लखनऊ : उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में विभाजित करने का एक प्रस्ताव मायावती सरकार ने विधानसभा में पारित किया था. तत्कालीन बसपा सरकार ने प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था. लेकिन केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के प्रस्ताव पर स्पष्टीकरण मांगते हुए वापस भेज दिया था. राज्य के बंटवारे की मांग करने वालों के लिए आज भी वह प्रस्ताव किसी सपने से अधिक नहीं है.
चार हिस्सों में बांटने का था प्लान
मायावती सरकार ने उत्तर प्रदेश को पूर्वांचल, बुंदेलखंड, पश्चिम प्रदेश और अवध प्रदेश में बांटने का प्रस्ताव तैयार किया था. वहीं विपक्षी दलों ने मायावती सरकार के उस प्रस्ताव को चुनावी शिगूफा के रूप में देखा था. आज भी बसपा के इतर राजनीतिक दल इसे शिगूफा ही मान रहे हैं. छोटे-छोटे राज्यों की हिमायती भारतीय जनता पार्टी भी सीधे तौर पर राज्य की तत्कालीन बहुजन समाज पार्टी की सरकार के उस प्रस्ताव को शिगूफा ही मान रही थी.
छोटे राज्य की हिमायती भाजपा भी बसपा पर उठा रही सवाल
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हीरो वाजपेयी कहते हैं कि अगर मायावती सरकार वास्तव में राज्य को छोटे-छोटे चार राज्यों में तब्दील करना चाहती थी तो उन्हें इस तरफ कदम सरकार के अपने शुरुआती कार्यकाल में ही करना था. लेकिन सच तो यह है कि उन्हें राज्य के विकास से कोई लेना-देना नहीं था. उन्होंने इस प्रस्ताव को लाने के लिए चुनावी वर्ष को चुना. 2012 में चुनाव होने थे और 2011 में उन्होंने यह प्रस्ताव विधानसभा में पारित किया. इससे साफ है कि वह केवल चुनावी शिगूफा था.
वहीं राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी का कहना है कि तत्कालीन मायावती सरकार ने विकास को केंद्र में रखकर यह प्रस्ताव पारित किया था. लेकिन 2012 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव की वजह से उनके इस प्रस्ताव को चुनावी कार्ड के रूप में ही देखा गया था. मायावती ने यह सोच कर इस प्रस्ताव को पारित किया क्योंकि उन्हें लगा कि कांग्रेस और भाजपा जैसे दोनों राष्ट्रीय दल छोटे राज्यों की हिमायती हैं. उनकी यह चाल सफल हो गयी तो इसका राजनीतिक लाभ बसपा को मिलेगा.
दरअसल, केंद्र की यूपीए सरकार भी छोटे राज्यों की बात कर रही थी. सरकार ने आंध्र प्रदेश से अलग कर तेलंगाना राज्य के निर्माण को भी हरी झंडी दी थी. वहीं भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश से अलग करके उत्तराखंड का निर्माण किया था. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ झारखंड राज्य का गठन किया गया था. भारतीय जनता पार्टी भी छोटे राज्यों की हिमायती थी.
अभी ठंडे बस्ते में है विभाजन का प्रस्ताव
पीएन द्विवेदी कहते हैं कि वैसे तो राज्य के गठन की शक्ति केंद्र के पास है. राज्य को अधिकार ही नहीं है. राज्य सरकार की संस्तुति पर केंद्र सरकार द्वारा बंटवारे पर अंतिम मोहर लगाई जाती है. वह भी राष्ट्रपति की सहमति के उपरांत ही अंतिम रूप दिए जाने का प्रावधान है. भाजपा भले ही छोटे राज्यों की हिमायती हो, लेकिन मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की इस प्रकार की कोई भी मंशा नहीं दिखाई दे रही है. केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार होने के नाते यूपी की योगी सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहेगी. मौजूदा परिस्थितियों को देखकर यह कहा जा सकता है कि यदि कोई पहल होती है तो वह केंद्र सरकार की तरफ से ही होगी.