उदयपुर. उदयपुर. मेवाड़ का नाम सुनते ही स्वाभिमान, मान-सम्मान और त्याग की कहानियां याद आने लगती है. मेवाड़ में ही मुगल आक्रांता अकबर को महाराणा प्रताप ने लोहे के चने हल्दीघाटी में दांतो तले चबा दिए थे. एकमात्र हिंदुस्तान में ऐसी पूर्व रियासत रही जिसने कभी भी आक्रांता के सामने घुटने नहीं टेके. मेवाड़ का नाम आते ही वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जेहन में आते हैं. लेकिन महाराणा प्रताप उदयपुर के राजा नहीं रहे, बल्कि एक दीवान के रूप में काम करते थे. अब आप सोच रहे होंगे ऐसा क्यों? क्योंकि मेवाड़ का असली राजा भगवान एकलिंगनाथ ही हैं.
उदयपुर से 22 किलोमीटर दूर एकलिंग जी का मंदिरः उदयपुर शहर से करीब 22 किलोमीटर दूर भगवान एकलिंग नाथ का मंदिर स्थित है. कैलाशपुरी नामक स्थान पर भगवान एकलिंग नाथ विराजमान है. जहां भगवान भोलेनाथ का भव्य मंदिर बना हुआ है. भगवान एकलिंग नाथ ही मेवाड़ के महाराजाओं और यहां की प्रजा के कुल देवता के रूप में पूजे जाते हैं. इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि जब भी कोई राजा युद्ध लड़ने के लिए जाता, उससे पहले वह भगवान एकलिंग नाथ के दरबार में जरूर पहुंचता था. उदयपुर के एकलिंग नाथ महादेव को मेवाड़ के महाराणा के रूप में पूजा जाता है और मेवाड़ के महाराणा खुद को दीवान मानकर राज कार्य संपन्न करते हैं. इतिहासकारों ने बताया कि ऐसा आज से नहीं बल्कि 1500 वर्षों से होता आया है. इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि युद्ध क्षेत्र में लड़ाई लड़ने के दौरान जब राजा विजयी घोषित होते थे तो युद्ध के मैदान में मेवाड़ जय स्वामी भगवान एकलिंग नाथ के जयकारे गूंजते थे.
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इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि बप्पा रावल के काल से मेवाड़ के राजा एकलिंग नाथ को माना जाता है. राजतंत्र के दौरान लिखे गए कई पत्रों में जब किसी को महाराणा आदेश देते तो वे पत्र के अंदर मेवाड़ के दीवान के आदेश से शब्द को काम में लेते थे. इतना ही नहीं युद्ध क्षेत्र में लड़ाई लड़ने के दौरान जब राजा विजयी घोषित होते थे तो युद्ध के मैदान में मेवाड़ जय स्वामी भगवान एकलिंग नाथ के जयकारे गूंजते थे.