अलीगढ़ : फिराक गोरखपुरी उर्दू के बेहतरीन शायरों में शुमार हैं. सोमवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उनकी याद में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया. लाइब्रेरी के कल्चरल हॉल में इस दौरान युवा शायरों ने उन्हें याद किया. उनकी नज़्म और शायरी को लोगों को सुना कर उनके साहित्यिक सफर पर चर्चा की. उन्होंने देश की गंगा जमुनी तहजीब की शायरी को महफूज रखा और उर्दू शायरी को नया अंदाज दिया. जो आम और आवाम को जोड़कर नया रंग दिया.
AMU में काव्य गोष्ठी कर फिराक गोरखपुरी को किया गया याद
फिराक गोरखपुरी उर्दू के बेहतरीन शायरों में शुमार हैं. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उनकी याद में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया. लाइब्रेरी के कल्चरल हॉल में इस दौरान युवा शायरों ने उन्हें याद किया. उनकी नज़्म और शायरी को लोगों को सुना कर उनके साहित्यिक सफर पर चर्चा की.
फिराक गोरखपुरी का असली नाम रघुपति सहाय था और 1896 में गोरखपुर में उनकाजन्म हुआ था. शुरुआत में अंग्रेजी, उर्दू, फारसी ,भाषा सीखी. वहीं इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा भी पास की . लेकिन आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया और देश की सर्वोच्च नौकरी छोड़ दी . देश की आजादी के लिए वे जेल भी गए.
फिराक गोरखपुरी इलाहाबाद में अंग्रेजी के प्रोफेसर होते हुए उर्दू भाषा को लेखन के लिए चुना था और अपनी ग़ज़लों दोहों और नज्मों को जिंदगी में पिरोया था. साहित्य रचना पर उन्हें साहित्य अकैडमी, ज्ञानपीठ व पद्म भूषण पुरस्कार से नवाजा गया . फिराक ने हुस्न और इश्क पर ही नहीं बल्कि जिंदगी व उसके पहलुओं पर भी बारीकी से लिखा है. फिराक पर डाक टिकट जारी किया जा चुका है .वहीं उनकी शायरी को संसद में भी पढ़ा जा चुका है. पीएम जवाहर लाल नेहरू से उनकी दोस्ती थी.