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श्रीगंगानगरः लॉकडाउन की वजह से गंगा में नहीं विसर्जित कर पा रहे अस्थियां - श्रीगंगानगर की ताजा खबर

श्रीगंगानगर के सूरतगढ़ में लॉकडाउन के कारण लोग अस्थियों को विसर्जित करने के लिए हरिद्वार नहीं ले जा पा रहे हैं. जिस वजह से ग्रामीण क्षेत्रों की कल्याण भूमि में लॉकर की सुविधा न होने पर ग्रामीण अस्थियों को गड्‌ढों के अंदर या पेड़ों पर टांग कर सुरक्षित रख रहे हैं.

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अस्थियों को गंगा जी में विसर्जित नहीं कर पा रहे लोग

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Published : Apr 21, 2020, 3:04 PM IST

सूरतगढ़( श्रीगंगानगर).कोरोना के कारण जनजीवन ठप हो गया हैं. लोग घरों में ही है बाहर नहीं निकल रहे हैं. ऐसे में एक समस्या यह भी आ रही है कि मृतकों की अस्थियों को भी गंगा जी में कैसे विसर्जित किया जाए. क्योंकि मृतकों के परिजन हरिद्वार नहीं जा पा रहे है. जिस वजह से 20 मार्च से अब तक क्षेत्र में मृतकों की अस्थियों को विसर्जित नहीं किया जा सका है.

अस्थियों को गंगा जी में विसर्जित नहीं कर पा रहे लोग

दरअसल हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार मृतक की अस्थियों को हरिद्वार जाकर गंगा नदी में विधि-विधान के अनुसार परिजन विसर्जित करते है. पर 20 मार्च को जनता कर्फ्यू और 21 से लगातार जारी लॉकडाउन के कारण लोग अस्थियों को विसर्जित करने के लिए हरिद्वार नहीं ले जा पा रहे हैं. यदि किसी तरह लोग हरिद्वार चले भी जाएं तो लॉकडाउन के चलते पूजा करने के लिए पंडित नहीं मिलते. इसलिए परिजन अस्थियों को कल्याण भूमि में सुविधानुसार सुरक्षित रख रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों की कल्याण भूमि में लॉकर की सुविधा न होने पर ग्रामीण अस्थियों को गड्‌ढों के अंदर या पेड़ों पर टांग कर सुरक्षित रख रहे हैं.

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साथ ही अन्य रस्में एडवाइजरी की पालना के तहत संक्षिप्त रूप में अपने घर में पूरी कर रहे हैं. यही नहीं दिवंगत की आत्मा की शांति के लिए शोक बैठक भी बंद है. इसके साथ ही शोकसंतप्त परिवार के सदस्य अंतिम संस्कार और शोक बैठक में शामिल नहीं होने का संदेश सोशल मीडिया में वायरल कर एडवाइजरी का पालन करने में सहयोग कर रहे हैं. पंडितों के अनुसार स्वर्गवास होने के बाद लोग क्रिया-कर्म को लेकर संवेदनशील होते हैं.

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अब लॉकडाउन समाप्त होने के बाद ही लोग अपने परिजनों की अस्थियों को गंगा में विसर्जित कर सकेंगे. वही पंडित राजकुमार गौड का मानना हैं कि प्राचीन समय में यातायात की व्यवस्था नहीं होती थी जिससे अस्थियां दूसरे जगह जा कर विसर्जित कर सकें. लोग पैदल ही जाते थे जिसमें 3 से 5 माह का समय लगता था. उन्होंने शहरवासियों से अपील की, कि जल्दबाजी ना करें, लॉक डाउन खुलने के बाद अस्थियां विसर्जित कर सकते हैं.

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