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एटा के बिल्सढ़ में मिले पांचवीं शताब्दी के मंदिर के पुरावशेष, ASI ने की पुष्टि

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को एटा के संरक्षित स्थल बिल्सढ़ की खोदाई के दौरान पांचवीं शताब्दी के मंदिर के अवशेष मिले हैं. एएसआई (ASI) को गांव बिल्सढ़ में मौजूद गुप्त काल के स्तंभ के पास खोदाई में कई सीढ़ियां मिली हैं.

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Published : Sep 11, 2021, 4:37 PM IST

आगरा: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को एटा के संरक्षित स्थल बिल्सढ़ की खोदाई में गांव बिल्सढ़ में मौजूद गुप्त काल के स्तंभ के पास खोदाई में कई सीढ़ियां मिली हैं. इसमें एक बड़ी सीढ़ी पर शंख लिपि में 'श्री महेंद्रादित्य' लिखा है. 'महेंद्रादित्य' गुप्त वंश के सम्राट कुमार गुप्त प्रथम की उपाधि थी. इससे यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि यह मंदिर कुमार गुप्त के समय में बनाया गया. इस बारे में एटा के वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण प्रभाकर उपाध्याय का कहना है कि गुप्त काल के स्तभों के पास स्वामी महासंघ का मंदिर था. यह मंदिर भगवान शंकर के बड़े पुत्र कार्तिकेय का है.

आगरा एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार
हाल में ही एएसआई आगरा सर्किल ने एटा में नया सब सर्किल बनाया है. यहां की जिम्मेदारी संरक्षण सहायक अंकित नामदेव को दी गयी है. एटा सब सर्किल में एएसआई का जोर अब पुरा महत्व के किले, अन्य पुरा स्थलों की साफ-सफाई और रखरखाव के साथ ही वैज्ञानिक तरीकों से संरक्षण व उत्खनन कार्य करना है. गुप्त काल के स्तंभों की गहराई जानने को किया था. उत्खनन एएसआई आगरा सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार ने बताया कि एटा जिले के अलीगंज तहसील में बिल्सढ़ में कुमारगुप्त प्रथम के समय के दो स्तंभ (पिलर) हैं, जो संरक्षित हैं.
सीढ़ी पर शंख लिपि में लिखाई

बीते दिनों स्तभों की गहराई देखने के लिए वैज्ञानिक तरीके से एएसआई ने उत्खनन का कार्य शुरू किया. वैज्ञानिक तरीके से उत्खनन के दौरान वहां प्राचीन निर्माण के अवशेष मिले. इस पर उत्खनन जारी रखा तो वैज्ञानिक तरीके से किए गए उत्खनन में 4 सीढ़ियां और ईंटों का एक प्लेटफार्म मिला है. यह एक मंदिर के अवशेष हैं. शंख लिपि में उत्कीर्ण 'श्री महेंद्रादित्य' का मिलान एएसआई आगरा सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार ने बताया कि वैज्ञानिक तरीके से किए गए उत्खनन में मिली एक बड़ी सीढ़ी पर शंख लिपि में 'श्री महेंद्रादित्य' लिखा हुआ है. सीढ़ी पर मौजूद उत्कीर्ण 'श्री महेंद्रादित्य' का मिलान लखनऊ म्यूजियम में रखे गुप्त काल के घोड़े की पीठ की लिखावट से किया गया है. उस पर भी इसी लिपि में 'श्री महेंद्रादित्य' लिखा है.

सीढ़ी पर शंख लिपि में लिखाई

यह घोड़ा कुमार गुप्त के समय का है. कुमार गुप्त ने पांचवीं शताब्दी में अश्वमेध यज्ञ किया था. बिल्सढ़ के टीलों में दबी गुप्तकालीन सभ्यता एटा के वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण प्रभाकर उपाध्याय के मुताबिक, बिल्सढ़ के टीलों में गुप्तकालीन सभ्यता के अवशेष दबे हैं. यहां पर एक गुप्तकालीन मंदिर था, जो स्वामी महासैन का मंदिर है. यह मंदिर भगवान शंकर के बड़े पुत्र कार्तिकेय का है. कई दशक पहले यहां जो खोदाई की गई थी. गुप्तकाल के स्तंभ निकले थे.

बिल्सढ़ की खुदाई में पांचवीं शताब्दी के मंदिर के अवशेष

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एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार ने बताया कि बिल्सढ़ में वैज्ञानिक तरीके से 7 दिन तक उत्खनन का कार्य किया गया. चार मजदूरों ने उत्खनन किया, जिसमें पुरावशेष निकले हैं. पांचवी शताब्दी के सम्राट कुमारगुप्त के समय के यह पुरावशेष हैं. इसके आगे चहारदीवारी है. इसलिए खोदाई संभव नहीं है. क्योंकि, यह पूरा क्षेत्र ही टीलों पर बसा हुआ है. यहां पर शंख लिपि में जो पुरावशेष मिले हैं, वो आगरा सर्किल में पहला पुरावशेष हैं. इससे पहले लखनऊ सर्किल के लखीमपुर खीरी में शंख लिपि में प्राचीन पुरावशेष मिले थे. इस लिपि में वर्ण कलात्मक होते हैं.

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