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रुक सकेंगी दुष्कर्म की घटनाएं, अतीत में छिपा है इसका तरीका - लखनऊ समाचार

उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने वर्तमान की सबसे बड़ी चुनौती महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर लगाम लगाना है. पिछले दिनों पूरे प्रदेश में जिस तरीके से बच्चियों और महिलाओं के प्रति दुष्कर्म की घटनाएं सामने आई हैं साबित होता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस के पास दुष्कर्म पर लगाम लगाने के लिए कोई प्रभावी तंत्र मौजूद नहीं हैं.

दुष्कर्म की घटनाओं पर लगाम

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Published : Jun 21, 2019, 1:47 PM IST

लखनऊ: सीएम योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट शब्दों में उत्तर प्रदेश पुलिस के आला अधिकारियों को महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर लगाम लगाने के लिए निर्देशित किया है. शासन ने अपराधिक गतिविधियों को देखते हुए शीर्ष नेतृत्व में बदलाव भी किया और उत्तर प्रदेश के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर की कमान पीबी रामा शास्त्री को सौंपी गई.

पूर्व डीजीपी बृजलाल से ईटीवी भारत की खास बातचीत.

महिलाओं के प्रति होने वाली घटनाओं पर लगाम न लगा पाने के पीछे पुलिस की अपनी मजबूरियां हैं. पुलिस विभाग के बड़े पदों पर तैनात अधिकारियों का कहना है कि महिलाओं के साथ दुष्कर्म की ज्यादातर घटनाएं इंसटेंट होती हैं. यह कोई संगठित अपराध नहीं होता है. यह पहले से तय नहीं होता है, लिहाजा इसके बारे में जानकारी जुटा पाने में पुलिस नाकामयाब रहती है.

जब घटनाएं हो जाती हैं तब पुलिस को सूचना मिलती है और उसके बाद पुलिस हरकत में आकर कार्रवाई करती है. ऐसे में सवाल उठता है कि जब लगातार महिलाओं के प्रति इस तरीके की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है और शासन घटनाओं को रोकने के लिए सख्त है. ऐसे में पुलिस विभाग करे भी तो क्या करे.


पूर्व डीजीपी बृजलाल ने बताए तरीके-

  • पूर्व डीजीपी बृजलाल से बातचीत में उन्होंने महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर लगाम लगाने के प्रयासों को बताया.
  • थाने स्तर पर एक समिति बनाई जाती थी जो क्षेत्र के ऐसे लोगों को चिन्हित करती थी जो महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाओं में संलिप्त रहते थे.
  • ऐसे लोगों का गोपनीय तरीके से डाटा बनाया जाता था और उनको बाद में बुलाकर थाने पर काउंसलिंग कराई जाती थी.
  • काउंसलिंग के दौरान क्षेत्र के प्रभावशाली लोग भी मौजूद रहते थे. ऐसे में एक सामाजिक ताना-बाना बनता था और लोगों में जागरूकता के साथ-साथ एक डर व्याप्त होता था.
  • ऐसा करके हमें काफी हद तक आपराधिक घटनाओं पर लगाम लगाने में कामयाबी मिलती थी.
  • बृजलाल का कहना है कि अब आधुनिक दौर में हम अपनी समिति में डॉक्टर भी शामिल कर सकते हैं जो मनोवैज्ञानिक तौर पर यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि कौन व्यक्ति इस तरीके की घटनाओं को अंजाम दे सकता है.
  • महिलाओं खासकर बच्चियों के साथ दुष्कर्म और फिर उनकी हत्या करने वाले अपराधियों को मनोरोगी माना जाता है.
  • ऐसे में अगर समिति में डॉक्टर को शामिल किया जाएगा तो वह समाज में जुड़े हुए ऐसे लोगों की पहचान कर सकेगा और उन पर नजर रखी जा सकेगी.
  • बृजलाल से जब सवाल किया गया क्या यह प्लान प्रैक्टिकल है और उसको लागू किया जा सकता है तो उन्होंने कहा कि या प्लान पूरी तरीके से प्रैक्टिकल है और इससे पहले भी लागू किया गया है और उसके फायदे भी मिले है.
  • बृजलाल ने कहा कि मैं वर्तमान में महिलाओं के प्रति घटित हुई घटनाओं का संदर्भ लेते हुए एडीजी लॉ एंड ऑर्डर को इस ओर काम करने के लिए पत्र भी लिखूंगा.
  • बताते चलें पूर्व डीजीपी बृजलाल इस समय एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष भी हैं.

पूर्व डीजीपी के प्लान पर क्या बोले केजीएमयू के मनोचिकित्सक
केजीएमयू के मनोचिकित्सक डॉ. पीके दलाल ने बताया कि काफी हद तक इस प्लान से महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर लगाम लगाई जा सकती है, क्योंकि इन अपराधों के बारे में पहले से अंदाजा लगा पाना कठिन है. ऐसे में अगर थाने स्तर पर समिति बनाकर जिम्मेदारों को उसमें शामिल किया जाए और ऐसे लोगों को चिन्हित किया जाए जो एंटी सोसायटी हैं. उनका डाटा बनाकर उनकी काउंसलिंग की जाए तो काफी हद तक घटनाओं को रोका जा सकता है.

उन्होंने बताया कि ऐसे लोगों की काउंसलिंग करने के साथ-साथ परिवार और बच्चों को भी जागरूक करने की जरूरत है, जिससे वह अपने साथ होने वाली घटनाओं के बारे में सचेत रहें और शंका होने पर तुरंत एक्शन ले. बच्चियों और महिलाओं के साथ होने वाले दुष्कर्म के मामले में ज्यादातर केस में उनके पड़ोसी या परिवार के कोई सदस्य शामिल होते हैं. ऐसे में इन लोगों की बच्चियों पर गलत नजर होती है. पहले यह बच्चियों के साथ छोटी मोटी हरकतें करते हैं, लेकिन जब इन हरकतों पर कोई रिएक्शन नहीं होता है तो इनका मनोबल बढ़ता है. ऐसे में जागरूकता के साथ साथ ऐसी घटनाओं को होने पर बदनामी के डर को भी लोगों के मन से निकालना होगा.

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