उदयपुर.प्रदेश में भले ही विधानसभा चुनाव होने में अभी वक्त है, लेकिन जनता के मिजाज और हवा का रुख समझने के लिए नेताओं के दौरे शुरू हो गए हैं. प्रधानमंत्री मोदी के मेवाड़-वागड़ दौरे के बाद अब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी सियासी जमीन को मजबूत करने के लिए दौरे कर रही हैं. ऐसे में दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र को साधने के साथ ही वसुंधरा वर्तमान सियासी नब्ज को भी टटोल रही हैं.
दरअसल मेवाड़ वागड़ में एक समय कांग्रेस का दबदबा देखने को मिलता था लेकिन पिछले चुनावों पर नजर डाले तो कांग्रेस धीरे-धीरे मेवाड़-वागड़ में भाजपा के मुकाबले कमजोर होती दिख रही है. यही कारण है कि भाजपा को मेवाड़ और वागड़ से इस बार के विधानसभा चुनाव में खासी उम्मीद लगाए हुए हैं.इसलिए वसुंधरा राजे भी सियासी जमीन को मजबूत करने के लिए आदिवासियों की आस्था का केंद्र कहे जाने वाले मानगढ़ धाम पहुंची. यहां पूजा-अर्चना करने के साथ ही स्थानीय लोगों से मुलाकात कर हवा का रुख भांप रही हैं. वही उदयपुर संभाग के बड़े नेताओं से मुलाकात कर फिर से सक्रिय राजनीति का इशारा कर रही है.
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राजस्थान में सीएम की बात पर बोलीं वसुंधरा, ये तो आलाकमान तय करेगा
उदयपुर के सलूंबर इलाके में वसुंधरा राजे जब लोगों से मिलने पहुंची तो मीडिया कर्मियों ने उनसे सीएम बनने को लेकर सवाल किया तो उन्होंने बड़ी संजीदगी से जवाब दिया कि यह हमारा काम नहीं है. यह निर्णय तो आलाकमान ही करेगा.
प्रधानमंत्री के दौरे के बाद वसुंधरा मेवाड़ में हुई सक्रिय
दरअसल प्रधानमंत्री मोदी एक नवंबर को आदिवासियों की आस्था का केंद्र कहे जाने वाले मानगढ़ धाम आए थे. इसके बाद हाल ही में 28 जनवरी को भीलवाड़ा के आसींद में गुर्जरों की आस्था का केंद्र कहे जाने देवनारायण भगवान के कार्यक्रम में भी वे सम्मिलित हुए थे. अब प्रधानमंत्री के दौरे के बाद पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे दक्षिणी राजस्थान को साधने के लिए सक्रिय नजर आ रही हैं. यही वजह है कि उदयपुर संभाग के 3 जिलों को वह अपने दो दिवसीय प्रवास पर कवर कर रही हैं. वसुंधरा राजे यह भी जानती है कि राजस्थान में जब-जब उनकी सरकार बनी तब-तब मेवाड़ वागड़ ने उनका भरपूर सहयोग किया. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस राजस्थान में सरकार बनाने में सफल रही. हालांकि कांग्रेस उदयपुर संभाग की 28 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 10 सीटें ही जीत पाई थी जबकि भाजपा 15 सीटें जीतने में सफल रही थी.
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मेवाड़ वागड़ पर क्यों फोकस
राजनीतिक विश्लेषक राजकुमार ने बताया कि एक पुरानी कहावत है कि जिसने मेवाड़ जीता उसने राजस्थान पर राज किया. लेकिन पिछले चुनाव में यह मिथक टूटता हुआ नजर आया था. क्योंकि भाजपा ने कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा सीट जीती लेकिन सरकार नहीं बना पाई. राजनीतिक विश्लेषक राजकुमार ने बताया कि एक समय होता था जब मेवाड़ कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था. लेकिन पिछले तीन से चार विधानसभा चुनाव को देखें तो कांग्रेस धीरे-धीरे कमजोर होती नजर आ रही है.
