वाराणसी : जैसा किया है, अब ऐसा न कीजो अगले जन्म मोहे ऐसा न कीजो, यह दुख-दर्द और मन की व्यथा उन नगरवधुओं की है, जो धर्म नगरी काशी में महाश्मशान मणिकर्णिका पर जलती चिताओं के बीच काशी की पुरानी परंपरा का निर्वहन करने के लिए पहुंची थीं. वह महाश्मशान जहां लोग अपनों को लेकर आते हैं अंतिम विदाई देने के लिए. इन जलती चिताओं के बीच अपनों को खोने का दर्द और चारों ओर अजीब सा मातम, लेकिन इस मातम और दुख-दर्द के बीच शुक्रवार की रात महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर महफिल सजी थी.
जन्म सुधारने के लिए महाश्मशान मणिकर्णिका में नाची नगरवधुएं. दरअसल, काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर लगभग 366 साल पुरानी इस परंपरा का निर्वहन आज भी कुछ स्थानीय लोगों की मदद से किया जा रहा है. हर साल चैत्र नवरात्रि की पंचमी तिथि से सप्तमी तिथि तक महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर बाबा श्मशान नाथ का तीन दिवसीय उत्सव मनाया जाता है. यहां अंतिम निशा पर उस परंपरा का निर्वहन होता है, जिसकी शुरुआत सदियों पहले राजा मानसिंह ने की थी.
सदियों से चली आ रही परंपरा
मान्यता है कि उस वक्त राजा मानसिंह ने महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर स्थित बाबा श्मशान नाथ के मंदिर का जीणोद्वार करवाया था. ऐसी मान्यता रही है कि किसी भी शुभ काम में संगीत जरूरी होता है, लेकिन उस वक्त शमशान पर होने वाले इस आयोजन को सभी संगीत के बड़े कलाकारों ने नकार दिया, जिसकी वजह से राजा मानसिंह काफी चिंतित हो गए, उस वक्त कुछ नगरवधुओं ने राजा मानसिंह से अपनी स्वरांजलि पेश कर बाबा के इस उत्सव में शामिल होने की अनुमति मांगी. राजा मानसिंह ने उन्हें अनुमति दी, जिसके बाद उन नगरवधुओं ने बाबा के दरबार में नृत्य पेश कर अपनी स्वरांजलि दी. तभी से यह परंपरा सदियों से आज भी चली आ रही है.
देश के कोने-कोने से पहुंचती हैं नगरवधुएं
सदियों पुरानी परंपरा में आज इतनी बड़ी संख्या में देश के कोने-कोने से नगरवधुओं का आगमन होता है. बिहार के सासाराम, पश्चिम बंगाल, नेपाल, मुजफ्फरनगर और वाराणसी के अलग-अलग हिस्सों से यह नगरवधूएं बाबा श्मशान नाथ के दरबार में जलती चिताओं के बीच साल में एक बार आकर अपना नृत्य प्रस्तुत करती हैं. बाबा को स्वरांजलि देती हैं ताकि उनका यह नारकीय जीवन जल्द खत्म हो और अगला जीवन उन्हें भी उन स्त्रियों की तरह मिले जो घर परिवार में जाकर किसी की बहू बनती हैं. इसी उम्मीद के साथ बड़ी संख्या में देश के कोने-कोने से नगरवधुएं अपना अगला जन्म सुधारने की खातिर जलती चिताओं के बीच बाबा श्मशान नाथ के दरबार में हर साल हाजिरी लगाती हैं.