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Published : Dec 13, 2019, 12:33 PM IST

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सूरतगढ़ में 9 माह से बंद पड़ी है मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला, किसान परेशान

सूरतगढ़ के किसानों के सामने एक नया संकट आ खड़ा हुआ है. पीपी मोड़ पर स्थित मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला पिछले 9 महीनों ने बंद है. प्रयोगशाला बंद होने के कारण यहां मौजूद लाखों रुपये के उपकरण किसी काम के नहीं हैं.

बंद पड़ी है मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला,  Soil testing laboratory is lying closed
सूरतगढ़ में 9 माह से बंद पड़ी है मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला

सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर).कृषि विभाग की पीपी मोड पर चल रही मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला पिछले 9 महीने से बंद होने से प्रयोगशाला में लगे लाखों रुपए के उपकरण धूल फांक रहे हैं. मृदा परीक्षण के लिए आने वाले किसान निराश होकर वापस घर लौटने को मजबूर हैं. कारण, प्रयोगशाला में अप्रैल 2019 से मिट्टी परीक्षण का काम पूरी तरह से बंद हैं.

सूरतगढ़ में 9 माह से बंद पड़ी है मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला

प्रयोगशाला में मृदा जांच करवाने आए राजियासर के किसान पृथ्वी स्वामी, सोनू सिंह, मोहनसिंह, विष्णु बिश्नोई, हिंदोर के शकुर खां, उस्मान और उदयपुर के महावीर ने बताया कि प्रयोगशाला आने पर पता चला कि मिट्टी के सैंपल की जांच यहां न होकर श्रीगंगानगर कृषि अनुसंधान केंद्र में होगी. किसानों का कहना था कि क्षेत्र के किसान इतने संपन्न नहीं हैं जो 100 किलोमीटर दूर जाकर मिट्टी की जांच करवा सकें. नए भवन में उपकरणों से सुसज्जित मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला किसानों ही नहीं, बल्कि क्षेत्र के लिए किसी विडंबना से कम नहीं है.

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प्रधानमंत्री ने किया था योजना का शुभारंभ...

पीएम नरेंद्र मोदी ने 19 फरवरी 2015 को सूरतगढ़ से सॉइल हेल्थ कार्ड (एसएचसी) योजना देश को समर्पित की थी. इस दौरान 8 राज्यों के सीएम, 14 राज्यों के कृषि मंत्री और कई राज्यों के प्रगतिशील किसान समारोह के साक्षी बने थे. उसी शहर में प्रयोगशाला बंद पड़ी है. उल्लेखनीय है कि सॉइल हेल्थ योजना फरवरी 2015 में शुरू हुई और मार्च 2017 में प्रयोगशाला को आधुनिक उपकरणों से सज्जित नया भवन मिला था.

किसानों के लिए फायदेमंद हैं सॉइल हेल्थ कार्ड योजना...

अशिक्षित किसान योजना के तहत मिलने वाले हेल्थ कार्ड के माध्यम से फसल का बेहतर उत्पादन ले सकते हैं. कारण, सभी किसानों को पता नहीं होता कि कौनसी मिट्टी में कौनसे तत्व होते हैं जो फसल की गुणवत्ता पर असर डालते हैं. एक तरह से ये किसानों की मिट्टी का रिपोर्ट कार्ड है. योजना के तहत किसान के खेत की मिट्टी के सैंपल इकट्ठा कर लैब में भिजवाया जाता है. जांच के बाद वैज्ञानिक परिणाम का अध्ययन करते हैं कि मिट्टी में क्या कमी है और क्या खूबियां हैं. मिट्टी में जो कमियां हैं उनको दूर करने के लिए वैज्ञानिकों की ओर से सुझाव दिए जाते हैं. इसके बाद सभी जानकारियों जैसे मिट्टी का प्रकार, मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व, फसल की गुणवत्ता के लिए उर्वरकों की जानकारी, फसल के लिए तापमान, बारिश की स्थिति और वे उपाय जिनसे मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सके, को सॉइल हेल्थ कार्ड में समायोजित कर किसानों को जारी किया जाता है.

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3 साल में 14 करोड़ किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड देने का था लक्ष्य...

योजना के तहत 3 साल में 14 करोड़ किसानों को था, एसएचसी जारी करने का लक्ष्य। सॉइल हेल्थ योजना के तहत सरकार का 3 साल में भारत के सभी राज्यों में लगभग 14 करोड़ किसानों को कार्ड उपलब्ध कराने का लक्ष्य था. योजना के तहत एक खेत के लिए सरकार 3 वर्षों में एक बार सॉइल हेल्थ कार्ड जारी करती है. सॉइल हेल्थ कार्ड स्कीम चक्र-1 (2015-2017) की 30 जून 2018 की राज्यवार स्थिति के अनुसार राज्य व संघ राज्य क्षेत्र में 10 करोड़ 73 लाख 89 हजार 421 और अकेले राजस्थान में 68 लाख 86 हजार कार्ड वितरित हुए. इसी तरह चक्र-2 (2017-2019) में 9 जुलाई 2019 तक की स्थिति के अनुसार राज्य व संघ राज्य क्षेत्र में 9 करोड़ 95 लाख 98 हजार 580 व अकेले राजस्थान में 1 करोड़ 4 लाख 31 हजार 793 कार्ड वितरित हुए. वित्तीय स्वीकृति व टारगेट नहीं आने के कारण नहीं हो रही जांच.

कृषि विभाग के एएओ सतपाल शर्मा ने बताया कि 31 मार्च 2019 को पीपी मोड पर संचालन का करार खत्म हो जाने, वित्तीय स्वीकृति जारी नहीं होने और टारगेट नहीं दिए जाने के कारण मिट्टी परीक्षण का कार्य बंद है. केंद्र व राज्य सरकार योजना को शुरू करने की स्वीकृति दे तो परीक्षण का काम फिर से हो सकता है. तब तक प्रयोगशाला में आने वाले किसानों को श्रीगंगानगर कृषि अनुसंधान केंद्र में ही सेंपल जांच कराने की सलाह दी जा रही है.

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गौरतलब है कि देश की इस महत्वााकांक्षी कृषि से जुड़ी योजना का शुभारंभ सूरतगढ़ से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया था. उसके बावजूद सिस्टम का शिकार होकर यह योजना धूल फांक रही है.

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