गोरखपुर: शहर में स्थापित वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला मौजूदा समय में सिर्फ नाम की नक्षत्रशाला रह गई है. इनमें लगे 6 प्रोजेक्टर में आधे से अधिक अपनी उम्र को पार कर गए हैं, जिसका असर खगोलीय घटनाओं के प्रसारण में दिखाई देता है. दर्शक इन कमियों की वजह से ज्ञान और मनोरंजन का पूरा आनंद नहीं उठा पाते. यहां की साइंस गैलरी भी काफी समय से बंद पड़ी है, जो दर्शकों के बेहद लाभ का केंद्र है.
प्रतिदिन चार से पांच सौ की संख्या में यहां दर्शक आस-पास और दूसरे शहरों से आते हैं, जो नक्षत्रशाला(तारामंडल) को घूमने और देखने की अपनी इच्छा को तो पूरी कर जाते हैं लेकिन जिन कमियों से यह केंद्र जूझ रहा है. उसकी वजह से दर्शक अधूरी जानकारी ही ले पाते हैं. यहां दिन मे कुल तीन शो चलते हैं, जिसका टिकट दस से लेकर पच्चीस रुपये हैं.
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गोरखपुर नक्षत्रशाला वर्ष 2006 में दर्शकों के लिए खोला गया, जिसका संचालन उत्तर प्रदेश विज्ञान और प्रद्योगिकी परिषद करता है, लेकिन मौजूदा समय में इसके यंत्रों के जर्जर होने से कभी भी इसके बंद होने की नौबत आ सकती है. वर्तमान की तकनीकी दौड़ में यह पीछे चल रहा है. इस परिसर में स्थित साइन्स गैलरी जो वर्ष 2016 में स्थापित हुई, जिसमें नक्षत्रों का क्रमिक विकास दिखाया जाता है लेकिन यहां लगे प्रदर्शक भी खराब हो चुके हैं. यहां के वैज्ञानिक अमर पाल सिंह ने बताया कि तकनीकी दिक्कतों को दूर करने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है, जिसके स्वीकृति का इंतजार लंबे समय है. उन्होने कहा कि फिलहाल उपलब्ध संसाधन से दर्शकों को जोड़ा जाता है, जिससे इस केंद्र की महत्ता कायम रहे. वहीं, जो दर्शक यहां आ रहे हैं, उनकी भी मिली जुली ही प्रतिक्रिया रही है.
प्रोजेक्टर की खराबी को लेकर नक्षत्र साला प्रशासन इसे बदलने के लिए वर्ष 2018 से लगातार परिषद से पत्राचार कर रहा है लेकिन अभी सफलता नहीं मिली है. यही वजह है कि ब्रमांड और नक्षत्रों की जानकारी दर्शकों को केंद्र के अंदर बहुत स्पष्ट दिखाई नहीं देती. इसके अलावा 45 मिनट के शो को इसकी वजह से 30 मिनट का सीमित कर दिया गया है. इससे तारों की दुनिया न केवल धुंधली पड़ गई है बल्कि अधूरी भी हो गई है.
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