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मिड डे मील घोटाला: नौनिहालों के निवाले पर डाका डालने वाले दो और गिरफ्तार

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Published : Feb 22, 2019, 11:24 PM IST

स्कूलों में मासूम छात्रों की थाली से निवाला चुराने वाले दोषियों पर सरकार सख्त कार्रवाई करेगी. शासन की तरफ से प्रदेश के सभी जिलों में मिड डे मील के खातों और उसके वितरण की जांच के निर्देश दिए गए हैं. ये सारी कार्रवाई बाराबंकी में मिड डे मील बांटने के नाम पर किए गए करीब सवा चार करोड़ के घोटाले की पोल खुलने के बाद शुरू हुई है.

मिड डे मील घोटाला

बाराबंकी:करीब दो महीने पहले राजधानी लखनऊ शासन में बैठे अधिकारियों के होश उड़ा देने वाले बाराबंकी के एमडीएम घोटाले की परत दर परत अब खुलने लगी हैं. करीब पांच करोड़ के इस बड़े घोटाले ने विभागीय अधिकारियों की पोल खोलकर रख दी है. घोटाले में संलिप्त गैंग के दो और आरोपियों को आज साइबर सेल ने गिरफ्तार कर लिया. इससे पहले गैंग के दो मुख्य अभियुक्तों को पुलिस पहले ही जेल भेज चुकी है. इस घोटाले में शामिल कई बड़े नाम पुलिस रडार पर हैं.

आंगनबाड़ी स्कूलों में नौनिहालों को स्फूर्ति और ताजगी देने के लिए बांटे जाने वाले पुष्टाहार पर डाका डाल दिया गया है. स्कूलों में छह माह से तीन वर्ष के बच्चों को पुष्टाहार बांटा जाता है, लेकिन आंगनबाड़ी बच्चों के निवाले को खुद भी 'खा' रही हैं और दूसरों को भी 'खिला' रही हैं.

इसमें कई विभागों के अधिकारियों की मिलीभगत हो सकती है. घोटाले का हैरानी भरा पहलू ये है कि एक संविदाकर्मी और दूसरा अवैध रूप से काम करने वाला सहायक पिछले पांच वर्षों से घुन की तरह बच्चों का निवाला खाते रहे और अधिकारियों को इसकी भनक तक नहीं लगी.

मिड डे मील घोटाला


ईटीवी इस मुद्दे को पहले भी दिखा चुका है कि कैसे प्रदेश के 971 स्कूलों ने 1 जुलाई से 18 सितंबर, 2018 तक मिड डे मील बांटने से जुड़ी जानकारी मिड डे मील प्राधिकरण को नहीं दी. वहीं 27 स्कूल ऐसे भी मिले जिन्होंने इस दौरान मिड डे मील बांटा ही नहीं. इतना ही नहीं लखनऊ में जब अनुदानित विद्यालयों की जांच हुई तो यह भी सामने आया कि जिस विद्यालय में 187 छात्राएं पंजीकृत थीं वहां 391 छात्राओं को मिड डे मील बांटने की एंट्री की गई थी. ऐसा ही घोटाला कुछ और स्कूलों में भी किया गया.


एमडीएम में मिल रही गड़बड़ियों की शिकायत पर जिलाधिकारी ने बीएसए वीपी सिंह को जांच करने के निर्देश दिए थे. बीएसए द्वारा जब इसकी गुप्त रूप से जांच शुरू की तो वो हैरान रह गए. करीब सवा चार करोड़ रुपयों के घोटाले का आंकलन करके उनको चक्कर आने लगा. एमडीएम के जिला समन्वयक राजीव शर्मा ने अपने साथी रहीमुद्दीन के साथ मिलकर यह सारी रकम स्कूल के खातों में भेजने की बजाय निजी और अपने चहेतों के खातों में भेज कर हड़प कर ली. एमडीएम में हुए इतने बड़े घोटाले को देख राजधानी लखनऊ तक शासन में हड़कम्प मच गया. बीएसए ने दोनों आरोपियों के खिलाफ 29 दिसम्बर को मुकदमा दर्ज कराकर दो मुख्य आरोपियों राजीव शर्मा और रहीमुद्दीन को जेल पहुंचा दिया.

मिड डे मील घोटाला

इस घोटाले का सबसे हैरान कर देने वाला पहलू ये है कि साल 2013 से घोटाला होता रहा और किसी भी अधिकारी को कानों कान खबर तक नहीं हुई. सबसे बड़ी हैरानी तो यह कि एमडीएम जिला समन्वयक राजीव शर्मा की संविदा समाप्त हो गई थी. बावजूद इसके अधिकारियों द्वारा उससे काम लिया जाता रहा. यही नहीं उसका राजदार और इस मामले का सह अभियुक्त रहीमुद्दीन तो कार्यालय में अवैध रूप से काम करता रहा और तत्कालीन अधिकारियों ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया.

कम्प्यूटर के एक्सपर्ट आरोपी रहीमुद्दीन ने बड़ी ही शातिराना ढंग से एमडीएम का 3 करोड़ 38 लाख रुपया अपने खाते में, 50 लाख अपनी प्रेमिका रोज सिद्दीकी के खाते में, 42 लाख अपनी दूसरी महिला मित्र साधना के खाते में इसके अलावा 11 लाख रुपया रघुराज उर्फ किशन के खाते में ट्रांसफर कर लिया. पुलिस ने इस घोटाले की जांच साइबर सेल को सौंपी. साइबर सेल ने इस घोटाले में लिप्त रोजी सिद्दीकी और रघुराज को आज लखनऊ से गिरफ्तार कर लिया. हालांकि पकड़े जाने के बाद रोजी अपने को बेगुनाह बता रही है.

एमडीएम में कन्वर्जन कास्ट स्कूलों को भेजने के लिए कई प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है. कई चरणों से होकर स्कूल खातों में भेजी जाने वाली कन्वर्जन कास्ट बिना और भी लोगों की मिलीभगत से निजी खातों में नहीं भेजी जा सकती. सबसे पहले शासन से मिली धनराशि कोषागार में भेजी जाती है फिर खण्ड शिक्षाधिकारियों की डिमांड पर विद्यालयवार राशि एमडीएम खातों में भेजे जाने के लिए वित्त एवं लेखाधिकारी से परीक्षण कराना होता है. इतने चरणों से गुजरने के बाद भी निजी खातों में पैसा जाता रहा और किसी को पता न चला.

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