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मां ने छह महीने से जंजीर में कैद कर रखा है अपने कलेजे का टुकड़ा, जानें क्या है वजह - जंजीर में कैद

आगरा की बाह तहसील में एक मां ने अपने कलेजे के टुकड़े को छह महीने से जंजीरों में कैद कर रखा है. मां का कहना है कि उनका बेटा खोले जाने पर मारपीट करता है. मानसिक चिकित्सक की राय में ऐसे व्यवहार करने से युवक की हालत और खराब हो सकती है.

प्रथमपुरा में जंजीर में युवक
प्रथमपुरा में जंजीर में युवक

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Published : Dec 16, 2021, 4:55 PM IST

आगरा:बाह तहसील के प्रथमपुरा गांव में एक युवक पिछले छह महीने से जंजीर में कैद है. युवक मानसिक रूप से विक्षिप्त है. परिजनों का कहना है कि युवक को जब छोड़ा जाता है, तो वो लोगों के साथ मारपीट करता है और आगजनी करता है. इस वजह से मजबूरन उसको जंजीर में कैद करके रखा गया है.

जानकारी देती मां राम लकेली
आगरा की बाह तहसील स्थित गांव प्रथमपुरा में जंजीर में युवक पिछले छह महीने से जंजीर में कैद है. दो वर्षों से युवक की दिमागी हालत ठीक नहीं है. युवक 26 साल का है. वह खेतीबाड़ी करता था, लेकिन छह महीने से युवक की मानसिक स्थिति अधिक खराब हो गयी.

युवक की मां राम लकेली ने कहा कि अगर उसे जंजीर से बांध कर नहीं रखा जाता, तो वो उग्र हो जाता है. गांव में लोगों के साथ मारपीट करता है और लोगों के खेतों और घरों में आगजनी भी कर देता है. हम बहुत परेशान हैं. हमें भी अपने बेटे को इस हाल में देखकर रोना आता है, लेकिन हम लाचार हैं.

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युवक की मां राम लकेली ने बताया कि इलाज के दौरान भी बेटे की हालत ठीक नहीं हुई. इसे खुला छोड़ने पर यह घर वालों और ग्रामीणों को मारने लगता है. कई बार यह घर और खेतों में आग लगाने का भी प्रयास कर चुका है. रोजाना गांव वालों से झगड़ा नहीं कर सकते. भले ही जंजीरों में है, बेटा जीवित और सुरक्षित है. यही बहुत है.

ग्रामीणों के अनुसार परिवार के लोग युवक को घर के बाहर पेड़ से बांध कर रखते हैं और यहीं उसे खाना देते हैं. जानवरों की जंजीर भी लोग थोड़ी देर के लिए खोलते हैं, लेकिन उसे हमेशा बांध कर रखा जाता है. सर्दियों में भी इसे बाहर सोना पड़ता है. अब ओस के चलते, इसे छप्पर के नीचे रखा जाएगा. परिवार मध्यम वर्गीय है. ज्यादा महंगा इलाज नहीं वहन कर सकते हैं.


इस मामले में मानसिक चिकित्सक केसी गुरनानी ने कहा कि इस तरह का व्यवहार करने से युवक की हालत और बिगड़ सकती है. परिजनों को उसका सही इलाज करवाना चाहिए. अक्सर इस तरह के मामलों में परिवार के लोग शुरू में इलाज करवाते हैं, लेकिन थोड़ा फायदा होने पर दवाइयां बंद कर देते हैं.

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