गोरखपुर: हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक माने जाने वाले बाले मियां के लग्न की रस्म में जायरीनों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है. हिंदू-मुस्लिम सभी एक साथ मिलकर इस स्थान पर अपनी मन्नतें और मुरादों को पूरा करने के लिए पलंग पीढ़ी, कनूरी बाबा को चादर चढ़ा कर दुआ मांगते हैं.
सामाजिक सद्भाव का सबसे बड़ा उदाहरण
'बाले मियां मेला' हिंदू-मुस्लिम समेत सभी संप्रदाय के लोग आते हैं. किसी तरह का धार्मिक भेदभाव नहीं होता. सभी धर्मो के लोगों में बाले मियां के प्रति आस्था है. यह मेले पूरा एक महीना चलता है. रविवार के दिन यहां सर्वाधिक भीड़ हुई है.
बता दें कि बीती रात रविवार को रात 12:00 बजे जोहरा बीवी की रूहानी शादी की रस्म अदा की गई. इस दौरान पुनः मजार शरीफ का ग़ुस्ल व संदलपोशी हुई. इसके बाद चादर चढ़ाने के साथ कुल शरीफ की रस्म भी अदा की गई. देर रात तक विभिन्न जगहों से लोग नाचते-गाते 'बाले मियां मेला' पहुंचे और मन्नत की 'पलंगपिढ़ी' 'सुहाग का सामान'चढ़ाया गया.
- हजरत सैयद सालार मसूद गाजी उर्फ बाले मियां के 'लग्न की रस्म'की अदायकी बहरामपुर स्थित दरगाह पर परंपरागत तरीके से मनाया जा रहा है..
- 'बाले मियां मेला' में बड़ी संख्या में अकीदतमंदों ने दरगाह पर पहुंच कर मन्नतें मांगी और मजार का गुस्ल, परंपरागत चादर पोशी, संदलपोशी किया गया.
- सुबह से ही अकीदतमंदों के दरगाह पर आने का सिलसिला शुरू हो गया है.
- दरगाह परिसर में कव्वाली की धुन लोगों को सूफी मिजाज में रंग हुई है.
- बच्चों का मुंडन संस्कार कराने वालों का भी तांता लगा हुआ है.
- लंबे-लंबे बांसों में बधी छोटी, कुमकुम से सजी छोटी-छोटी पलंग पीढ़ियों और कनूरी लेकर गाजे-बाजे के साथ लोगों का हुजूम बाले मियां के मैदान में पहुंच रहे है.
- अकीदतमंदो ने चने की दाल, आटे की मीठी अखियां, रोटी, मुर्गा व चावल आदि पकाकर फातिया करा रहे हैं.
दरगाह के ऊपर लगे कलश पर कौड़ी मारना