टोंक. लगभग 15 साल पहले देश के कई राज्यों के लोगों के मुंह में मिठास घोलने वाले बनास का खरबूजा अब सपना हो गया है. यह खेती अब अवैध खनन की भेंट चढ़ चुकी है. वहीं क्षेत्रीय किसानों की परेशानी बढ़ गई है. उनके लिए तरबूज और खरबूजे की खेती करना टेढ़ी खीर जैसा हो गया है.
टोंक में बनास नदी के तट पर तरबूज की खेती पर 'ग्रहण' दरअसल, डेढ़ दशक पहले यहां बनास नदी के तट पर उगने वाले तरबूज और खरबूजा काफी प्रसिद्ध थे. इसे दिल्ली और मुंबई की मंडियों तक भेजा जाता था. वहीं इस खेती से किसानों को अच्छी आमदनी भी होती थी. वहीं वर्तमान में खनन माफियों ने यहां जमकर अवैध कारोबार किया. लगातार खनन के चलते नदी के तट से खेती योग्य मिट्टी हट गई. जिसके साथ ही तरबूज और खरबूज की खेती ठप सी हो गई.
दरअसल, टोंक की पहचान रहे खरबूजे की जो भीषण गर्मी में शरीर को ठंडक पहुंचाने के काम आते थे. बीसलपुर बांध बनने से पूर्व साल भर बहने वाली बनास नदी से पैदा होने वाला खरबूजा देश विदेश में टोंक का नाम देता था. दिल्ली में तो टोंक के नाम से खरबूजा बेचा जाता है, लेकिन बीसलपुर बांध बनने के बाद से बनास नदी में कम हुई पानी की आवक से नदी साल भर सुखी रहने लगी और नदी सूखने के बाद खनन माफियाओं की नजर बजरी पर ऐसी पड़ी की बजरी के अंधाधुध अवैध खनन ने मिट्टी की नमी को खत्म कर दिया. जिससे तरबूज व खरबूजे की मिठास भी खत्म हो गई. भले ही बिसलपुर बांध का भराव राज्य के लोगों के लिए पेयजल लिहाज से वरदान साबित हुआ है, लेकिन आधे टोंक सहित राज्य के कई जिलो की प्यास बुझाने के लिए टोंक वासियों ने अपने सुनहरे इतिहास को गवा दिया है.
फिलहाल टोंक में बीसलपुर बांध बनने के बाद अवैध खनन का सिलसिला बदस्तूर जारी है. जिसके चलते नदी क्षेत्र में तरबूज और खरबूजे की खेती प्रभावित हो गई है. इसकी मार किसानों पर पड़ रही है. यहां का मिठास से भरा खरबूजा और तरबूज कठिन हो गई है.