उदयपुर. झीलों की नगरी उदयपुर में आज भी हजारों वर्ष पुरानी पेंटिंग की कला को संवारने का काम किया जा रहा है. इस प्राचीन पेंटिंग की कला को संवारने के लिए एक परिवार की तीन पीढ़ियां पिछले 75 साल से अनवरत काम करने में जुटी हुई है. अब उनकी इस अद्भुत पेंटिंग कला को न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर में विशेष पहचान मिली है. जिन राजा-महाराजाओं के समय सिर्फ ब्लैक एंड वाइट फोटो हुआ करते थे, उन्हें प्राकृतिक कलर से रंगीन करने के साथ उनको फिर से नया स्वरूप दिया जा रहा है.
तीन पीढ़ियों ने प्राचीन पेंटिंग को संवारा :उदयपुर के चांदपोल इलाके में रहने वाले राजेश सोनी के दादा ने प्राचीन पेंटिंग संवारने और विलुप्त होती कला को बचाने कार्य शुरू किया था. इस काम को राजेश सोनी के पिता ललित सोनी ने भी अनवरत आगे बढ़ाया. अब राजेश इस कला को अपने नए तरीके से आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. पिछले 75 साल से इन तीन पीढ़ियों ने अलग-अलग पेंटिंग को नया स्वरूप देने के साथ इस कला को आगे बढ़ाया है. राजेश सोनी ने बताया कि इस कला को 'आर्ट ऑफ हैंड कलरिंग' कहा जाता है. साल 1953 में उनके दादा ने इस प्राचीन कलाकृति से चित्र बनाना शुरू किया था, लेकिन धीरे-धीरे समय बदलता गया और प्राचीन कला विलुप्त होती गई. वर्तमान समय में कलर फोटोग्राफी होने से प्राचीन हस्तनिर्मित पेंटिंग का हैंड कलरिंग का काम विलुप्त सा हो गया था.
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प्राचीन पेंटिंग को संवारने के लिए किया रिसर्च :राजेश सोनी ने बताया कि प्राचीन पेंटिंग को संवारने के लिए कई वर्षों तक रिसर्च किया, जिसमें उनके पिता ने भी उनका बड़ा सहयोग किया. राजा महाराजाओं के दौरान की पुरानी तस्वीरों, चित्रों पर रिसर्च करने के बाद वर्तमान पेंटिंग में उसे ढालने का काम किया गया. अब राजेश पुराने समय की इस पेंटिंग की कला को वर्तमान सांचे में ढालकर पुरानी झलक दिखा रहे हैं. राजेश पेंटिंग को बनाने में सोने और चांदी का भी उपयोग करते हैं. राजेश सोनी ने बताया कि पेंटिंग्स पर सोने और चांदी का वर्क करके उन्हें नया स्वरूप दिया जा रहा है. सोने और चांदी को पेंटिंग पर लगाने का अपना एक तरीका होता है. किसी चित्र में जिस जगह पर सोने-चांदी के वर्क करना होता है, उस जगह पर वर्क को हाथ से काटकर चिपकाया जाता है ताकि सोने का इफेक्ट पूरे चित्र पर दिखाई दे सके. इसके साथ ही अन्य कलर का उपयोग करते हुए उसकी चमक को अपने अनुसार बढ़ाया जाता है.