गोरखपुरः ठंड रिकॉर्ड बना रही है. उत्तर भारत में इंसान से लेकर मवेशियों, परिंदों, कीड़े-मकोड़ों तक के लिए जीना मुहाल हो गया है. मछलियों के जीवन और उससे जुड़े रोजगार आश्रित लोगों के सामने ठंड ने संकट खड़ा कर दिया है. कड़कड़ाती ठंड से मछलियों का जीवन प्रभावित हो रहा है. ऐसे में अधिकांश मछलियां पानी की सतह के नीचे तालाब की तली में रहना पसंद करती हैं.
ठंड के मौसम में मछलियों में एपीजुएट अल्सरेटिव सिंड्रोम नामक बीमारी होने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ जाती है. इससे मछलियों के शरीर पर लाल चकते पड़ने लगते हैं. समय से इसका इलाज न किया गया तो बीमारी दूसरी मछलियों में फैलने लगती है. महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केन्द्र के मत्स्य विशेषज्ञ डॉ विवेक सिंह ने बातचीत के दौरान एपीजुएट अल्सरेटिव सिंड्रोम रोग से बचाव की जानकारी दी.
मत्स्य विशेषज्ञ डॉ. विवेक प्रताप सिंह ने एपीजुएट अल्सरेटिव सिंड्रोम रोग से बचाव की जानकारी दी. मत्स्य विशेषज्ञ ने दी जानकारी
मत्स्य विशेषज्ञ डॉ. विवेक सिंह ने बताया कि पानी के अंदर ही मछली का जीवन है. आसपास के वातावरण की बदलती परिस्थितियां उनके जीवन पर बहुत ही असर डालती हैं. मछली के आसपास का वातावरण उसके अनुकूल रहना अत्यंत आवश्यक होता है. जाड़े के दिनों में तालाब की परिस्थितियां भिन्न हो जाती हैं. तापमान कम होने के कारण मछलियां तालाब की तली में ज्यादा समय व्यतीत करती हैं.
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ऐसी परिस्थिति में एपीजुएट अल्सरेटिव सिंड्रोम नामक बीमारी होने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ जाती है. यह भारतीय मेजर कार्प के साथ साथ जंगली अपतृण मछलियों की भी व्यापक रूप से प्रभावित करती है. समय पर उपचार नहीं करने पर कुछ ही दिनों में पूरे पोखरे की मछलियां संक्रमित हो जाती हैं और बड़े पैमाने पर मछलियां तुरंत मरने लगती हैं.
मछलियों को बीमारी से बचाने का उपाय
तालाब में 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर भाखरा चूना का प्रयोग कर देने से मछलियों में यह बीमारी नहीं होती है. यदि मछलियों में बीमारी होती है तो उसका प्रभाव कम हो जाता है. जनवरी के बाद वातावरण का तापमान बढ़ने पर यह स्वतः ठीक हो जाती है. केंद्रीय मीठा जल जीवपालन संस्था (सीफा) भुवनेश्वर ने इस रोग के उपचार के लिए सीफैक्स नामक औषधि तैयार की है.
कैसे करें छिड़काव
एक लीटर सीफैक्स एक हेक्टेयर जलक्षेत्र के लिए पर्याप्त है. इसे पानी में घोल कर तालाब में छिड़काव किया जाता है. गंभीर स्थिति में प्रत्येक सात दिन में एक बार इस दवा का छिड़काव करने से काफी हद तक बीमारी पर काबू पाया जा सकता है. घरेलू उपचार में चूने के साथ हल्दी मिलाने पर अल्सर घाव जल्दी ठीक होता है. इसके लिए 40 किलोग्राम चूना तथा 4 किलो ग्राम हल्दी प्रति एकड़ की दर से मिश्रण का प्रयोग किया जाता है.