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SPECIAL : पहचान खोती संस्कृत भाषा को बचाने की कोशिश कर रहे प्रोफेसर श्यामलाल - Sanskrit Patron

जिले के एक शिक्षक पिछले लंबे समय से संस्कृत के अस्तित्व को बचाने की मुहिम में लगे हैं. चौधरी बल्लू राम गोदारा राजकीय कन्या महाविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर श्यामलाल संस्कृत को बचाने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं.

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अलग अलग कॉलेज में लगाते हैं संस्कृत शिविर

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Published : Mar 23, 2021, 4:10 PM IST

Updated : Mar 23, 2021, 4:27 PM IST

श्रीगंगानगर. जिले के एक शिक्षक पिछले लंबे समय से संस्कृत के अस्तित्व को बचाने की मुहिम में लगे हैं. चौधरी बल्लू राम गोदारा राजकीय कन्या महाविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर श्यामलाल संस्कृत को बचाने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं. खास मुलाकात प्रो श्यामलाल से...

संस्कृत संरक्षण में लगे हैं प्रोफेसर श्यामलाल

संस्कृत के अस्तित्व के लिए प्रोफेसर श्यामलाल पिछले 10 साल से जूझ रहे हैं. जिले के सबसे बड़े राजकीय कन्या महाविद्यालय के कैम्पस में आपको संस्कृत में श्लोकों के उच्चारण की गूंज सुनाई देगी. प्रो श्यामलाल न केवल कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओ को संस्कृत का पठन करवाकर संस्कृत को जिंदा रखे हुए हैं, बल्कि पिछले लंबे समय से बीकानेर सम्भाग तक विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम संचालित कर रहे हैं.

जिनमें संस्कृत संभाषण शिविर, संस्कृत भाषा बोधन शिविर, आवासीय संस्कृत शिविर, संस्कृत कार्यशाला, संस्कृत संवाद शाला, संस्कृत दिवस, संस्कृत सप्ताह सहित अनेक कार्यक्रम संस्कृत को जिंदा रखने के लिए चला रहे हैं. इन अलग-अलग कार्यक्रमों से वे विद्यार्थियों को संस्कृत में पारंगत कर रहे हैं. प्रो श्यामलाल की ओर से आयोजित इन कार्यक्रमों में जो विद्यार्थी आते हैं उनको संस्कृत में ही बोलने और चर्चा पर जोर दिया जाता है.

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प्रो श्यामलाल का कहना है कि संस्कृत भाषा कभी खत्म नहीं हो सकती. सबसे समृद्ध और प्राचीन भाषा संस्कृत भाषा है. दुनिया का सारा ज्ञान संस्कृत भाषा में निहित है. तमाम प्रकार के वेद संस्कृत में हैं. अब संस्कृत को लोग इस दृष्टि से देखते हैं कि यह प्राचीन भाषा है, कठिन है और ब्राह्मणों की भाषा है. संस्कृत का नजदीक से नही जानने वालों ने संस्कृत भाषा के बारे में ऐसी दुराग्रह पाल रखा है.

वहीं सरकार ने भी संस्कृत भाषा को कमजोर करने की कोई कसर नही छोड़ी. राजस्थान में कॉलेज शिक्षा में संस्कृत को पढ़ाने वाले प्रोफेसरों के पद ही पिछ्ले 17 साल से खाली चल रहे हैं.राज्य के कॉलेजों में 173 पद 2004 से खाली पड़े हैं. आरएएस जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में संस्कृत को हटा दिया है. इसके चलते विद्यार्थी संस्कृत से दूर हो रहा है. संस्कृत पढ़ने वाला व्यक्ति संस्कारी होगा उसमें संस्कार मिलेंगे. वह दुराचारी नहीं होगा. सीधा सरल स्वभाव का व्यक्ति होगा. इसलिए संस्कृत मनुष्य के जीवन में परिवर्तन कर देती है.

अलग अलग कॉलेज में लगाते हैं संस्कृत शिविर

आदमी जैसा पढ़ता है वैसा ही बनता है. प्रो श्यामलाल दुखी मन से कहते हैं कि राजस्थान में संस्कृत के विद्यालय तो बहुत खोल दिए लेकिन पद रिक्त होने की वजह से जो छात्र अध्ययन करने के लिए विद्यालय महाविद्यालय में आता है अगर उसे अध्यापक नहीं मिलेगा तो वह संस्कृत से दूर ही होगा. ऐसे में जब तक खाली पदों को सरकार नहीं भरती तब तक संस्कृत को बचाए रखना मुश्किल है.

उन्होंने कहा कि सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि संस्कृत के जितने भी खाली पद स्कूल-कॉलेजों में पड़े हैं. उनको जल्दी भरा जाए. श्रीगंगानगर जिले में संस्कृत की परिस्थितियां कुछ अलग हैं. क्योंकि स्कूलों में ऐच्छिक विषय में संस्कृत अथवा पंजाबी कर दिया है. ऐसे में पंजाबी यहां की बोलचाल भाषा भी है और पंजाबी उन्हे सरल लगती है. इसके कारण बच्चे पंजाबी की तरफ ज्यादा बढ़ते हैं. स्कूलों में संस्कृत को जिंदा रखने के लिए संस्कृत को अनिवार्य किया जाना जरूरी है.

Last Updated : Mar 23, 2021, 4:27 PM IST

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