बरेली: पहले मोबाइल और अलार्म घड़ियां नहीं होती थीं, ऐसे में रोजेदारों को सहरी के लिए उठाने के लिए रात में लगभग 2 बजे कुछ लोग ढोल नगाड़े लेकर दरवाजे-दरवाज़े जाते थे.
सहरी के लिए आज भी जिंदा है बरसों पुरानी यह रवायत - सहरी की परंपरा
बरेली शहर में रमजान के पाक महीने की रौनक देखते ही बनती है. यहां एक तरफ शाम-ए-गुलज़ार होती है तो वहीं दूसरी तरफ लोगों को सहरी के लिए जगाने के लिए पुरानी रवायत और खास अंदाज को कुछ लोगों ने आज भी जिंदा रखा हुआ है.
रमजान पर पुरानी परंपरा
आज भी जिंदा है खास अंदाज और पुरानी रवायत
- बरसों पुरानी इस रवायत को बरेली शहर में कुछ परिवारों ने आज भी जिंदा रखा हुआ है.
- यह लोग रमजान की रातों में सहरी के वक्त हाथों में ढोल लेकर गली-गली निकलते हैं.
- इसके साथ-साथ लोगों को जगाने के लिए आवाजें भी लगाते हैं.
- ऐसे ही एक लोग से बात की गई तो उन्होंने बताया कि रमज़ान के पाक महीने में अल्लाह खुश होते हैं.
- हमें इसके लिए कोई मेहनताना नहीं मिलता है.
- इसे तो बस समाज सेवा के तौर पर करते हैं.
- ढोल-नगाड़े बजाने वालों ने बताया कि कुछ लोग ईद के मौके पर ईदी जरूर देते हैं.
- ऐसे लोगों को कुछ लोग ढोकदार भी कहकर बुलाते हैं.