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इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश, पति के खिलाफ दहेज केस में उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक लगायी - prayagraj news in hindi

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पारिवारिक विवादों में मध्यस्थता के सहारे पति से जमा कराये धन पाने की लालसा निंदनीय है. अदालत ने पति के खिलाफ दहेज केस में उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक लगायी.

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Published : Feb 4, 2022, 11:02 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी के माता-पिता वैवाहिक विवादों को निपटाने के लिए मध्यस्थता केंद्र आने के बजाय केवल आवेदक/पति द्वारा जमा की गई राशि प्राप्त करने के लिए मध्यस्थता केंद्र में आने की प्रवृत्ति की निंदा की. न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने कहा कि अक्सर यह देखा गया है कि पक्षकार मध्यस्थता की प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं लेते और सोची-समझी योजना से यहां आ रही हैं. फराज हसन ने अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल की है.

यह जमानत उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 323, 308 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दर्ज मामले में मांगी गई है. याची अधिवक्ता ने कहा कि चूंकि यह मामला वैवाहिक विवाद और दोनों पक्षों के बीच पैदा हुई आपसी गलतफहमी का है, इसलिए विवाद को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मध्यस्थता केंद्र में भेजा जा सकता है.

याची के इस कथन और दोनों पक्षों के बीच मतभेदों तथा आरोपों की प्रकृति पर विचार करते हुए, कोर्ट ने कहा कि यह न्याय के हित में होगा कि दोनों पक्ष अपनी गलतफहमी और ''मुद्दों'' (यदि कोई हो) को सौहार्दपूर्ण तरीके और आपसी बातचीत के जरिए निपटा लें.

इसलिए न्यायालय ने याची पति को निर्देश दिया कि वह 50,000 रुपये की राशि मध्यस्थता केंद्र में जमा करा दे और इस पूरी राशि का भुगतान मध्यस्थता केंद्र के समक्ष मध्यस्थता प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही पत्नी को किया जाएगा. इस मामले में, चूंकि पत्नी की हालत नाजुक है, इसलिए अदालत ने उसके माता-पिता को निर्देश दिया कि वह मध्यस्थता के लिए पेश हों. हालांकि, अदालत ने कहा कि संज्ञान में यह आया है कि पक्ष सोची-समझी योजना के साथ मध्यस्थता के लिए आते हैं.

अदालत ऐसे मामलों को मध्यस्थता में इस आशा और विश्वास के साथ संदर्भित करती है कि दोनों पक्षकार इस प्रक्रिया और मंच का उपयोग कुछ सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने के लिए करेंगे. मध्यस्थता की प्रक्रिया आवेदक द्वारा जमा की गई राशि अर्जित करने के लिए नहीं है. यदि पत्नी के माता-पिता अपने मन में एक अलग डिजाइन बनाकर और केवल पति आवेदक द्वारा जमा की गई राशि प्राप्त करने के लिए इन केंद्र में आ रहे हैं, तो इसका विरोध करते हुए इसकी निंदा करनी होगी. यदि पत्नी के माता-पिता आते हैं और मध्यस्थता की प्रक्रिया में भाग लेते हैं, तो पूरी राशि उन्हें एक बार में न दी जाए।इस तरीके से दी जाये.

यदि पत्नी के माता-पिता केवल एक तिथि पर मध्यस्थता केंद्र आते हैं और यह प्रस्तुत करते हैं कि उन्हें मध्यस्थता की प्रक्रिया में कोई दिलचस्पी नहीं है या बिना किसी उचित कारण के अगली तारीखों से अनुपस्थित रहते हैं, तो आवेदक द्वारा जमा की गई पूरी राशि का केवल 50 प्रतिशत ही उन्हें या उनके प्रतिनिधियों या वकील को दिया जाए और शेष राशि आवेदक को वापस की जाएगी. यदि सभी पक्ष दो या दो से अधिक अवसरों के लिए मध्यस्थता की प्रक्रिया में आ रहे हैं और उसमें भाग ले रहे हैं, तो केवल पत्नी के माता-पिता ही पूरी राशि के हकदार होंगे. यदि पत्नी के माता-पिता को नोटिस भेजने के बाद भी, वे बिना किसी उचित कारण के उपस्थित नहीं होते हैं, तो पूरी राशि आवेदक को वापस कर दी जाएगी.

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यदि उक्त राशि आवेदक द्वारा नियत अवधि के भीतर जमा नहीं की जाती है या राशि जमा करने के बाद वे बिना किसी उचित कारण या पूर्व सूचना के मध्यस्थता प्रक्रिया में भाग लेने में विफल रहते हैं, तो पूरी राशि को मध्यस्थता केंद्र के खाते में जमा कर दिया जाएगा और मामला तुरंत संबंधित अदालत को भेज दिया जाएगा और अंतरिम आदेश स्वतः ही समाप्त माना जाएगा. यह निर्देश दिया गया है कि दोनों पक्षों को नोटिस भेजने के बाद मध्यस्थता और सुलह की कार्रवाई तीन महीने की अवधि के भीतर समाप्त कर दी जाए. समझौता केंद्र की रिपोर्ट के बाद अर्जी 20 मई 2022 को सूचीबद्ध की जायेगी. कोर्ट ने तब तक याची के खिलाफ उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है.

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