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यूपी के इन 50 लाख किसानों को 'किसान' ही नहीं मानती सरकार ! `

देश में किसानों की समस्या हमेशा से ही गंभीर मुद्दा रहा है. आधी से ज्यादा आबादी का पेट पालने वाले इस कृषि क्षेत्र की बदहाली किसी से छिपी नहीं है. देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में भी किसानों की स्थिति बदतर है. प्रदेश में 50 लाख किसान तो ऐसे हैं जो सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक किसानों की श्रेणी में फिट ही नहीं बैठते.

बटाईदार किसानों के हक में नहीं सरकारी योजनाएं.

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Published : Jul 3, 2019, 2:44 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुल 2 करोड़ 33 लाख से ज्यादा किसान हैं. इन किसानों के पास किसी न किसी रूप में खेती की जमीन का मालिकाना हक है, लेकिन सूबे में 50 लाख किसान ऐसे भी हैं जो सरकारी दस्तावेजों के अनुसार किसान नहीं है. खेती पर आश्रित ऐसे किसान देश के अन्नदाता हैं लेकिन सरकारी फाइलों में शुमार ना होने की वजह से कृषि विभाग की योजनाओं से पूरी तरह वंचित हैं.

सरकारी उदासीनता से बिगड़ी बटाईदार किसानों की स्थिति.
सरकारी योजनाओं से वंचित भूमिहीन किसान

किसानों के लिए कृषि विभाग की ओर से सैकड़ों योजनाएं चलाई जा रही हैं, जो उन्हें खेती करने में सहायता देती हैं. इनमें कृषि यंत्रों पर छूट से लेकर जमीन सुधार, सिंचाई के साधन, बीज और खाद समेत वह सब कुछ है जो किसानों के लिए खेती को आसान बनाता है. इससे खेती में आर्थिक लागत भी कम होती है. ये सभी सरकारी योजनाएं केवल उन्हीं किसानों के लिए हैं जो राजस्व संहिता के अनुसार कृषि भूमि के मालिक हैं. ऐसे में बटाईदार या भूमिहीन किसानों की बदहाली की सुनवाई करने के लिए सारे सरकारी दरवाजे बंद हैं.

बेबसी में रहने को मजबूर बटाईदार किसान

अपनी जमीन न होने पर गांव में ऐसे किसान बटाई यानी किराएदारी के आधार पर खेती करते आ रहे हैं. ऐसे किसान बखूबी जानते हैं कि उन्हें सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिलेगा इसलिए न तो इन योजनाओं में उनकी कोई दिलचस्पी है और न ही वह इसे अपना अधिकार ही मानते हैं. बेबस किसानों का हाल यह है कि वह खुलकर अपनी बात भी कहने से डरते हैं. कुछ किसान जरूर यह चाहते हैं कि सरकार खेती से जुड़ी सभी योजनाओं में उन्हें भी शामिल करें.

हर साल बटाई पर जमीन लेकर खेती करते हैं. इसके लिए बड़ी धनराशि खर्च करनी पड़ती है और सरकारी योजनाओं का लाभ न मिल पाने के चलते बीज, खाद और सिंचाई की सुविधाएं मंहगी मिलती हैं और खेती की लागत बढ़ जाती है. मौसम की मार के चलते कई बार फसल बर्बाद हो जाती है तो सरकार की ओर से मिलने वाला मुआवजा या फसल बीमा का लाभ भी हमें नहीं मिल पाता है.
-मूलचंद, भूमिहीन किसान- निवासी गांव धावां, लखनऊ

सरकारी योजनाओं की सबसे ज्यादा जरूरत ऐसे किसानों को है लेकिन उन तक लाभ नहीं पहुंच रहा है. ऐसे में इन किसानों की स्थिति खेतिहर मजदूर जैसी हो गई है.
- भैरव सिंह, ग्राम प्रधान -धावा

कृषि विभाग की प्रमुख योजनाएं

  • उन्नत खेती प्रदर्शन कार्यक्रम.
  • कृषि यंत्रों पर 50% तक छूट.
  • कृषकों को प्रशिक्षण की सुविधा.
  • बीजों पर 50% से 80% तक अनुदान.
  • सिंचाई साधनों की खरीद पर 50% छूट.
  • वर्षा प्रभावित क्षेत्रों में प्रति हेक्टेयर 1लाख तक अनुदान.
  • प्रधानमंत्री कृषक सम्मान निधि योजना.
  • कीट व रोग नियंत्रण योजना के तहत अनुदान.
  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय कृषि समृद्धि योजना में बीहड़ बंजर भूमि के सुधार पर शत-प्रतिशत अनुदान.
  • फसल उत्पादन बागवानी कृषि वानिकी में 50 फ़ीसदी अनुदान.
  • वर्मी कंपोस्ट यूनिट स्थापना पर अनुदान.
  • मृदा परीक्षण योजना.

इस दिशा में विचार किया जा रहा है और मुमकिन है कि ऐसे किसानों को भी लाभार्थी की श्रेणी में लाया जाए. फिलहाल, सरकार की ओर से ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है.
- राम शब्द जैसवारा, अपर निदेशक कृषि

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