कन्नौज: फाइलेरिया जैसी घातक बीमारी को लेकर जनपद में स्वास्थ्य विभाग कार्यक्रम चलाने जा है. जिसके तहत ब्लीचिंग और डीटीडी पाउडर का छिड़काव कराया जाएगा और साथ ही लोगों को जागरूक किया जाएगा. आइए जानते हैं फाइलेरिया के बारे में...
- फाइलेरिया की बीमारी फाइलेरिया संक्रमण मच्छरों के काटने से फैलती है. यह मच्छर फ्यूलेक्स एवं मैनसोनाइडिस प्रजाति के होते हैं
- मच्छर से मरीज में फाइलेरिया के माइक्रो फाइलेरिया वर्म प्रवेश कर जाते हैं . जो वयस्क होने पर मनुष्य को प्रभावित करता है. माइक्रो वर्म को वयस्क होने में एक वर्ष लगता है.
- इसके अंदर यदि मरीज फाइलेरिया की एक खुराक डाईइथाइल कार्बाजिन ले ले तो, माइक्रो फाइलेरिया वर्म नष्ट हो जाते हैं और मरीज फाइलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार होने से बच जाता है.
कैसे करें इसकी पहचान
- समान्यत: यह संक्रमण शुरुआती बचपन में ही हो जाता है यद्यपि यह बीमारी वर्षों बाद स्पष्टता प्रकट होती है.
- इस प्रकार सामान्य एवं स्वस्थ दिखने वाले व्यक्ति को कुछ सालों बाद टांगों, हाथों एवं शरीर के अन्य अंगो में अत्यधिक सूजन उत्पन्न होने लगती है.
- इसके प्रभावित अस्वस्थ शरीर के इस भाग पर विभिन्न प्रकार के जीवाणु तेजी से पनपने लगते हैं, साथ ही प्रभावित अंगों की लसिका ग्रंथियां इन अधिकाधिक संख्या में पनपे हुए जीवाणुओं को छान नहीं पाते हैं.
- प्रभावित अंगों में दर्द, लालपन, एवं रोगी को बुखार हो जाता है. हाथ-पैर में, अंडकोष व शरीर के अन्य अंगों में सूजन के लक्षण होते हैं.
- प्रारंभ में यह सूजन अस्थाई होती है, किंतु बाद में यह स्थाई और लाइलाज हो जाती है.