जयपुर. जवाहर कला केन्द्र में ‘लोकरंग‘ के 8वें दिन उस्ताद निसार हुसैन ग्रुप ने शानदार प्रस्तुतियां दी. कार्यक्रम में संगीत प्रेमी तराना और सूफी गायन प्रस्तुति से सभी सराबोर हो गए. ‘सबरंग‘ नाम से आयोजित इस विशेष प्रस्तुति में जल तरंग, संतुर, बांसुरी, की मधुर धुनों ने सभी के दिलों को छुआ. प्रस्तुति में मृदंग, तबला, ढोलक, नक्कारा, सितार के अतिरिक्त मोरचंग, खडताल, रावणहत्था, अलगोजा, शहनाई जैसे लोक वाद्य यंत्रों को भी रचनात्मकता के साथ शामिल किया गया.
जयपुर लोकरंग समारोह का 8वें दिन कलाकारों ने दी शानदार प्रस्तुतियां उत्तरप्रदेश का 'ढेढिया' लोकनृत्य रहा खास
कलाकारों की प्रस्तुतियों में अवध का लोकनृत्य 'ढेढिया' सबसे खास रहा. रावण वध के बाद भगवान श्रीराम के फिर से अयोध्या आने की खुशी में ढेढिया नृत्य किया गया था. मान्यता है कि स्वयं सीताजी ने अपने मायके मिथिला जाकर यह नृत्य किया था. महिलाएं रंगीन वस्त्रों में सिर पर जलता हुए दीपक रखकर यह लोकनृत्य पेश करती है तो नजारा अद्भुत बन जाता है. इस अवसर पर नृत्य निर्देशक, बीना सिंह का रचित मधुर गीत 'ताल बोयो ममरी, पाताल बोयो ममरी, ममरी का फूल कचनार घूमर ममरी' ने प्रस्तुति में नया आकर्षण जोड़ा. महिलाओं की वेशभूषा में लहंगा, चुन्नी, कुर्ती, गले में हार, कर्णफूल, गुलबन्द, मांगटीका, नथ और बालों में गजरा शामिल था.
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राग भोपाली में शिव प्रस्तुति 'हरिओम नमः शिवाय' के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई. इसके बाद ताल अद्धा और द्रुत लय तीन ताल में तराना की अनोखी प्रस्तुति से सभी श्रोता कर्णप्रिय संगीत में मग्न हो गए. 'मन कुंतो मौला' सूफी गाने की दमदार प्रस्तुति से केन्द्र परिवेश का माहौल आध्यात्मिक हो गया. कार्यक्रम में गायन, पखावज और पढंत पर निसार हुसैन थे. उनके साथ ही अतिरिक्त अल्लारखा (सितार), फतेहअली (संतुर), गुलाम गोश और शफाक (तबला) आदि कलाकार भी शामिल थे.
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मध्यप्रदेश के बधाई लोकनृत्य ने जमाया रंग
इस अवसर पर मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड से आए लोक कलाकारों ने नदीम राईन के निर्देशन में पारम्परिक 'बधाई' लोकनृत्य की रंगबिरंगी प्रस्तुति दी. किसी परिवार में बच्चे के जन्म होने पर घर के सभी सदस्य शीतला माता के समक्ष यह लोकनृत्य करते हैं. महिला और पुरुष नर्तकों ने पारम्परिक वेशभूषा में 'जन्म लिया रघुरैया अवध में बाजे बधईया' गीत पर मार्शल आर्ट की प्रस्तुति देते हुए यह नृत्य पेश किया. थाली में दीपक और हाथ में चक्र का संचालन करते हुए नर्तकों ने खूब तालियां बटोरी. यह प्रस्तुति ढोलक, नगड़िया, लोटा, ढपला, रमतूला, बांसुरी के रोचक संगीत के साथ पेश की गई.