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गोरखपुर: हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक 'बाले मियां मेला', जुटती है लाखों की भीड़ - gorakhpur news

गोरखपुर में हिंदू- मुस्लिम एकता के प्रतीक हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी रहमतुल्लाह अलैह का मेला बहरामपुर स्थित आस्ताने पर शुरू हो गया. मेले में लाखों अकीदतमंदों के आने की उम्मीद है. एक माह तक चलने वाले इस एतिहासिक मेले में लाखों की भीड़ देख पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा व नगर निगम से परिसर में सफाई, पेयजल, लाइट और अस्थायी शौचालय का इंतजाम किया है.

हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक

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Published : May 27, 2019, 4:56 PM IST

गोरखपुर: हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक माने जाने वाले बाले मियां के लग्न की रस्म में जायरीनों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है. हिंदू-मुस्लिम सभी एक साथ मिलकर इस स्थान पर अपनी मन्नतें और मुरादों को पूरा करने के लिए पलंग पीढ़ी, कनूरी बाबा को चादर चढ़ा कर दुआ मांगते हैं.

सामाजिक सदभाव का सबसे बड़ा उदाहरण बाले मियां मेला

सामाजिक सद्भाव का सबसे बड़ा उदाहरण

'बाले मियां मेला' हिंदू-मुस्लिम समेत सभी संप्रदाय के लोग आते हैं. किसी तरह का धार्मिक भेदभाव नहीं होता. सभी धर्मो के लोगों में बाले मियां के प्रति आस्था है. यह मेले पूरा एक महीना चलता है. रविवार के दिन यहां सर्वाधिक भीड़ हुई है.


बता दें कि बीती रात रविवार को रात 12:00 बजे जोहरा बीवी की रूहानी शादी की रस्म अदा की गई. इस दौरान पुनः मजार शरीफ का ग़ुस्ल व संदलपोशी हुई. इसके बाद चादर चढ़ाने के साथ कुल शरीफ की रस्म भी अदा की गई. देर रात तक विभिन्न जगहों से लोग नाचते-गाते 'बाले मियां मेला' पहुंचे और मन्नत की 'पलंगपिढ़ी' 'सुहाग का सामान'चढ़ाया गया.

  • हजरत सैयद सालार मसूद गाजी उर्फ बाले मियां के 'लग्न की रस्म'की अदायकी बहरामपुर स्थित दरगाह पर परंपरागत तरीके से मनाया जा रहा है..
  • 'बाले मियां मेला' में बड़ी संख्या में अकीदतमंदों ने दरगाह पर पहुंच कर मन्नतें मांगी और मजार का गुस्ल, परंपरागत चादर पोशी, संदलपोशी किया गया.
  • सुबह से ही अकीदतमंदों के दरगाह पर आने का सिलसिला शुरू हो गया है.
  • दरगाह परिसर में कव्वाली की धुन लोगों को सूफी मिजाज में रंग हुई है.
  • बच्चों का मुंडन संस्कार कराने वालों का भी तांता लगा हुआ है.
  • लंबे-लंबे बांसों में बधी छोटी, कुमकुम से सजी छोटी-छोटी पलंग पीढ़ियों और कनूरी लेकर गाजे-बाजे के साथ लोगों का हुजूम बाले मियां के मैदान में पहुंच रहे है.
  • अकीदतमंदो ने चने की दाल, आटे की मीठी अखियां, रोटी, मुर्गा व चावल आदि पकाकर फातिया करा रहे हैं.

दरगाह के ऊपर लगे कलश पर कौड़ी मारना

ऐसी मान्यता है कि जिनकी कौड़ी कलश पर लग जाती है. उनकी मुरादें पूरी हो जाती हैं, इसके बाद बाबा के आस्थाने पर पलंग पीढ़ियों को चाहने का क्रम जारी है.

साल दर साल यहां चढ़ाते हैं प्रसाद

बचपन से अपने परिवार के साथ आ रही वर्षा ने बताया कि "आज तक जो भी मन्नते बाबा से मांगी गई है. वे सभी पूरी हुई है. मैं पिछले 10 वर्षों से परिवार के साथ यहां जियारत करने आती हैं. यहां खिचड़ी बना कर चढ़ाती है.जो हिन्दू मुस्लमान परिवार मांसाहारी हैं, वे मुर्गा का व्यंजन भी बनाते हैं. बाले मियां की मेरे और मेरे परिवार की काफी श्रद्धा है.’’



यह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक, गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल बाले मियां की रस्म अदायगी शुरू हो गई है. इस मेले में सैकड़ों वर्षों से चली आ रही परंपरा रूहानी शादी जोहरा बीवी की रस्म को अदा किया जाता है. इस स्थान पर सभी धर्मों के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और सभी की मन्नतें बाबा पूरी करते हैं. यहां हिंदुओं की तादाद सबसे ज्यादा होती है. ऐसी मान्यता है कि यहां पर कनूरी, फातिया कराने से सभी की मन्नतें पूरी हो जाती हैं. दरगाह में सभी धर्मों के मानने वाले लोग आते हैं.

इस्लाम हाशमी, मुतवल्ली

वर्षों से उनकी कई पीढ़ी इस मेले में आकर बाले मियां के लग्न अदायगी में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करती है. हम यहां पर आकर कनूरी करते हैं, पलंग पीढ़ी चढ़ाते हैं और फिर फातिया कराते हैं.

राकेश, हिन्दू अकीदतमंद

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