बागपत: जिले से करीब 25 किलोमीटर दूर भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है. जिसके दर्शन मात्र से ही लोगों की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. हिंडन नदी के किनारे बसे पुरा गांव में भगवान भोले का यह मंदिर भक्तों की आस्था और विश्वास का अटूट तीर्थ है. जहां फागुन मास में लाखों शिव भक्त हरिद्वार से गंगाजल लाकर यहां भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.
मान्यता है कि पुरा गांव के इस मंदिर में भगवान परशुराम ने शिवलिंग की स्थापना करके भगवान शिव की तपस्या की थी. जिसके बाद तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उनको साक्षात दर्शन दिए थे. तब से इस मंदिर का नाम पुरा महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ. शिवरात्रि पर यहां पर लाखों श्रद्धालु हरिद्वार से गंगाजल लाकर यहां भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.
मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां कजरी वन हुआ करता था. इसी वन में जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका के साथ रहते थे. एक बार एक राजा सहस्त्रबाहु शिकार खेलते हुए जमदग्नि ऋषि के आश्रम पहुंच गए. जहां ऋषि के न होने पर उनकी पत्नी रेणुका ने कामधेनु गाय की कृपा से राजा का आदर सत्कार किया. जिसके राजा सहस्त्रबाहु ने कामधेनू गाय को अपने साथ ले जाने की इच्छा जताई. लेकिन वह ऐसा करने में असफल रहा. जिससे गुस्सा क्रोधित होकर राजा रेणुका को अपने साथ महल ले आया.
परशुराम ने किया थाअपनी माता का सिर धड़ से अलग
महल में रेणुका की छोटी बहन ने किसी तरह से उन्हें मुक्त कर दिया. वापस आकर जब रेणुका ने सारी बातें ऋषि जमदग्नि को बताई, तो ऋषि ने एक रात दूसरे पुरुष के महल में रहने की के कारण उन्हें आश्रम छोड़ने का आदेश दे दिया. जिसके बाद रेणुका ने ऋषि से प्रार्थना करते हुए आश्रम से नहीं जाने बात की. तो गुस्साए ऋषि ने अपने तीनों पुत्रों को उनकी माता के सिर धड़ से अलग करने को कहा. लेकिन तीनों पुत्रों ने ऐसा करने से मना कर दिया. वहीं चौथे पुत्र परशुराम ने पितृ धर्म का पालने करते हुए अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया.