श्रीगंगानगर.कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए भले ही देश में समय-समय पर सरकारों व समाजसेवी संस्थाओं द्वारा अभियान चलाए गए है. लेकिन कुछ समय बाद ऐसे अभियानों ने दम तोड़ दिया. मगर श्रीगंगानगर में कुछ लोगों के प्रयास इस कदर रंग लाए की अब हमेशा के लिए प्रेरणादाई बनते नजर आ रहे हैं. श्रीगंगानगर के रामलीला मैदान में कन्या लोहड़ी मनाई गई. 10 साल पहले श्रीगंगानगर के लोगों ने मिलकर इस कार्यक्रम की नींव रखी थी.
श्रीगंगानगर में कन्या लोहड़ी कार्यक्रम पढ़ें: 2 साल से इलाज को तरस रहा है गुलेरिया का 'राजूराम', बूढ़ी मां ने कहा- हमारी भी सुन लो सरकार
कन्या लोहड़ी के दौरान हजारों लोगों ने शामिल होकर कन्या हत्या रोकने का संकल्प लिया. परंपरा के अनुसार लोहड़ी लड़के के जन्म पर मनाई जाती है, लेकिन समाज की सोच को बदलने के लिए पिछले कुछ सालों से आयोजित हो रहे इस कार्यक्रम में इस साल की भीड़ पिछले सालों से ज्यादा थी. दो संस्थाओं ने इस बार कन्या लोहड़ी में निशुल्क शिक्षा पैकेज हेतु जरूरतमंद परिवारों की बेटियों को करोड़ों रुपए के शिक्षा पैकेज बांटे. इन सभी कन्याओं को तमाम शिक्षण संस्थाओं द्वारा करोड़ों रुपए के निशुल्क शिक्षा पैकेज दिए हैं. पंजाब से लगते श्रीगंगानगर जिले में बिगड़ते लिंगानुपात में हुए सुधार में सामाजिक संस्थाओं की इस अनूठी पहल की अहम भूमिका है.
कन्या लोहड़ी कार्यक्रम की झलक. पढ़ें: Special: विदेश से लौटी महिला ने सरपंच बन बदल दी इस गांव की तस्वीर, पति हैं IPS
बेटियों को बोझ मानने के पीछे कहीं ना कहीं एक वजह यह भी है कि उन्हें पढ़ाया नहीं जाता और वह अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाती. श्रीगंगानगर के इन सदस्यों ने भी इसी को कन्या भ्रूण हत्या की मुख्य वजह मानते हुए मुहिम शुरू की. उच्च शिक्षा लेने के लिए सैकड़ों कन्याओं को करोड़ों रुपए की स्कॉलरशिप भी दी गई, यही वजह है कि पिछले 10 सालों में ना जाने कितनी कन्याओं को अपने पैरों पर भी खड़ा किया गया है. आयोजित कार्यक्रम में बेटियों को स्कॉलरशिप दी जाती है. कन्या लोहड़ी के कार्यक्रम ने पूरे जिले की बेटियों के मन में यह विश्वास भर दिया कि वह भी लड़कों से कम नहीं है. यही उत्साह कार्यक्रम के दौरान आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी देखने को मिला.
कन्या लोहड़ी कार्यक्रम की झलक. पढ़ें: उत्तर भारत में लोहड़ी की धूम, जानें पर्व से जुड़ी मान्यताएं
लाखों बेटियों को गर्भ में ही मारने के बाद आखिरकार अब समाज जाग रहा है. अजन्मी कन्याओं को बचाने की मुहिम धीरे-धीरे रंग ला रही है. यही वजह है कि बिगड़ते लिंगानुपात के लिए बदनाम हो चुके सीमावर्ती जिले श्रीगंगानगर की छवि जनगणना के बाद सुधरने लगी है. पिछ्ले कुछ सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो श्रीगंगानगर जिले में 1000 लड़कों पर 916 बेटियां हैं. पिछले 10 साल से शुरू श्रीगंगानगर के चेंबर ऑफ कॉमर्स के सदस्यों ने समस्या को जड़ से उखाड़ने का कन्या लोहड़ी के बहाने जो निर्णय लिया. अब वह समाज की सोच को बदलने में कामयाब हो रहा है.