उदयपुर. देश-दुनिया में अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर नीली झीलों का शहर उदयपुर जिसे देखने के लिए हर साल लाखों की संख्या में टूरिस्ट आते हैं. राजस्थान की सियासत में उदयपुर शहर विधानसभा सीट अपने आप में एक महत्वपूर्ण स्थान और अपना दबदबा रखती है. इस सीट पर मोहनलाल सुखाड़िया, भानु कुमार शास्त्री, डॉ. गिरिजा व्यास और गुलाबचंद कटारिया समेत कई दिग्गजों ने चुनाव लड़कर राजस्थान की सियासत में अपनी खासी जगह बनाई है. पिछले 4 चुनावों में लगातार यहां बीजेपी के बैनर तले गुलाबचंद कटारिया चुनाव लड़कर कभी गृहमंत्री, तो कभी विपक्ष में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर काबिज रहे है. चुनाव से करीब 9 महीने पहले फरवरी महीने में गुलाबचंद कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद अब यह सीट खाली है.
अब तक ये रहे विधायक : 1951 में हुए पहले चुनाव में राम राज्य परिषद दल से देवी सिंह जीते. 1957 में कांग्रेस से मोहनलाल सुखाड़िया जीते. सुखाड़िया राजस्थान में मुख्यमंत्री भी बने. इसके बाद 1962 और 1967 में सुखाड़िया ने इस सीट पर जीत दर्ज की. 1972 में जन संघ से भानु कुमार शास्त्री जीते. 1977 में गुलाबचंद कटारिया चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे. 1980 के चुनाव में भी गुलाबचंद कटारिया इस सीट से जीते. 1985 में डॉ. गिरिजा व्यास इस सीट से विधायक बनकर विधानसभा पहुंची. 1990 में शिव किशोर सनाढ्य यहां स जीते और 1993 में सनाढ्य ही विजयी रहे. 1998 में इस सीट पर कांग्रेस के त्रिलोक पूर्बिया जीते. इसके बाद 2003 में गुलाबचंद कटारिया उदयपुर लौटे और चुनाव लड़कर जीते. इसके बाद 2008, 2013 और 2018 में भी कटारिया यहां से जीते. उदयपुर से विधायक रहते हुए वे 2 बार प्रदेश के गृहमंत्री और 2 बार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे. साल 2018 में कटारिया ने डॉ. गिरिजा व्यास को 9200 वोटों से मात देकर जीत दर्ज की थी.
2 दशकों के बीजेपी का गढ़ : साल 2003 से उदयपुर शहर से बीजेपी से चुनाव गुलाबचंद कटारिया जीतते हुए आ रहे हैं. इससे पहले भी सुखाड़िया के बाद कांग्रेस यहां 2 बार ही जीत सकी है. साल 1957 से 1972 तक सुखाड़िया का इस सीट पर पूरा दबदबा था.
जीत का फैक्टर : उदयपुर शहर विधानसभा संघ की मजबूत वाली सीट मानी जाती रही है. जीत के फैक्टर में यहां जैन-ब्राह्मण की सर्वाधिक मतदाताओं का होना है. सबसे ज्यादा मतदाता जैन के हैं, इसके बाद दूसरे नम्बर पर ब्राह्मण समाज के वोटर्स किसी प्रत्याशी की जीत में अहम माने जाते हैं. इसके अलावा ओबीसी वोटर्स भी अच्छी निर्णायक संख्या में हैं. कटारिया की जीत के पीछे जैन-ब्राह्मण के साथ मुस्लिम वोटबैंक का साथ होना भी माना जाता रहा है.
इस बार के मुद्दे : झीलों के शहर होने के साथ ही झीलों के संरक्षण और सफाई यहां बड़ा मुद्दा रहा है. झीलों में सीवरेज रोकने के नाम पर अब तक करोड़ों रुपए के एसटीपी प्लांट के बावजूद झीलों में जाने वाली गंदगी रोकी नहीं जा सकी है. झील विकास प्राधिकरण का मुख्यालय भी यहां बनने की मांग होती रही है. इसके साथ देवास परियोजना एक अहम मुद्दा है, जो हर बार बार हावी रहा है. अब तक 2 फेज का काम हो चुका है. तीसरे फैज के लिए काफी बजट इस मिला है. वहीं, अब भी करोड़ों के बजट होने पर ही आगे की परियोजना बढ़ेगी. वेनिस की तर्ज पर आयड़ को विकसित करने का मुद्दा हमेशा यहां रहा है. कई प्रोजेक्ट पूरे होने के बाद भी ये आयड़ की सफाई का मुद्दा इस बार भी कायम है. उदयपुर में हाईकोर्ट बेंच की मांग पिछले 3 दशकों से यहां एक प्रमुख मुद्दा रहा है. हर बार किसी न किसी बहाने यह मांग एक मुद्दा बनकर यही रुकती रही है. पर्यटन स्थलों का विकास भी इस सीट एक अहम मुद्दा है. देश मे टॉप स्मार्ट सिटी के चयन में भी सफाई, सीवरेज और पर्यटन स्थलों का विकास के नाम पर करोड़ो रुपए खर्च हुए हैं.
