सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर). बॉर्डर एरिया सहित रेडियो के शौकीन अन्य श्रोता आकाशवाणी सूरतगढ़ रेडियो के महत्वपूर्ण प्रसारण सुनने से वंचित हो गए हैं. इसका कारण है, प्रसार भारती के कई रेडियो स्टेशनों का डिजिटल रेडियो मोंडियल (डीआरएम) तकनीक पर आ जाना. इसमें सूरतगढ़ का कॉटन सिटी चैनल भी शामिल है. डीआरएम के कारण एक फरवरी से सुबह 9 से 11 और शाम को 3 से 6 बजे तक 5 घंटे के लिए सूरतगढ़ रेडियो का एनालॉग मोड(एएम) पर प्रसारण बंद कर दिया गया है.
डीआरएम तकनीक पर है सूरतगढ़ आकाशवाणी इस अवधि में प्रसारण तो जारी रहेगा, लेकिन साधारण रेडियो रखने वाले श्रोता प्रसारण नहीं सुन पाएंगे. यानि आकाशवाणी के कार्यक्रम डीआरएम रिसीवर अथवा एंड्रॉयड मोबाइल पर ही सुने जा सकेंगे. एनालॉग पर प्रसारण बंद कर देने से लोकगीत, जयपुर से रिले प्रादेशिक समाचार, मरूमंगल, बॉर्डर एरिया के लिए खासतौर पर दिल्ली से रिले उर्दू सविर्स और युववाणी जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों से दूर-दराज और ग्रामीण श्रोता वंचित हो गए हैं. वहीं, पीएम नरेंद्र मोदी के 'मन की बात' भी श्रोता रेडियो पर सुन पाएंगे या नहीं, इस पर भी संदेह है.
भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर के कारण सूरतगढ़ में रेडियो स्टेशन की स्थापना हुई. स्टेशन से कार्यक्रमों का विधिवत प्रसारण फरवरी 1981 में शुरू हुआ, जो वर्तमान में 300 किलोवाट 918 किलो हर्ट्ज मीडियम वेव पर हो रहा है. यानि करीब 500 किलोमीटर तक के दायरे में आकाशवाणी सूरतगढ़ रेडियो के श्रोता हैं. वर्ष 2016 में डीआरएम पर आ जाने के कारण 120 किलोवाट 927 किलो हर्ट्ज डीआरएम और एनालॉग दोनों पर प्रसारण चल रहा था. अब एनालॉग मोड पर 5 घंटे के प्रसारण को विराम देने के कारण रेडियो पर महत्वपूर्ण कार्यक्रम सुनने से श्रोता वंचित हो गए हैं.
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यानि आकाशवाणी का 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' का सिद्धांत अब बदलाव की ओर है. शुरुआत के 93 साल में अपने कार्यक्रमों की वजह से दुनियाभर में श्रोताओं के बीच खास पहचान बना चुका ऑल इंडिया रेडियो यानि आकाशवाणी अब बदलाव की ओर अग्रसर है. वक्त के साथ यह आधुनिक डीआरएम तकनीक पर आ चुका है. डीआरएम डिजिटल ब्रॉडकास्ट की ऐसी तकनीक है, जिससे ब्रॉडकास्ट करने पर रिसीवर में जो क्वालिटी मिलती है, वो एएम और एफएम से कई गुणा बेहतर है. ऑल इंडिया रेडियो ने डीआरएम के लिए अब तक 38 ट्रांसमीटर लगाए हैं. इनमें 35 ट्रांसमीटर मीडियम वेव में और 3 ट्रांसमीटर शॉर्ट वेव में हैं. लेकिन इस बदलाव के कारण आकाशवाणी के श्रोता घटने लगे हैं, क्योंकि डीआरएम का प्रसारण सुनने के लिए डीआरएम रिसीवर या एंड्रॉयड मोबाइल का होना जरूरी है.
जहां डिजिटलाइजेशन कर देने से रेडियो के युवा श्रोता लाभ उठा सकेंगे. वहीं दूरदराज के ग्रामीण और वयोवृद्व श्रोता निराश हुए हैं. क्योंकि खेत ढाणी, ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण डिजिटल रेडियों सुनने में असमर्थ हैं. साथ ही बुजुर्ग श्रोताओं का एक मात्र सहारा रेडियो ही था. अब वे देश विदेश की खबरों और सांस्कृतिक गतिविधियों से महरूम हो जाएंगे. रेडियो की गांवों में सबसे ज्यादा पहुंच है. ऐसे में जरूरी नहीं, कि हर श्रोता डीआरएम रिसीवर और एंड्रॉयड मोबाइल खरीदने में सक्षम हो. डीआरएम रिसीवर की कीमत 10 से 12 हजार रूपए के करीब है. वहीं, भारतीय बाजार में ये सुगमता से उपलब्ध भी नहीं है. एड्रॉयड मोबाइल उपलब्ध है, पर जरूरी नहीं कि हर जगह नेटवर्क मिले.
वहीं रेडियो चैनल के कार्यक्रम अधिशाषी रमेश शर्मा के अनुसार अब जमाना डिजिटल का है तो प्रसार भारती भी डिजिटल की दिशा में आगे बढ़ रहा है. इसके कई फायदे हैं. बेहतर गुणवत्ता, कम विद्युत खर्च यानि 120 किलोवाट में ज्यादा 927 किलोहर्ट्ज करीब ढाई सौ किलोमीटर परिधि का कवरेज क्षेत्र मिलना. एक ही ट्रांसमीटर से कई कार्यक्रम और कई चैनल लेना. डीआरएम की सबसे खास बात है कि इसमें ऑडियो के साथ-साथ प्रसारित हो रहे विषय से संबधित शब्दों को भी स्क्रीन पर पढ़ा जा सकता है.
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डीआरएम एएम और एफएम की तुलना में अधिक स्पष्ट रूप से कुशल है. जो श्रोता डीआरएम रिसीवर कीमत के कारण खरीद नहीं पा रहे हैं. या फिर एड्रॉयड मोबाइल में नेटवर्क की समस्या के चलते रेडियो के एनालॉग मोड के प्रसारण नहीं सुन पा रहे हैं, वे श्रोता गूगल प्ले स्टोर से प्रसार भारती (न्यूज ऑन एआईआर) एप्प डाउनलोड कर प्रसार भारती के सभी आकाशवाणी केंद्रों के लाइव प्रसारण सुन सकते हैं. आकाशवाणी के लाइव प्रसारण आईओएस और एंड्रॉयड दोनों वर्जन पर उपलब्ध हैं.