उदयपुर. प्रदेश के विधानसभा चुनाव (Rajasthan Assembly Election 2023) में करीब 2 साल से अधिक का वक्त बचा है. राजनीतिक दल सियासी चौरस बिछाना शुरू कर चुके हैं. ऐसे में सत्तापक्ष कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भाजपा के अलावा अन्य क्षेत्रीय दल भी अपनी-अपनी जमीन मजबूत करने में जुटे हुए हैं. वहीं, हाल ही सम्पन्न हुए धरियावद और वल्लभनगर विधानसभा उपचुनाव में क्षेत्रीय दलों का प्रदर्शन कांग्रेस-भाजपा को सिरदर्द दे गया है.
कहा जाता है कि राजस्थान की सत्ता का रास्ता मेवाड़ से होकर गुजरता है. इसलिए मेवाड़ राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है. हालांकि अभी तक मेवाड़ में ऐसा कोई क्षेत्रीय दल वर्चस्व कायम नहीं कर पाया जो सीधे तौर पर भाजपा-कांग्रेस को चुनौती दे सके. लेकिन विगत चुनाव से मेवाड़ में इन दोनों पार्टियों की गणित को अन्य क्षेत्रीय दल बिगाड़ रहे हैं.
बीटीपी ने वोट बैंक में लगाई सेंध
पिछले विधानसभा चुनाव पर नजर डालें, तो मेवाड़ के डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ विधानसभा सीटों पर बीटीपी पार्टी का जनाधार बढ़ता नजर आया है. विधानसभा चुनाव 2018 में बीटीपी के 2 विधायक जीतने में सफल रहे. पार्टी लगातार इन सीटों पर मजबूत होती हुई नजर आ रही है. बीटीपी का यहां जड़ें जमाना भाजपा के साथ कांग्रेस के लिए भी सिरदर्द बना हुआ है. क्योंकि बीटीपी इन दोनों ही पार्टियों के वोट बैंक को तोड़ने में जुटी हुई है.
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बीटीपी ने बिगाड़ी कांग्रेस-भाजपा की गणित
हाल ही सम्पन्न धरियावद विधानसभा उपचुनाव में बीटीपी ने भाजपा और कांग्रेस की गणित को बिगाड़ कर दूसरे नंबर पर महत्वपूर्ण पोजीशन हासिल की. वल्लभनगर उपचुनाव में भाजपा जहां चौथे नंबर पर रही, वहीं धरियावद में भाजपा उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गई. जबकि इसी सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहा तो वहीं भाजपा तीसरे नंबर जा सिमटी. ऐसे में राजनीति के जानकारों का कहना है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में बीटीपी मेवाड़ में अपना जनाधार बढ़ा सकती है. हालांकि बीटीपी क्षेत्रीय घटक दल के रूप में कितना महत्वपूर्ण स्थान स्थापित करने में सफल होगी, यह भविष्य के गर्भ में है.
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मेवाड़ में विधानसभा सीटों की स्थिति
विगत विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो कुछ क्षेत्रीय दल जरूर मजबूत स्थिति में नजर आए. लेकिन वह अपने आप को स्थापित नहीं कर पाए. मेवाड़ संभाग में वर्तमान में 28 विधानसभा सीटें हैं. जिनमें 16 एसटी, 1 एससी जबकि 11 सीटें सामान्य है. राजस्थान में एसटी की सर्वाधिक सीटें उदयपुर संभाग में ही हैं. उदयपुर संभाग में जहां परिसीमन के पहले 30 विधानसभा सीट आती थीं, अब 28 सीट हो गईं. उदयपुर में 8, डूंगरपुर में 4, बांसवाड़ा में 5, चित्तौड़गढ़ में 5, प्रतापगढ़ में 2 और राजसमंद में 4 विधानसभा सीट शामिल है. इस संभाग में 4 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा और डूंगरपुर सीट शामिल हैं. वर्तमान में चारों ही सीटें भाजपा के पास हैं.
जब मेवाड़ में टूटी परंपरा...
1977 के विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो मेवाड़ में जनता पार्टी ने 30 विधानसभा सीटों में से 28 पर जीत दर्ज की. कांग्रेस 2 सीट जीत पाई. 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल को 6 सीटें मिलीं और पार्टी तीसरे मोर्चे के रूप में मजबूत नजर आई. हालांकि इन चुनावों के अलावा कुछ निर्दलीय नेता भी जीतने में सफल रहे. 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 20 और बीजेपी ने 6 सीटें जीती. 2 निर्दलीय जीते. 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 25, कांग्रेस ने 2 और 1 सीट निर्दलीय ने जीती. 2018 में भाजपा को 15, कांग्रेस को 10 और 3 सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गईं. खास बात यह है कि 1998 से 2013 तक जिस पार्टी ने मेवाड़ में सर्वाधिक सीटें जीतीं, उसने राजस्थान पर राज किया. हालांकि 2018 के चुनाव में यह परंपरा टूट गई. भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा सीटें मिलीं लेकिन सरकार नहीं बना पाई.
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इन नेताओं ने की पांव जमाने की कोशिश
इससे पहले अन्य नेताओं ने भी मेवाड़ में पांव जमाने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए. इनमें किरोड़ी लाल मीणा और आरएलपी के हनुमान बेनीवाल भी शामिल हैं. इस साल वल्लभनगर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बेनीवाल की पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया. लेकिन विगत विधानसभा उपचुनावों में उनकी पार्टी का एक भी उम्मीदवार जीतने में सफल नहीं हो पाया. लेकिन इस बार वल्लभनगर उपचुनाव में दूसरे नंबर पर रहने के बाद, अब बेनीवाल मेवाड़ में पांव जमाने की कोशिश कर रहे हैं. बेनीवाल के अलावा वल्लभनगर में जनता सेना सुप्रीमो रणधीर सिंह भिंडर भी इस विधानसभा सीट पर महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आते हैं.