जातिगत वोटर्स का समीकरण : इस सीट पर 2018 में वोटरों की कुल संख्या 241588 हैं. यहां करीब 40-45 हजार जैन मतदाता हैं. करीब 40 से 45 हजार ब्राह्मण और करीब 25 हजार मुस्लिम वोटर्स है. अब तक यहां ब्राह्मण- जैन प्रत्याशी का एकाधिकार रहा है. अब तक यहां 8 बार ब्राह्मण विधायक रहे हैं. 6 बार जैन और 1 बार ओबीसी प्रत्याशी को विधायक बनने का मौका मिला है.
इस बार के चुनाव के प्रमुख मुद्दे : हाइकोर्ट बेंच, देवास परियोजना और आयड़ नदी का विकास मुद्दा इस बार भी कायम है.
पिछले 3 चुनाव में किसने-किसको हराया : 2018 में बीजेपी के गुलाबचंद कटारिया ने कांग्रेस की डॉ. गिरिजा व्यास को 9300 वोटों से हराया था. साल 2013 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी के गुलाबचंद कटारिया ने 78446 वोट हासिल कर जीत दर्ज की. कटारिया ने प्रतिद्वंदी को 24608 मतों के अंतर से मात दी. दूसरा स्थान पर रहे कांग्रेस के दिनेश श्रीमाली ने 53838 वोटों के साथ कटारिया को टक्कर दी थी. चुनाव में कुल 139,672 वोट पड़े और कुल 68.95% मतदान हुआ था.
गुलाबचंद कटारिया के गवर्नर बनने के बाद भाजपा में यह दावेदार : उदयपुर शहर विधानसभा सीट के लिए भाजपा के प्रमुख दावेदार रविन्द्र श्रीमाली हैं. कटारिया के सबसे नजदीकी और विश्वास पात्रों में एक है. बेदाग छवि और ईमानदार छवि के साथ ही हमेशा मुस्कराकर बोलने लोकप्रिय नेता की छवि. लगातार 2 बार पार्टी के शहर जिलाध्यक्ष है. नगर परिषद में सभापति और युआईटी चेयरमैन रहे है. वह पार्टी के साथ हर छोटे बड़े कार्यक्रमों में एक्टिव हैं. कटारिया के अलावा वसुंधरा राजे, प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी और संगठन की गुड बुक में हैं.
प्रमोद सामर : कटारिया के खास सिपहसलार रहे है. सतीश पुनिया से अच्छे संबंध माने जाते. कटारिया के गृहमंत्री कार्यकाल में यह लाइजिनिंग मैन की छवि बनी. सीधे तौर पर किसी बड़े पद पर नहीं रहे. सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक है. राष्ट्रीय नेतृत्व के कई नेताओं से अच्छी लॉबिंग.
पारस सिंघवी : 5 बार पार्षद रह चुके है. वर्तमान में उपमहापौर है. कटारिया के करीबियों में गिने जाते रहे, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर से नजदीकियां है.
केके गुप्ता : केंद्रीय मंत्री अमित शाह से नजदीकी होने का दावा करते रहे हैं. डूंगरपुर से नगर परिषद में सभापति रहे हैं. उदयपुर में पैराशूट कैंडिडेट की छवि है. राजस्थान में स्वच्छता मिशन के ब्रांड एंबेसडर रहे हैं.
अलका मूंदड़ा : बीजेपी महिला मोर्चा में प्रदेश अध्यक्ष हैं. सतीश पुनिया के काफी करीबी मानी जाती है. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से भी नजदीकियां है. उदयपुर के कार्यकर्ताओं में स्वीकार्यता और पब्लिक में लोकप्रियता काफी कम है. अब तक सीधे तौर पर कोई चुनाव नहीं लड़ा.