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'चमकी बुखार' से लड़ेगा लखनऊ प्रशासन, तैयारियां पूरी - lucknow health news

चमकी बुखार के कारण बिहार में हाहाकार मचा है और अस्पतालों में बच्चों के भर्ती होने की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. सबसे ज्यादा हालात मुजफ्फरपुर में खराब हैं, यहां पर मरने वालों का आंकड़ा भी ज्यादा है.

चमकी बुखार से निपटने के लिए तैयार है लखनऊ.

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Published : Jun 22, 2019, 11:09 PM IST

लखनऊ:इन दिनों 'चमकी बुखार' की वजह से बिहार राज्य चर्चा में बना हुआ है. इस बुखार की वजह से बिहार में करीब सैकड़ों बच्चे जान गवां चुके हैं. इसी को मद्देनजर रखते हुए राजधानी इस त्रासदी से निपटने के लिए तैयार है. इसकी जानकारी लेने के लिए ईटीवी भारत ने लखनऊ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. नरेंद्र अग्रवाल से बात की और तमाम व्यवस्थाएं जानीं.

लखनऊ प्रशासन चमकी बुखार से दो-दो हाथ को तैयार.

बिहार में चमकी बुखार का प्रकोप

  • इन दिनों बिहार में चमकी बुखार कहर बरपा रहा है.
  • हर रोज चमकी बुखार से मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है.
  • बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार का प्रकोप सबसे ज्यादा है.
  • इसको लेकर प्रदेश में भी अभियान चलाए जा रहे हैं.

लखनऊ के सीएमओ डॉ. नरेंद्र अग्रवाल ये बोले

हिंदी में इस बुखार को 'चमकी बुखार' और अंग्रेजी में 'एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम' के नाम से जाना जाता है. इस बुखार को हर राज्य में अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है. प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में इसे 'जापानी बुखार' भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि यह बुखार संचारी रोग में आता है.

एसकेएमसीएच के आंकड़ों के मुताबिक

  • चमकी बुखार से साल 2012 में सबसे ज्यादा 120 मौतें हुईं.
  • 2013 में 39 और साल 2014 में 90 मौतें, फिर 2015 में 11 मौतें हुईं.
  • 2016 में चमकी बुखार से 4 मौतें और 2017 में 11 मौतें हुई.
  • 2018 में चमकी बुखार से 7 बच्चों की जान गई थी.
  • इस साल चमकी बुखार में बच्चों के मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं.

चमकी बुखार के लक्षण

  • चमकी बुखार में बच्चें को लगातार तेज बुखार चढ़ा रहता है.
  • बदन में ऐठन होती है. बच्चे के दांत पर दांत चढ़ जाते हैं.
  • कमजोरी की वजह से बच्चा बार-बार बेहोश होता है.
  • चमकी बुखार में बच्चे का शरीर सुन हो जाता है.
  • कई मौकों पर ऐसा भी होता है कि अगर बच्चे को चिकोटि काटेंगे तो उसे पता भी नहीं चलता.

पहली बार गोरखपुर में चमकी बुखार ने दी थी दस्तक

1977 में पहली बार इस बीमारी ने गोरखपुर में दस्तक दी थी. उस साल 274 बच्चे भर्ती हुए थे. इसमें 58 बच्चों की मौत हो गई थी. तब से लेकर आज तक इस बीमारी से लगातार मासूम बच्चों की मौत हो रही है. वर्ष 2005 में इस बीमारी का सबसे भयानक कहर पूर्वांचल ने झेला और यूपी में करीब 1500 बच्चों की मौत हो गई थी.

इस बीमारी के चलते 2005 में सबसे ज्यादा मौतें हुईं

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च डाटा वर्ल्ड बैंक के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 40 साल में करीब 40 हजार बच्चे इस बीमारी की चपेट में आए हैं. उसमें करीब 10 हजार बच्चों की मौत हुई है. साल 2016 का आंकड़ा बताता है कि इस साल बीते सालों की अपेक्षा मौतों की संख्या 15 फीसद बढ़ी है.

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