बेड़ेश्वर धाम की यात्रा के दौरान एक महिला से मिलतीं वसुंधरा वसुंधरा से मिले रणधीर सिंह भिंडर
दरअसल मेवाड़ की सियासत में वल्लभनगर विधानसभा सीट का अपना राजनीतिक महत्व है. भाजपा के पूर्व विधायक रणधीर सिंह भिंडर और नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के बीच राजनीतिक अदावत जगजाहिर है. रणधीर सिंह भिंडर ने भाजपा छोड़कर अपनी स्वयं की जनता सेना पार्टी बना ली. लेकिन जब जब भी मेवाड़ में वसुंधरा राजे का दौरा रहता है वह सक्रिय रूप से उनका स्वागत करने के साथ उनके कार्यक्रमों में शामिल होते हैं. इसे लेकर भी राजनीतिक पंडित कई अलग-अलग कयास लगा रहे हैं.
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आदिवासी सीटें अहम
मेवाड़ आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र भी माना जाता है. आदिवासी बाहुल्य मेवाड़ में 5 लोकसभा सीटें और 7 जिले हैं. विधानसभा के लिहाज से मेवाड़ में 28 विधानसभा सीटें हैं. इनमें 17 सीटें अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. इनमें उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर शामिल हैं. राजस्थान की राजनीति में मेवाड़ का अपना दबदबा रहा है. इसे देखते हुए यहां नेताओं के प्रवास लगातार जारी है.
पोस्टर में फिर वसुंधरा की वापसी
पिछले हफ्ते प्रदेश पार्टी मुख्यालय के बाहर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के होर्डिंग लगाए गए. करीब चार साल से वसुंधरा राजे की तस्वीर पार्टी कार्यालय से गायब थी, लेकिन हाल ही में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के दौरे के बाद उनकी फोटो फिर से होर्डिंग में दिखाई देने लगी है. इतना ही नहीं अब जिला अध्यक्षों को भी मौखिक निर्देश जारी किए गए हैं कि जिला कार्यसमिति की बैठक में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की तस्वीरें लगाई जाएं.
फतह के लिए उदयपुर अहम
दरअसल मेवाड़ में अगर 18-20 सीटें भी एक पार्टी जीत लेती है तो बहुमत के आंकड़े यानी 101 पर पहुंचना आसान होगा. यही वजह है कि भाजपा अपना किला बचाने की जुगत में लगी है. जबकि कांग्रेस भी अपने पैर मजबूती से जमाने की कोशिश में जुटी हुई है. इन परिस्थितियों में मेवाड़ और खासकर उदयपुर अहम हो जाता है. मेवाड़े में नेताओं की चहलकदमी पिछले साल से ही बढ़ गई है.
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महाराणा प्रताप की जन्मभूमि कुंभलगढ़ में भाजपा का चिंतन शिविर आयोजित किया गया. इसमें भाजपा के प्रदेश और मोदी मंत्रिमंडल में स्थापित राजस्थान के सदस्य और पदाधिकारियों ने आगामी चुनाव को लेकर गहन चिंतन मनन किया था. दक्षिण राजस्थान के इस अहम क्षेत्र मेवाड़ में जनता ने कभी कंफ्यूजन नहीं क्रिएट किया. हमेशा नतीजा एकतरफा दिया और स्पष्ट दिया. पार्टियां मानती हैं कि यहां से जो संदेश निकलेगा वो क्लियर होगा और पूरे मरुभूमि पर अपनी छाप छोड़ेगा. दिग्गज मेवाड़ को मजबूत करने के लिए जुटे रहते हैं.
1998 से लेकर अब तक...
2008 में परिसीमन के बाद उदयपुर संभाग की विधानसभा सीटें घटकर 28 हो गईं. इससे पहले ये 30 थीं. बात करें 1998 से लेकर 2018 के बीच हुए चुनावों की तो तस्वीर कुछ ऐसी बनती है कि सन 1998 में कुल सीटें 30 थीं जिसमें कांग्रेस को 23, भाजपा को 4 और अन्य के खाते में 3 सीटें गईं थी. सन 2003 में कुल विधानसभा सीट 30 ही थीं. उसमें से कांग्रेस को 7, भाजपा को 21 और अन्य को दो मिलीं. सन 2008 कुल सीटें सिमट कर 28 पर आ गईं. इनमें कांग्रेस को 20, भाजपा को 6 और अन्य को 2 सीटें हासिल हुईं. सन 2013 में कुल सीट 28 थीं. यहां कांग्रेस को 2, भाजपा को 25 और अन्य के खाते में 1 गई. पिछले विधानसभा यानी 2018 में कुल 28 सीटें थीं. इसमें कांग्रेस को 10, भाजपा को 15 और अन्य को 3 मिलीं.