे कैसे बनवाएगा. अफसर और सरकार के दबाव के चलते मजबूरन शिक्षक राशन की दुकानों से खाद्य सामग्रियों उधार ले रहे हैं. सब्जी और अन्य सामग्री को वह अपने वेतन के पैसे से खरीदते हैं. वह इस उम्मीद में कि जब भी देर सवेर कन्वर्जन कॉस्ट का बजट आएगा तो वह उधार को चुकता कर देगा.

लेकिन यहां सवाल उठता है कि क्या सरकार और बेसिक शिक्षा व्यवस्था को संचालित करने वाले मंत्री और महानिदेशक इस बात को नहीं जानते है. प्रत्येक स्कूलों में जहां संख्या छात्रों की 200 से लेकर 500 तक है, वहां इतनी बड़ी संख्या का भोजन बिना बजट के कैसे गुणवत्तापूर्ण बेहतर तरीके से संचालित हो सकता है. ईटीवी भारत ने जब इस व्यवस्था की पड़ताल की तो स्कूल की प्रधानाचार्य से लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने इस पर अपनी पीड़ा खुलकर जाहिर की. साथ यह भी कहा कि वह बच्चों को भूखे पेट नहीं देख सकते हैं. सरकार की व्यवस्था और अभियान को भी नहीं रोक सकते हैं. सरकार को इस विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए और मिड डे मील (mid day meal campaign in Gorakhpur) का बजट एडवांस स्कूलों को मिलना चाहिए.

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