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माता पिता ही कर सकते हैं बच्चे का सर्वांगीण विकास: इलाहाबाद हाईकोर्ट - इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश

बच्चों के सर्वांगीण विकास पर इलाहाबाद हाईकोर्ट (allahabad high court on child development) ने सोमवार को अपने आदेश में एक विशेष टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि बच्चे का सर्वांगीण विकास नैसर्गिक माता-पिता ही संभव कर सकते हैं. अदालत में हुए भावनात्मक केस में पालने वाले अभिभावकों से माता-पिता की जीत हुई

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Published : Sep 27, 2022, 7:07 AM IST

प्रयागराज:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि बच्चे का सर्वांगीण विकास उसको जन्म देने वाले माता पिता के पास ही संभव है, भले ही पालने वाले अभिभावक उसकी कितनी ही अच्छी देखभाल कर रहे हो मगर यह बच्चे का अधिकार है कि उसे उसकी वास्तविक पहचान से अवगत कराया जाए. हाईकोर्ट ने अपने मामा मामी के पास रह रही 5 साल की बच्ची को उसे जन्म देने वाले माता पिता के सुपुर्द करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि बच्ची का पालन करने वाले अभिभावक( मामा मामी) साल में एक या दो बार बच्ची से मिल सकते हैं.

अलीगढ़ की नसरीन बेगम और प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद द्वारा दाखिल अपीलों पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति सुधारानी ठाकुर की खंडपीठ ने दिया. मामले के अनुसार प्रोफ़ेसर सज्जाद व उनकी पत्नी निसंतान दंपत्ति है. सज्जाद ने अपने एक रिश्तेदार से उनका बच्चा पालने के लिए लिया था, मगर रिश्तेदार 3 माह बाद ही अपना बच्चा वापस ले गए. इससे दंपति को मानसिक आघात पहुंचा और वह डिप्रेशन में चले गए.

इससे उबरने के लिए सज्जाद ने सऊदी अरब में रह रही अपनी बहन नसरीन बेगम से उसकी बच्ची कुछ दिनों के लिए अपने पास छोड़ने के लिए कहा. नसरीन बेगम ने अपने साढे 3 माह की बच्ची सज्जाद को दे दी. इसके कुछ दिनों बाद जब वह भारत आई और अपनी बच्ची से मिलना चाहा तो उसने देखा कि सज्जाद का व्यवहार बदला हुआ है. वह उनको उनकी बच्ची से मिलने नहीं दे रहे थे. पारिवारिक स्तर पर प्रयास करने के बावजूद नसरीन अपनी बच्ची वापस पाने में असफल रही तो उसने परिवार न्यायालय में बच्चे की अभिरक्षा के लिए वाद दाखिल किया.

प्रधान न्यायाधीश अलीगढ़ ने बच्ची को अपने समक्ष बुलाया. परिवार न्यायालय ने पाया कि बच्ची अपने पालने वाले अभिभावकों से बहुत अच्छे से घुलमिल गई है और वह लोग उसकी बहुत अच्छी देखभाल भी कर रहे हैं. बच्ची को अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे थे. परिवार न्यायालय ने बच्चे का हित देखते हुए उसे उसके पालने वाले अभिभावकों के पास ही रहने देने का निर्देश दिया. तथा नैसर्गिक माता-पिता को इस बात की छूट दी कि वह साल में 15 दिन स्कूल की छुट्टियों के दौरान अपनी बच्ची से मिल सकते हैं. परिवार न्यायालय के इस आदेश को दोनों पक्षों की ओर से चुनौती दी गई.

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बच्चों के पालन पर इलाहाबाद कोर्ट (allahabad high court on parenting) ने अपने निर्णय में कहा कि बच्चे के हित को सर्वाधिक महत्व देते हुए हम इस निष्कर्ष पर हैं कि बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए उसका सर्वाधिक हित उसे जन्म देने वाले माता पिता के पास रहने में ही है. छोटी उम्र की बच्ची जो अभी ज्यादा समझदार नहीं है की इच्छा उसके हितों पर प्रभावी नहीं हो सकती है. बच्चा भी मनुष्य है और उसे उसकी वास्तविक पहचान छिपाकर के नहीं रखा जा सकता है, कोर्ट ने कहा कि यहां मसला बच्चे को जन्म देने वाले माता पिता और उसे पालने वाले अभिभावकों के अधिकारों का नहीं है बल्कि नाबालिक बच्चे को अपने जन्म देने वाले माता पिता के साथ रहने का जन्मजात अधिकार है. कोर्ट ने परिवार न्यायालय अलीगढ़ को निर्देश दिया है कि बच्चे को उसके नैसर्गिक माता पिता को सौंपने की प्रक्रिया 1 माह में पूरी की जाए तथा इसकी रिपोर्ट हाईकोर्ट में दाखिल की जाए.

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