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उदयपुर सीट खास है...क्योंकि....जो यहां से जीता...उसी को मिला दिल्ली का 'सिंहासन'

देशभर में लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है. ऐसे में चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. इस बीच हम आपको मेवाड़ से जुड़े कुछ राजनीतिक फैक्ट बताने जा रहे हैं. बताया जाता है कि इस क्षेत्र से जिस पार्टी को ज्यादा सीटें मिलती हैं, उसे ही सत्ता की कुर्सी मिलती है.

उदयपुर सीट खास है

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Published : Mar 15, 2019, 9:51 PM IST

उदयपुर. देशभर में लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है. ऐसे में चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. इस बीच हम आपको मेवाड़ से जुड़े कुछ राजनीतिक फैक्ट बताने जा रहे हैं. बताया जाता है कि इस क्षेत्र से जिस पार्टी को ज्यादा सीटें मिलती हैं, उसे ही सत्ता की कुर्सी मिलती है.


लोकसभा-2019 को लेकर सभी सियासी दल चुनावी मोड में आ गए हैं. ऐसे में राजस्थान में भी चुनावी रंगत दिखनी शुरू हो गई है. राजस्थान का आदिवासी बहुल मेवाड़ क्षेत्र उदयपुर संभाग दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि जिस दल को अब तक यहां से जीत मिलती है, सत्ता उसी दल को मिलती है. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि राजनीतिक आंकड़े कह रहे हैं.


बात उदयपुर लोकसभा सीट की करें तो यहां आजादी के बाद से ही कांग्रेस का वर्चस्व रहा है. आजादी के बाद उदयपुर स्लीपर 16 लोकसभा चुनाव में 10 बार कांग्रेस और चार बार बीजेपी तो वहीं दो बार निर्दलीय प्रत्याशियों ने बाजी मारी है. राजपूताना के इतिहास को अपने में समेटे इस सीट पर कई दिग्गज नेताओं ने चुनाव लड़ा है. सबसे पहले लंबे समय तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे मोहन लाल सुखाड़िया, उसके बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता गिरिजा व्यास, बीजेपी के दिग्गज नेता गुलाबचंद कटारिया और रघुवीर मीणा इस सीट से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.

उदयपुर सीट खास है


बता दें, फिलहाल यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई है. ऐसे में बीते कुछ समय से एसटी वर्ग का प्रत्याशी इस सीट से चुनाव लड़ता है. हालांकि, जब यह सीट सामान्य थी तब सबसे ज्यादा इस सीट से गिरजा व्यास तीन बार सांसद रही थीं.

जातिगत आंकड़े और ट्रेंड
उदयपुर लोकसभा सीट पर मतदाता अपना फैसला जातिगत समीकरण के आधार पर ही करता है. इससे पहले हुए चुनाव के ट्रेंड पर नजर डालें तो राजपूत, ब्राह्मण, वैश्य एकजुट होकर बीजेपी के पक्ष में वोट डालते आए हैं, जबकि, जाट, गुर्जर, मीणा और दलित कांग्रेस के पक्ष में मतदान करते रहे हैं. इसके अलावा अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जातियों का मत स्थानीय समीकरण के हिसाब से दोनों दलों में बढ़ जाता है. ऐसे में दोनों ही राजनीतिक दलों ने पिछले चुनाव में यहां से मीणा प्रत्याशी को ही चुनावी समर में उतारा था.


बता दें, उदयपुर की कुल जनसंख्या 2952477 है. जिसका 81% हिस्सा ग्रामीण और 18% हिस्सा शहरी है. जब की कुल आबादी का 5.5 फीसदी अनुसूचित जाति और 59.8 फीसदी अनुसूचित जनजाति है.
उधर, 2014 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक उदयपुर सीट पर मतदाताओं की संख्या करीब 1800000 है. जिसमें पुरुष 930007 और महिला 887933 है. उदयपुर संसदीय क्षेत्र में जिले की 8 में से 6 सीटें, जिसमें गोगुंदा, झाडोल, खेरवाड़ा, सलूंबर, उदयपुर ग्रामीण और उदयपुर शहर के अलावा प्रतापगढ़ की दरियाबाद और डूंगरपुर की आसपुर विधानसभा सीट शामिल है. वहीं, हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस क्षेत्र में अपना दबदबा कायम रखा है.

बात करें बीते चुनाव की तो 2014 लोकसभा चुनाव में उदयपुर सीट पर 65.6 फीसदी मतदान हुआ. जिसमें बीजेपी को 55.3 फीसदी और कांग्रेस को 35.5 फीसदी वोट मिले. इस चुनाव में बीजेपी के अर्जुन लाल मीणा ने कांग्रेस के रघुवीर मीणा को 236762 वोटों के भारी अंतर से हराया था. जहां अर्जुन लाल मीणा को इस चुनाव में 660373 वोट मिले तो वहीं कांग्रेस के रघुवीर मीणा को 423611 वोट मिले थे.
वहीं, एक बार फिर यही दोनों नेता इस चुनावी रणभेरी में उतरने जा रहे हैं. सूत्रों की मानें तो बीजेपी से जहां एक बार फिर अर्जुन लाल मीणा को इस सीट से रिपीट किया जा रहा है तो वहीं कांग्रेस एक बार फिर अपने कद्दावर नेता रघुवीर मीणा को चुनावी रण में उतारने जा रही है.


उदयपुर लोकसभा सीट को लेकर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस बार यहां स्थानीय मुद्दे फिर से गौंण साबित हो रहे हैं और राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव होने जा रहा है. बता दें, हाल ही में देश की मोदी सरकार द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक कराई गई थी जिसका सीधा असर राजस्थान के उदयपुर लोकसभा सीट पर भी देखने को मिल रहा है. ऐसे में अब देखना होगा कि आने वाले चुनाव में जनता किसे अपना वोट देकर विजई बनाती है.

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