लखनऊ :पाक महीना रमज़ान अब अपने आखिरी दौर में पहुंच चुका है. पूरे महीने में रोज़ेदार रोज़ा रखकर अल्लाह की इबादत में ज़्यादा से ज़्यादा वक्त गुज़ारते हैं और इस महीने की तमाम फ़ज़ीलत को हासिल करते हैं. इस पाक महीने का आखिरी अशरा सबसे अहम और सबसे ज़्यादा फ़ज़ीलत वाला बताया जाता है.
रमज़ान का महीना पहुंचा अपने आखिरी दौर में, जाने क्यों है आखिरी अशरा सबसे महत्वपूर्ण
रमजान का पाक महीना अब अपने आखिरी पड़ाव पर है. कल यानी शुक्रवार को देश भर में रमजान के आखिरी जुमे की नमाज पढ़ी गई. इसके लिए रोजेदारों ने सुबह से ही तैयारियां शुरू कर दी थीं और मस्जिदों को सजाया भी गया. हर साल रमजान का इंतजार रोजदारों को रहता है. ऐसा माना जाता है कि रमजान के आखिरी जुमे की नमाज को अदा करने से दुआएं कबूल होती हैं, खुदा रोजेदारों पर रहमतों की बारिश करता है, लोगों में प्यार और भाईचारा बढ़ता है.
रमजान का पाक महीना अब अपने आखिरी पड़ाव पर
रमजान का महीना हर मुसलमान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, जिसमें 30 दिनों तक रोजे रखे जाते हैं. इस्लाम के मुताबिक, पूरे रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है, जो पहला, दूसरा और तीसरा अशरा कहलाता है. अशरा अरबी का 10 नंबर होता है. इस तरह रमजान के पहले 10 दिन (1-10) में पहला अशरा, दूसरे 10 दिन (11-20) में दूसरा अशरा और तीसरे दिन (21-30) में तीसरा अशरा बंटा होता है.
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- रमज़ान के महीने में यूं तो 10-10 दिन के तीन अशरे होते हैं, जिसमें पहला अशरा अल्लाह के बंदों के लिए रहमत का होता है.
- पहले अशरे में इबादतगुज़ार ज़्यादा से ज़्यादा इबादत कर अपने लिए रहमत हासिल करते हैं.
- अगले दस दिन का अशरा मगफिरत का होता है, जिसमें इबादतगुज़ारों के गुनाह अल्लाह माफ करता है.
- आखिरी अशरा सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन दस दिनों में जहन्नुम की आग से बचने का फैसला अल्लाह अपने बंदों के लिए करता है.
- इन आखिरी के दस दिनों के दरमियां शब-ए-कद्र की रातें भी आती हैं, जिनमें इबादत करने पर 1000 रातों के बराबर इबादत करने का सवाब हासिल होता है.